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________________ रहूगण प्राचीन चरित्रकोश राज्ञी ऋषियों के आश्रम, कालंजर तीर्थ आदि तीर्थस्थानों का | गौतम ने कृतघ्नता से इसका वध किया । किन्तु राक्षसराज निर्देश प्राप्त है (भा. ५.८.३०; १०.१)। | विरूपाक्ष ने सुरभि गौ के दूध के झाग से इसे जीवित रहूगण आंगिरस-आंगिरसकुलोत्पन्न एक आचार्य, किया, एवं गौतम का वध किया। जीवित होने के पश्चात्, जिसके द्वारा रचित दो सूक्त ऋग्वेद में प्राप्त है (ऋ. ९. | इसने इन्द्र से गौतम को पुनः जीवित करने के लिए ३७-३८)। ऋग्वेद में एक कुलनाम के नाते रहूगण का | अनुरोध किया, जिस पर इन्द्र ने अमृत छिड़क कर निर्देश प्रायः प्राप्त है। किन्तु 'रहूगण आंगिरस' के गौतम को प्राणदान दिया। तत्पश्चात् इसने गौतम को निर्देश से प्रतीत होता है कि, रहूगण एक व्यक्तिनाम भी विपुल धन आदि दे कर बिदा किया (म. शां १६३था। १६७; गौतम ५. देखिये)। राका--अंगिरस् ऋषि की कन्या, जो भागवत के राजन्-सूर्य के दो द्वारपालों में से एक (भवि. ब्राह्म. अनुसार, उसे श्रद्धा नामक पत्नी से उत्पन्न हुई थी। ७६)। २. एक वैदिक देवता, जो समृद्धि एवं उदारता की राजनि--उग्रदेव नामक राजा का पैतृक नाम (पं. ब्रा. देवी मानी गयी है (ऋ. २.३२, ५.४२)। | १४.३.१७; ते. आ. ५.४.१२)। 'रजन' का वंशज होने से ३. एक राक्षसकन्या,. जो सुमाली राक्षस एवं केतुमती | उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। की कन्या थी । कुबेर की आज्ञा के अनुसार, यह विश्रवस् । राजन्यर्षि--सिंधुक्षितू राजा के लिए प्रयुक्त एक उपाधि ऋषि की परिचयां में रहती थी। आगे चल कर, उस ऋषि (पं. बा. १२.१२.६ )। क्षत्रिय ब्राह्मण राजाओं के लिए से इसे खर नामक राक्षस एवं शूर्पणखा नामक राक्षसी | यह उपाधि प्रयुक्त की जाति होगी। उपन्न हुयी (म. व. २५९.३-८)। यह रावण-कुंभकर्ण | राजवर्तप--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। इसे एवं विभीषण की सौतेली माँ थी, जो सारे पुत्र विश्रवस | 'राजवल्लभ' नामान्तर भी प्राप्त था। ऋषि को पुष्पोत्कटा नामक पत्नी से उत्पन्न हुये थे। राजवल्लभ-राजवर्तप नामक कश्यपकुलोत्पन्न गोत्रकार ४. द्वादश आदित्यों में से धाता नामक आदित्य की | का नामान्तर | पत्नी। राजस्तंबायन--यज्ञवचस् नामक आचार्य का पैतृक रामकर्णि--राहकर्णि नामक अंगिराकलोत्पन्न गोत्रकार | नाम (श. बा. १०.४.२.१)। राजस्तंब का वंशज होने का नामान्तर। से उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। रागा--बृहस्पति आंगिरस ऋषि की सात कन्याओं | राचश्रवस वेन-देवी भागवत में निर्दिष्ट एक व्यारा । में से एक, जिसकी माता का नाम शुभा था। इसपर राजाज-शंभु राजा का एक पुत्र (ब्रह्मांड. ३.५.४० )। समस्त प्राणिसृष्टि अनुराग करती थी, जिस कारण इसका राजाधिदेव--(सो. विदू.) एक राजा, जो मत्स्य नाम रागा हुआ (म. व. २०८.४)। एवं पद्म के अनुसार, विदूरथ राजा पुत्र था । वायु में इसे राजक--(प्रद्योत. भविष्य.) एक राजा, जो भागवत | राज्याधिदेव कहा गया है। इसके पुत्र का नाम 'शोणाश्व' के अनुसार विशाखयूप राजा का पुत्र था। वायु एवं | था (पन. स. १३)। ब्रह्मांड में इसे 'अजक', विष्णु में 'जनक' एवं मत्स्य | राजाधिदेवी--सोमवंशीय शूर राजा की पाँच में 'सूर्यक' कहा गया है। वायु के अनुसार इसने ३१ | कन्याओं में से कनिष्ठ कन्या, जिसकी माता का नाम मारिषा वर्षों तक,एवं मस्त्य तथा ब्रह्म के अनुसार इसने २१ वर्षों था। इसका विवाह अवंती देश का राजा जयसेन से हुआ तक राज्य किया था। इसके पुत्र का नाम नंदिवर्धन था। था (भा. ९.२४.३१; १०.५८.३१)। राजकेशिन-अंगिराकुलोत्पन्न एक ऋषि। राजिक--एक आचार्य, जो वायु एवं ब्रह्मांड के राजधर्मन्-एक धर्मप्रवृत्त बकराज, जो कश्यपऋषि अनुसार, व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से हिरण्यनाभ का पुत्र एवं ब्रह्मा का मित्र था (म. शां. १६३. १८-१९)। ऋषि का शिष्य था। इसे नाडिजंब नामान्तर भी प्राप्त था। एक बार गौतम राज्ञ--सूर्य का द्वारपाल (भवि. ब्राहा. १२४)। नामक एक कृतघ्न ब्राह्मण इससे मिलने आया, जिसका | राज्ञी--रैवत मनु की एक कन्या, जो विवस्वान् उचित आदर सत्कार कर, इसने अपने विरुपाक्ष नामक | आदित्य के तीन पत्नियों में से द्वितीय थी। इसके पुत्र राक्षस मित्र से उससे विपुल धन दिलाया। आगे चल कर | का नाम रेवत था। प्रा. च. ९१] ७२१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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