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राम
प्राचीन चरित्रकोश
राम
हतप्रभ एवं
आदशपुत्र,
इन तीनो आम
४०.१ ४.१६.१)। 'ऋतुजात' एवं व्याघ्रपद्' नामक कौनसी कठिनाईयाँ उठानी पडती है, एवं मनस्ताप सहना आचार्यों का वंशज होने के कारण, इसे 'कातुजातेय' पड़ता है, इसका चित्रण व्यास-प्रणीत महाभारत में किया एवं 'वैयाघ्रपद्य' पैतृक नाम प्राप्त हुए होगे। गया है। वहाँ व्यक्तिधर्म को गौणत्व दे कर, समाजधर्म
राम जामदग्न्य-एक वैदिवः सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. एवं राष्ट्रधर्म का चित्रण प्रमुख उद्देश्य माना गया है। ११०, कात्यायन सर्वानुक्रमणी)। परशुराम जामदग्न्य एवं उसके विपरीत, व्यक्तिगत सद्गुण एवं वैयक्तिक धर्माचरण यह दोनों एक ही व्यक्ति थे (परशुराम देखिये)। का आदर्श राम दाशरथि को मान कर, उसका चरित्रचित्रण
राम दाशरथि-अयोध्या का एक सुविख्यात सम्राट, वाल्मीकि के द्वारा किया गया है। इस कारण श्रीकृष्ण जो भारतीयों की प्रातःस्मरणीय विभूति मानी जाती है। जैसा राजनीतिज्ञ, अथवा युधिष्ठिर जैसा धर्मज्ञ न होते हुए यह अयोध्या के सुविख्यात राजा दशरथ के चार पुत्रों में | भी, राम प्राचीन भारतीय इतिहास का एक अद्वितीय पूर्णसे ज्येष्ठ पुत्र था। ई. पू. २३५०-१९५० यह काल | पुरुष प्रतीत होता है। भारतीय इतिहास में अयोध्या के रघुवंशीय राजाओं का
प्राचीन क्षत्रिय समाज में, जब बहुपत्नीकत्व रूढ काल माना जाता है, जिसके वैभव की परमोच्च सीमा राम
था, उस समय एक पत्नीकत्व का आदर्श इसने दाशरथि के राज्यकाल में हुई।
प्रस्थापित किया था। परशुराम जामदग्न्य के पृथ्वी आदर्श पुरुषश्रेष्ठ--एक आदर्श पुरुषश्रेष्ठ मान कर, |
निःक्षत्रिय करने की प्रतिज्ञा के कारण, साग क्षत्रिय समाज वाल्मीकि रामायण में राम का चरित्रचित्रण किया गया
जब हतप्रभ एवं निर्वीर्य बन गया था, उस समय आदर्श है। प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार, आदर्शपुत्र, क्षत्रिय व्यक्ति एवं राजा का आचरण कैसा हो, इसका आदर्श पति, आदर्श राजा इन तीनो आदर्शों का अद्वितीय
वस्तुपाठ राम ने क्षत्रियों के सम्मुख रख दिया। रावण संगम राम के जीवनचरित्र में हुआ है । एकवचन, एक-| जैसे राक्षसों के आक्रमण के कारण, जब सारा दक्षिण भारत पत्नी, एकबाण इन व्रतों का निष्ठापूर्वक आचरण करनेवाला |
ही नहीं, बल्कि गंगा घाटी का प्रदेश ही भयभीत हो चुका राम सर्वतोपरी एक आदर्श व्याक्ति है, जिसका सारा |
था, उस समय राम ने अपने पराक्रम के कारण, इस जीवन-चरित्र आदश जीवन का एक वस्तुपाठ है ।अहिंसा, | सारे प्रदेश को भीतिमुक्त किया, एवं इस तरह केवल दया, अध्ययन, सुस्वभाव, इंद्रियदमन एवं मनोनिग्रह इन |
| उत्तर भारत में ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी आर्य
मा छः गुणों से युक्त एक आदर्श व्याक्ति का जीवनचरित्र
संस्कृति की पुनःस्थापना की । इस तरह एक व्यक्ति लोगों के सम्मुख रखना, यही वाल्मीकि रामायण का प्रमुख
एवं एक राजा के नाते राम के द्वारा किया गया कार्य
अद्वितीय ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। इस दृष्टि से वाल्मीकि रामायण के प्रारंभ के श्लोक दर्शनीय है, जहाँ वाल्मीकि ऋषि नारद से पृथ्वी के एक | नाम--यद्यपि उत्तरकालीन साहित्य में 'रामचंद्र' आदर्श व्यक्ति का जीवनचरित्र सुनाने की प्रार्थना करते नाम से राम दाशरथि का निर्देश अनेक बार प्राप्त है,
फिर भी वाल्मीकि रामायण में सर्वत्र इसे राम ही कहा को न्वस्मिन् सांप्रतं लोके, गुणवान् कश्च वीर्यवान्। | गया है । क्वचित एक स्थल में इसे चंद्र की उपमा दी (इस पृथ्वी में जो गुणसंपन्न, पराक्रमी, धर्मज्ञ, सत्यवक्ता,
गयी है ( वा. रा. यु. १०२.३२ )। संभव है, चंद्र से इस
सादृश्य के कारण, इसे उत्तरकालीन साहित्य में 'रामचंद्र' दृवत, चारित्र्यवान् , ज्ञाता, लोकप्रिय, संयमी, तेजस्वी ऐसे व्यक्ति का जीवनचरित्र मैं सुनना चहाता है। नाम प्राप्त हुआ होगा।
वैयक्तिक सद्गुणों का आदर्श-इस तरह वैयक्तिक | जन्म--जैसे पहले ही कहा गया है, ई. पू. २०००सद्गुणों का उच्चतम आदर्श, समाज के सम्मुख रखना | १९५० लगभग यह राम दाशरथि का काल माना गया यह वाल्मीकि-प्रणीत रामकथा का प्रमुख उदेश है। है । भारतीय परंपरा के अनुसार, वैवस्वत मन्वन्तर के इसकी तुलना महाभारत में वर्णित युधिष्ठिर राजा से ही | चौबीसवे त्रेतायुग में यह उत्पन्न हुआ था (ह. व १.४१%, केवल हो सकती है। किन्तु युधिष्ठिर का चरित्रचित्रण | वायु. ७०.४८%; ब्रह्मांड. ३.८.५४; ब्रह्म. २१३.१२४; करते समय एक तत्त्वदर्शी एवं धर्मनिष्ठ राजा को | मत्स्य. ४७.२४७; भा. ९.१०.५२; पन. पा. ३६ )। कौटुंबिक एवं सामाजिक घटक के नाते कदम कदम पर | महाभारत के अनुसार, यह अट्ठाईसवें त्रेतायुग में उत्पन्न
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