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रत्नावलि
प्राचीन चरित्रकोश
रथीतर
लोक का रत्नचूड नामक राजा पति के रूप में प्राप्त रथराजी--वसुदेव की पत्नियों में से एक । हुआ (कंद. ४.२.६७)।
रथवर--(सो. क्रोष्टु.) एक यादव राजा, जो वायु रथकार--एक जातिविशेष, जो वैश्यों से हीन, किन्तु के अनुसार भीमरथ राजा का पुत्र था। शूद्रों से श्रेष्ठ मानी जाती थी (क. सं. १७.१३; श. बा. रथवाहन--मत्स्यनरेश विराट के भाईयों में से एक। १३.४.२.१७)। याज्ञवल्क्य के अनुसार, 'माहिष्य' भारतीय युद्ध में यह पाण्डवों के पक्ष में शामिल था (क्षत्रिय पति एवं वैश्य पत्नी का पुत्र), एवं 'करणी' (म. द्रो. १३३.३९)। विश्य पति एवं शूद्र पत्नी की कन्या) इन दोनों की संतान रथवीति दार्य-एक ऋषि, जो हिमालय के दूरस्थ रथकार नाम से कहलायी जाती थी (याज्ञ. १.९५)। पर्वतों में गायों से परिपूर्ण (गोमतीर अनु ) प्रदेश में
किन्त ऐतिहासिक दृष्टि से, इन्हे रथ का निर्माण करने | रहता था (क. ५.६१.१७-१९)। एक बार आधगु वाली एक जातिविशेष मानना ही अधिक सयुक्तिक प्रतीत
श्यावाश्व नामक आचार्य ने, तरंत नामक राजा के यज्ञ में होता है । हिलेब्रान्ट के अनुसार, ये लोग अनु जाति से ही होमकर्म करने के लिए इसे आमंत्रित किया । उस समय उत्पन्न हुये थे। अनु एवं रथकार ये दोनो जातियाँ उन
यह अपनी कन्या को साथ ले कर यज्ञ करने गया । वहाँ ऋभुओं की उपासक थी, जो स्वयं अत्यंत उत्कृष्ट रथ श्यावाश्व के पिता अर्चनानस् आत्रेय ने अपने वेदवेत्ता पुत्र बनाती थी (वेदिशे माइथोलोजी, ३.१५२-१५३)। के लिए इसके कन्या की माँग की । किन्तु इसने साफ़
रथकृत--एक यक्ष, जो धातृ नामक आदित्य के साथ | इन्कार कर दिया, एवं श्यावाश्व को अपने यज्ञ से बाहर चैत्रमाह में भ्रमण करता है (भा. १२.११.३३)। निकाल दिया। किन्तु अंत में तरन्त राजा के कहने पर ' रथजूति---अथर्ववेद में निर्दिष्टं एक व्यक्तिनाम | इसने अपनी कन्या श्यावाश्व को दे दी (ऋ. सायणभाष्य (अ. वे. १९.४४.३)।
५.६१)। रथध्वज-विदेह देश के कुशध्वज जनक राजा का | बृहद्देवता के अनुसार, तरन्त राजा को शशीयसी पिता। इसकी पौत्री का नाम, वेदवती था ( वेदवती नामक पत्नी से एक पुत्र उत्पन्न हुआ था, जिसके लिए देखिये)।
उसने रथवीति के कन्या की माँग की थी (बृहद्दे. ५. रथध्वान-वीर नामक अग्नि का नामान्तर (वीर १०. ५०-८१)। देखिये)।
| आधुनिक विद्वानों के अनुसार, रथवीति दार्म्य एक रथन्तर--एक. अग्नि, जो पांचजन्य नामक अग्नि का आचार्य न हो कर एक राजा था, एवं श्यावाश्व इसका पुत्र पुत्र था (म. व. २१०.७)। इसे 'तरसाहस' नामक था। श्यावाश्व ने अपने पिता एवं मरुतों की सहाय्यता से दो भाई थे। यह पांचजन्य के मुख से प्रकट हुआ था। अपने लिए एक पत्नी प्राप्त की थी, जिसका निर्देश
२. एक साम, जो मूर्तिमान स्वरूप में ब्रह्मा की सभा में ऋग्वेद के उपर्युक्त सूक्त में प्राप्त है (ओल्डेनवर्गः ऋग्वेद उपस्थित रहता था (म. स. ११.२१)। इसीके द्वारा | नोटेन. १.३५३-३५४)। वसिष्ठ ऋषि ने इन्द्र का मोह दूर कर उसे प्रबुद्ध बनाया था। रथसेन--पाण्डव पक्ष का एक योद्धा, जिसके रथ के
रथन्तरी अथवा रथन्तर्या--पूरुवंशीय दृष्यन्त राजा अश्व मटर के फूल के समान रंगवाले थे, एवं उनकी की माता, जो ईलिन (इलिल) राजा की पत्नी थी
रोमराजी श्वेतलोहित वर्ण की थी (म. द्रो. २२.५८)। (म. आ. ९०.२९) । दृष्यन्त के अतिरिक्त इसे निम्न- रथस्वन--एक यक्ष, जो मित्र नामक सूर्य के साथ लिखित चार पुत्र थे:-शूर, भीम, प्रवसु एवं वसु ज्येष्ठ माह में भ्रमण करता है (भा. १२.११.३५)। (म. आ. ८९.१५)।
रथाक्ष--स्कंद एक का सैनिक (म. श. ४४.५८)। रथप्रभु--वीर नामक अग्नि का नामान्तर (वीर १०.
पाठभेद-' झषाक्ष' देखिये)।
रथाग्रणी--एक योद्धा, जो रामचन्द्र के अश्वमेधीय रथप्रोत दार्य-मैत्रायणि संहिता में निर्दिष्ट एक | अश्व के संरक्षण के लिए शत्रन के साथ उपस्थित था आचार्य ( मै. सं. २.१.३)। कई अभ्यासकों के अनुसार, (पन. पा. ११)। यह एक पुरोहित न हो कर एक राजा था । दर्भ का वंशज | रथीतर--(सू. इ.) एक राजा, जो मनु वैवस्वतहोने से इसे 'दार्थ्य' पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। । कुलोत्पन्न नाभागवंशीय पृषदश्व राजा का पुत्र था।
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