SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 738
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रजि प्राचीन चरित्रकोश रत्नावलि सायणाचार्य के अनुसार, रजि एक स्त्री का नाम है, जिसे | यह ब्रह्मा की सभा में रह कर उसकी उपासना करने इंद्र ने पिठीनस् राजा को प्रदान किया था। लगी (म. स. ११.१३२%)। रजेयु-(सो. पूरु.) एक राजा, जो वायु के अनुसार अगले जन्म में इसे शंबरासुर की पत्नी मायावती का रौद्राश्व राजा का पुत्र था। भागवत एवं विष्णु में इसे | जन्म प्राप्त हुआ, जिस समय इसने श्रीकृष्णपुत्र प्रद्युम्न 'ऋतेयु,' एवं मत्स्य में इसे 'औचेयु' कहा गया है। के रूप में अपने पति कामदेव को पुनः प्राप्त किया रज्जुकंठ-एक व्याकरणकार, जिसका उल्लेख | ( पझ. पा. ७०, प्रद्युम्न देखिये )। अपने इस जन्म में पाणिनि के अष्टाध्यायी में एक वैदिक शाखाप्रवर्तक ऋषि | इसकी उम्र अपने पति प्रद्युम्न से अधिक थी ( पद्मा. भू. के नाते किया गया है (पाणिनि देखिये )। १०३)। रज्जुबाल-जटायु के पुत्रों में से एक। २. अलकापुरी की एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्र के रज्जुभार-एक व्याकरणकार, जिसका उल्लेख पाणिनि | स्वागतसमारोह में कुवेर भवन में नृत्य किया था (म.. के अष्टाध्यायी में एक वैदिक शाखाप्रवर्तक ऋषि के नाते अनु. १९.४५)। किया गया है ( पाणिनि देखिये) ३. अजनाभ वर्ष के राजा ऋषभदेव के वंशज विभु रण-एक राक्षस, जिसका हिरण्याक्ष एवं देवताओं के | के राजा की पत्नी (भा.५. १५. १६)। इसके पुत्र का दरम्यान हुए युद्ध में वायु के द्वारा वध हुआ था (पद्म. नाम पृथुषेण था। सू. ७०५)। रतिकला--श्रीकृष्ण की एक प्राणसखी। ... रणक--(सू. इ. भविष्य.) अयोध्या का एक राजा, | रतिगुण--एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं प्राधा के जो भागवत के अनुसार क्षुद्रक राजा का पुत्र था। इसे | पुत्रा पत्र था। इसे पुत्रों में से एक था। 'कुलक' नामान्तर भी प्राप्त था। रतिनार--पुरुवंशीय रंतिभार राजा का नामान्तर । रणंजय-(सू. इ. भविष्य.) अयोध्या का एक राजा, | __रतिविदग्धा-हस्तिनापुर की एक वेश्या, जिसे जो कृतंजय राजा का पौत्र, एवं बात राजा का पुत्र था। ब्राह्मणों को अन्नदान करने के पुण्य के कारण, मृत्य की भागवत, विष्णु एवं भविष्य में इसे कृतंजय राजा का ही | पश्चात् वैकुंठ की प्राप्ति हुयी ( पन. क्रि. २०)। पत्र कहा गया है। मत्स्य के अनुसार, इसे 'रणेजय' रातिसवेस्वा--श्रीकृष्ण की एक प्राणसी (पन.. नामान्तर प्राप्त था। पा. ७४)। . SO-वैवस्वत मनपन पत्र के तीन पत्रों में से रत्नकुटा--अत्रि ऋषि की पत्नियों में से एक (ब्रह्मांड. एक (धृष्ट देखिये)। ३. ७४-८७)। रणाश्व-(सू. इ.) अयोध्या का एक राजा, जो | रत्नग्रीव-कांचन नगरी का एक राजा, जो विष्णु का मत्स्य एवं पद्म के अनुसार संहताश्व राजा का पुत्र था। परम भक्त था । नील पर्वत पर श्रीविष्णु की उपासना करने के कारण, इसे सरूप मुक्ति प्राप्त हो कर, यह रणेजय-अयोध्या के रणंजय राजा का नामान्तर। विष्णुलोकवासी बन गया ( पद्म. पा. १७-२२)। रणोत्कट--स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४. रत्नचूड--पाताललोक का एक राजा (रत्नावलि २६४%)। देखिये)। रता-दक्षप्रजापति की एक कन्या, जो धर्मऋषि । रत्ना-यादवराजा अक्रूर की पत्नियों में से एक । की पत्नी थी । अहन् नामक वसु इसका पुत्र था (म. रत्नाकर--एक वैश्य, जो एक बैल के द्वारा मारा आ. ६०.१९)। | गया था। इसकी मृत्यु के समय धर्मस्व नामक एक ब्राहाण रति-धर्म ऋषि के पुत्र कामदेव की पत्नी (म. आ. | ने इस पर गंगोदक का संमार्जन किया, जिस कारण इसे ६०.३२; भा १०. ५५.७)। यह दक्षप्रजापति के धर्म- | विष्णुलोक की प्राप्ति हो गयी (पद्म. क्रि. ७)। बिन्दुओं से उत्पन्न हुयी थी (कालि.३; शिव, रुद्र. स. रत्नांगद-पाण्ड्य देश के वज्रांगद राजा का नामान्तर ४)। शिव के तृतीय नेत्र से कामदेव का भस्म होने पर, | (वज्रांगद देखिये)। यह अत्यधिक शोक करने लगी, जब शिव ने स्वयं प्रकट | रत्नावलि--एक राजकन्या, जिसे रत्नेश्वर नामक हो कर इसे सांत्वना दी ( पद्म. सु. ४३)। पश्चात्, शिवमंदिर में शिव की नृत्योपासना करने के कारण, पाताल ७१६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy