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प्राचीन चरित्रकोश
राज
इसकी स्मरी संपत्ति व्यतीत हुयी, एवं यह निष्कांचन बन रजन कोणेय अथवा कोणेय--एक आचार्य, जो गया।
अंधा था (तै. सं. २.३.८.१; क. सं. २७.२)। क्रतुजित् इसी अवस्था में विश्वामित्र ऋषि का शिष्य कौत्स इसके | जानकि नामक आचार्य ने इसके लिए सफलतापूर्वक यज्ञ पास द्रव्य की याचना करने आया, जो उसे अपनी गुरु- संपन्न कर, इसे पुनः दृष्टि प्रदान की थी (क. सं. ११.१)। दक्षिणा की पूर्ति करने के लिए आवश्यक था । यह स्वयं इसके पुत्र का नाम उग्रदेव राजनि था (पं. ब्रा. १३.४. द्रव्यहीन होने के कारण, कौत्स की माँग पूरी करने के | ११)। लिए इसने कुबेर पर आक्रमण किया, एवं उसे इसके अथर्ववेद में इसे कुष्टरोगी बताया गया है, एवं रजनी राज्य पर स्वर्ण की वर्षा करने के लिए मजबूर किया । इस नामक पौधे के द्वारा यह पुनः निरोगी होने का निर्देश स्वर्ण में से कौत्स ने चौदह करोड़ सुवर्णमुद्रा दक्षिणा के | प्राप्त है (ब्लूमफिल्ड, अ. वे. २६६.२६७)। रूप में स्वीकार ली, एवं उन्हें अपने गुरु विश्वामित्र को
रजि-(सो. पुरूरवस् .) पुरूरवस्वंशीय एक राजा, दक्षिणा के रूप में दी (स्कंद. २.८.५)। रघुवंश में यही
जो प्रतिष्ठान देश के आयु राजा के पाँच पुत्रों में से एक था। कथा प्राप्त है, किन्तु वहाँ कौत्स के गुरु का नाम विश्वा
इसकी माता का नाम प्रभा था, जो दानव राजा स्वर्भानु मित्र की जगह वरतंतु बताया गया है (र, वं. ५)।
की कन्या थी (म. आ. ७०.२३)। इसके अन्य चार महाभारत के अनुसार, इसे अपने पूर्वज युवनाश्व राजा | भाईयों के नाम क्रमशः नहुष, क्षत्रवृद्ध, (वृद्धशर्मन् ), रंभ, के द्वारा दिव्य खड्ग की प्राप्ति हुयी थी, जो आगे चल | एवं अनेनस् (विपाप्मन्) थे। कर इसने अपने वंशज हरिणाश्व को प्रदान किया था यह एवं इसके 'राजेय क्षत्रिय' नामक वंशज इन्द्र के (म. शां. १६०.७६)।
साथ स्पर्धा करने से विनष्ट होने की कथा कई पुराणों में रघु के पश्चात् इसका पुत्र अज अयोध्या का राजा | प्राप्त है। यह स्वयं अत्यंत पराक्रमी था, एवं युद्ध में जिस हुआ, जिसका पुत्र दशरथ एवं पौत्र राम दाशरथि इक्ष्वाकु | पक्ष में रहता था, उसे विजय प्राप्त कराता था। एक बार वंश के सर्वश्रेष्ठ राजा साबित हुयें।
देवासुर संग्राम में इंद्रपद प्राप्ति की शर्त पर यह देवों . रंगदास-एक शद्र, जो वेंकटाचल पर्वत पर स्थित
के पक्ष में शामिल हुआ। उस समय इन्द्र भी स्वयं दुर्बल श्रीनिवास का परमभक्त था । इसने वेंकटाचल में अनेक | बन गया था, एवं स्वग का राज्य सम्हालने की ताकद उसमें मंदिर बँधवाये थे (स्कंद. २.१.९)।
नही थी। इस कारण इंद्र ने खुशी से अपना राज्य इसे रंगवेणी--सारंग नामक गोप की कन्या. जो पूर्वजन्म प्रदान किया । इस तरह यह स्वयं इंद्र बन गया। में हरिधामन् नामक ऋषि थी (हरिधामन् देखिये)। आगे चल कर इससे सैंकडो पुत्र उत्पन्न हये, जो 'राजेय . रचना--विरोचन दैत्य की यशोधरा नामक कन्या का | क्षत्रिय' सामूहिक नाम से सुविख्यात थे। वे सारे पुत्र नामान्तर (यशोधरा देखिये)।
नादान थे, एवं इंद्रपद सम्हालने की ताकद उनमें से रज-एक सप्तर्षि, जो वसिष्ठ एवं ऊर्जा के पुत्रों में |
किसी एक में भी न थी। इस कारण, इन्द्र ने देवगुरु से एक था।
बृहस्पति की सलाह से उन पुत्रों को भ्रष्टबुद्धि बना कर २. धर नामक वसु के पुत्रों में से एक ।
उनका नाश किया, एवं उनसे इंद्रपद ले लिया (भा. ९. ३. (स्वा. नाभि.) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार |
१७; वायु . ९२. ७६-१००; ब्रह्म ११, ह. वं. १.२८; विरज राजा का पुत्र था।
मत्स्य. २४. ३४-४९)। ४. स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.६८)। | वायु में इसे विष्णु का अवतार बताया गया है, एवं
रजत-शक्राचार्यपुत्र के वरत्रिन् के तीन यज्ञविरोधी | इसके द्वारा कोलाहल पर्वत पर दानवों के साथ किये गये पुत्रों में से एक (वरत्रिन् देखिये)।
युद्ध का निर्देश किया गया है । इस युद्ध में देवताओं की रजतनाभ--एक यक्ष, जो यक्ष एवं ऋतुस्थला के | सहाय्यता से इसने दानवों पर विजय प्राप्त की थी ( वाय. पुत्रों में से एक था। इसकी पत्नी का नाम मणिवरा था, | ९९.८६)। जो अनुहाद नामक राक्षस की कन्या थी। उससे इसे | २. एक दानव राजा, जिसका इंद्र ने पिठीनस् नामक मणिवर एवं मणिभद्र नामक दो पुत्र उत्पन्न हुये थे। राजा के संरक्षण के लिए वध किया था (ऋ.६.२६.६)।