SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 736
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रक्षस् प्राचीन चरित्रकोश रघु इन्हें समाविष्ट किया गया हैं (पा. सू. ५.३.११७; पा- | अपने पुत्र यदु को 'यातुधान' नामक राक्षस संतति निर्माण दिगण)। भांडारकरजी के अनुसार, शतपथ ब्राह्मण में | करने का शाप देने की कथा प्राप्त है ( यदु देखिये)। असुरों के मगध ( दक्षिण बिहार) में स्थित उपनिवेशों का सामान्य उपाधि-आगे चल कर, राक्षस एवं दैत्य निर्देश प्राप्त है। एक वांशिक उपाधि न रह कर, किसी भी दुष्ट, धर्मविहीन एवं खलप्रवृत्त राजा को ये उपाधियाँ लगायी जाने लगी, (२) रक्षस--उत्तरी बलूचिस्थान के चगाई प्रदेश में जिसके उदाहरण निम्नप्रकार है:-१. यादवराजा मधु, रहनेवाले आधुनिक रक्षानी लोग संभवतः यही होंगे। जो वास्तव में पूरुवंशीय ययाति एवं यदु राजाओं का इन्हे राक्षस भी कहते थे। वंशज था; २. कंस, जो वास्तव में मथुरा देश का यादव (३) पिशाच-प्राचीन वाङ्मय में कच्चा माँस खानेवाले | राजा था; ३. लवण माधव, जो मधु राजा का ही वंशज लोगों को 'पिशाच' सामुहिक नाम प्रदान किया गया है। | था; ४. जरासंध, जो वास्तव में मगध देश का भरतवंशीय ग्रीअरसन के अनुसार, उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रदेश में | राजा था। इसी तरह बौद्ध तथा जैन लोगों को, एवं दक्षिण दरदिस्थान एवं चितराल प्रदेश के लोगों में कच्चा माँस खाने | भारत के द्रविड लोगों को पुराणों में असुर एवं दैत्य कहा का रिवाज था, जिस कारण, इस प्रदेश के लोग ही प्राचीन गया है (ब्रह्म. १६०.१३; विष्णु. ३.१७.८-९)। पिशाच लोग होने की संभावना है। बर्नेल के अनुसार, रक्षा--ऋक्ष ऋषि की बहन, जो प्रजापति की पत्नी आधुनिक लमगान प्रदेश में रहनेवाले पशाई काफि | थी। इसके पुत्र का नाम जांबवत् था (ब्रह्मांड.३.७.२९९लोग ही प्राचीन पिशाच लोग थे (पिशाच देखिये)। ३००)। पुराणों में--पुराणों में असुर, दानव, दैत्य एवं राक्षस रक्षिता--एक अप्सरा, जो कश्यप एवं प्राधा की जातियों का स्वतंत्र निर्देश प्राप्त है (मत्स्य. २५.८; १७ | कन्याआ म स एक था । ३०; ३७; २६.१७)। किन्तु इन ग्रंथों में इन सारी | रक्षोहन् ब्राह्म--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ.१०. जातियों का स्वतंत्र अस्तित्व नष्ट हो कर, अनार्य एवं दुष्ट लोगों | १६२)। के लिए ये सारे नाम उपाधि की तरह प्रयुक्त किये गये प्रतीत रघु-(सू. इ.) एक सुविख्यात इक्ष्वाकुवंशीय राजा, होते हैं । महाभारत एवं पुराणों में निर्दिष्ट रक्षस् ( राक्षस), जिसका निर्देश महाभारत में प्राप्त प्राचीन राजाओं की असुर, दैत्य एवं दानव निम्न हैं:-१. वृषपर्वन् , जो दैत्य नामावलि में प्राप्त है (म.आ.१.१७२)। भागवत, विष्णु एवं दानवों का राजा था, एवं जिसकी कन्या शर्मिष्ठा का एवं वायु के अनुसार, यह दीर्घबाहु राजा का पुत्र, एवं विवाह पूरुवंशीय ययाति राजा से हुआ था; २. शाल्वलोग, | दिलीप खट्वांग राजा का पौत्र था। मत्स्य एवं पद्म में इसे जिन्हे दानव एवं दैत्य कहा गया है, एवं जिनका राज्य अबु निन नामक राजा का पुत्र कहा गया है (पन. सृ.८)। किन्तु पहाड़ी के प्रदेश में था; ३. हिडिंब, जो राक्षसों का राजा निघ्न राजा के पुत्र का नाम रघूत्तम था, जो संभवतः इक्ष्वाकुथा, एवं जिसकी बहन हिडिंबा का विवाह भीमसेन पाण्डव वंशीय होते हुये भी रघु राजा से अलग था (निम्न देखिये )। के साथ हुआ था; ४. घटोत्कच, जो राक्षसों का राजा था, कालिदास के रघुवंश में इसे दिलीप राजा का पुत्र एवं जो भारतीय-युद्ध में पाण्डवों के पक्ष में शामिल था; | कहा गया है, जो उसे नंदिनी नामक धेनु के प्रसाद ५. भगदत्त, जो प्राग्ज्योतिषपुर के म्लेंच्छ लोगों का राजा से प्राप्त हुआ था (र. व. २)। रघुवंश में प्राप्त यह था, एवं जिसके राज्य पर पूर्वकाल में सदियों तक दानव, कथा पन में भी पुनरुक्त है (पन. उ. २०३)। दैत्य एवं दस्युओं का राज्य था; ६. हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष यह इक्ष्वाकुवंश का एक श्रेष्ठ राजा होने के कारण इसे प्रह्लाद एवं बलि, जो सर्वश्रेष्ठ असुरसम्राट माने जाते थे; अयोध्या का पहला राजा कहा गया है ( ह. वं. १.१५. ७. रावण, जो लंका में स्थित राक्षसों के राज्य का अधिपति २५)। इसकी महत्ता के कारण, आगे चल कर, इक्ष्वाकुथा; ८. बाण, जो दैत्यों का राजा था, एवं जिसकी कन्या वंश 'रघुवंश' नाम से सुविख्यात हुआ। उषा का विवाह श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से हुआ था। पराक्रम-इसके पराक्रम एवं दानशूरता की कथा रघु___पुराणों में प्राप्त पुलस्त्य, पुलह एवं अगस्त्य ऋषि की वंश एवं स्कंद में प्राप्त है । एक बार दशदिशाओं में विजय सतान राक्षस कही गयी हैं (वायु. ७०.५१-६५)। कर, इसने विपुल संपत्ति प्राप्त की, एवं अपने गुरु वसिष्ठ ययाति राजा के सुविख्यात आख्यान में, उसके द्वारा की आज्ञानुसार विश्वजित् यज्ञ किया। उस यज्ञ के कारण, ७१४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy