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________________ युधिष्ठिर प्राचीन चरित्रकोश युधिष्ठिर साबित किया है। इसी कारण मैं तुमसे अत्यधिक प्रसन्न हूँ| इस जानकारी के अनुसार, सोलहवें वर्ष में यह सर्व: (म. स्व. ५.१९)। प्रथम हस्तिनापुर आया। वहाँ तेरह वर्ष बिताने के बाद छः यमधर्म के द्वारा निर्दिष्ट युधिष्ठिर की सत्वपरीक्षा के महीने तक जतुगृह में, छः महीने एकचक्रा में, एक तीन प्रसंग निम्न है:-(१) यक्षप्रश्र, जिस समय यम- वर्षे द्रुपद के घर में, पाँच वर्ष दुर्योधनादि के साथ तथा धर्म ने यक्ष का रूप ले कर युधिष्ठिर के पाण्डव बांधवों में तेइस वर्ष इन्द्रप्रस्थ में बितायें। बाद में कौरवों द्वारा से किसी एक को जीवित करने का आश्वासन दिया था। द्यूतक्रीड़ा में हार जाने के कारण बारह वर्ष बनवास इस समय युधिष्ठिर ने माद्री से उत्पन्न अपना सौतेला भाई तथा एक वर्ष अज्ञातवास में रहा। अज्ञातवास के सहदेव को जीवित करने को कहा था। उपरांत युद्ध हुआ, तथा युद्ध के बाद इसने छत्तीस वर्षों (२) स्वर्गारोहण के समय, यमधर्म ने कुत्ते का रूप | तक राज्य किया। इस प्रकार इसने अपने जीवन के एक धारण कर युधिष्ठिर की परीक्षा लेनी चाहीं । उस अवसर सौ आठ वर्ष बितायें। इसके छोटे भाई इससे क्रमशः एक पर कुत्ते को साथ ले कर ही स्वर्ग में प्रवेश करने का निर्धार एक वर्ष से छोटे थे। कई ग्रंथों के अनुसार इसने नौ वर्षों युधिष्ठिर ने प्रकट किया, एवं कुत्ते के बगैर स्वर्ग में प्रवेश तक राज्य किया था (गर्ग. सं. १०.६०.९)। किन्तु करने से इन्कार कर दिया। यह जानकारी गलत प्रतीत होती है। (३) स्वर्ग में प्रवेश करने के पश्चात्, इसने अपने ___ कालनिर्णय-पुराणों में प्राप्त परंपरा के अनुसार, भाईयों के साथ नर्क में रहना पसंद किया । भारतीय युद्ध का काल ई. पू. ३१०२ माना गया है । पश्चात् युधिष्ठिर ने स्वर्ग में स्थित मन्दाकिनी नदी में युधिष्ठिर के नाम से 'युधिष्ठिर शक ' अथवा 'कलि अब्द' स्नान कर अपने मानवी शरीर का त्याग किया, एवं यह नामक एक शक भी अस्तित्व में था, जिसका प्रारंभकाल दिव्य लोक में गया (म. स्व. ३.१९)। वहाँ इसकी पुराणों में ई. पू. ३१०२ बताया गया है। किन्तु शिलालेख ताम्रपटादि कौनसे भी ऐतिहासिक साहित्य में श्रीकृष्ण, अर्जुन आदि की भेंट हुयी । अन्त में यह यमधर्म 'युधिष्ठिर शक' का निर्देश प्राप्त नहीं है। इस कारण के स्वरूप में विलीन हुआ (म. स्व. ३.१९)। | आधुनिक योरिपियन विद्वान् । युधिष्ठिर शक ' की धारणा परिवार-युधिष्ठिर को द्रौपदी एवं पौरवी नामक दो निर्मूल एवं निराधार बताते हैं। पन्नियाँ थी। उन में से द्रौपदी से इसे प्रतिविंध्य आधुनिक विद्वानों के अनुसार भारतीय युद्ध का काल एवं पौरवी से देवक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (भा. ९.२२. इ. पू. १४०० माना जाता है (हिस्ट्री अॅन्ड कल्चर ऑफ २७-३०)। महाभारत में इसकी दूसरी पत्नी का नाम | इंडियन पीपल १. ३०४)। यद्यपि वेद एवं ब्राह्मण देविका, एवं उससे उत्पन्न इसके पुत्र का नाम यौधेय दिया ग्रंथों में भारतीय युद्ध का निर्देश प्राप्त नहीं है, फिर भी गया है (म. आ. ९०.८३)। सूत्र ग्रंथों में इस युद्ध का निर्देश प्राप्त है ( आश्व. गृ. ३. ___ भारतीय युद्ध में इसके दोनों पुत्र मारे गये, जिस कारण | ४.४; सां. श्री. १५.१६)। पाणिनि के काल में भारतीय इसके पश्चात् अभिमन्यु का उत्तरा से उत्पन्न पुत्र परिक्षित् युद्ध में भाग लेनेवाले कृष्ण-अर्जुनादि व्यक्तियों की हस्तिनापुर का राजा बन गया (भा. १.१५-३२)। देवता मान कर पूजा होने लगी थी। . परिक्षित् राजा के राज्यारोहण से द्वापर युग समाप्त हो तिथिनिर्णय--महाभारत में प्राप्त तिथिवर्णनों से प्रतीत कर, कलियुग प्रारंभ हुआ ऐसा माना जाता है। पुराणों में होता है कि, उस समय चान्द्रमास का उपयोग किया जाता प्राप्त प्राचीनकालीन राजवंश का इतिहास भी इसी घटना के | था। पाण्डवों ने अपना वनवास भी चान्द्रवर्ष के अनुसार साथ समाप्त होता है। परिक्षित् राजा के उत्तरकालीन | ही बिताया था (म. वि. ४२.३-६; ४७)। राजवंशों की पुराणों में प्राप्त जानकारी वहाँ भविष्यकालीन युधिष्ठिर के जीवन में से कई घटनाओं का तिथिवर्णन कह कर बतायी गयी है (परिक्षित देखिये)। महाभारत में प्राप्त है, जो निम्न प्रकार है : आयु-युधिष्ठिर की आयु के संबंध में सविस्तृत जानकारी युधिष्ठिर का जन्म-अश्विन शुक्ल । महाभारत कुंभकोणम् संस्करण में प्राप्त है। किन्तु भांडार-। कौरवों से द्यूत-अश्विन कृष्ण ८ । कर संहिता में उस जानकारी को प्रक्षिप्त माना गया है वनवास का प्रारंभ-कार्तिक शुक्ल ५। (म. आ. परि. १. क्र. ६७. पंक्ति ४५-६५)। कौरवों की घोषयात्रा--ज्येष्ठ कृष्ण.८ । ७०८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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