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________________ प्राचीन चरित्रकोश - युधिष्ठिर अशरावास की समाप्तिज्ये कृष्ण ८ | अभिमन्यु एवं उत्तरा का विवाह -- ज्येष्ठ कृष्ण ११ । भारतीय युद्ध का प्रारंभ - मार्गशीर्ष शुक्र १३ । अभिमन्यु की मृत्यु -- पौष कृष्ण ११ । भारतीय युद्ध की समाप्ति - पौष अमावस्या | युधिष्ठिर का हस्तिनापुर प्रवेश - माघ शुक्ल १ । अश्वमेध यज्ञ का प्रारंभ -- चैत्र शुक्ल १५ । युध्यामधि-- एक राजा को दाशराश युद्ध में मुदास के द्वारा मारा गया था (ऋ. ७.१८.२० ) । युयुत्सु - (सो. कुरु. ) धृतराष्ट्र का वैदय स्त्री से उत्पन्न पुत्र (म. आ. ५७.९९. ५२८ पंक्ति. ४; १७७. २ ) | क्षत्रिय पिता को वैश्य स्त्री से उत्पन्न होने के कारण इसे 'करण' भी कहते थे । महाभारत में 'करण' एक मिश्र जाति का नाम बताया गया है। धृतराष्ट्र का पुत्र हो कर भी, कौरवों का पाण्डवों के साथ का दुर्व्यवहार इसे पसंद न था, जिस कारण इसकी सदभावना हमेशा पाण्डवों के ओर ही थी। दुर्योधन की प्रेरणा से भीमसेनको विषयुक्त अन्न खिलाया जाने की सूचना, इसने पहले ही उसे गी थी (म. आ. ११९.४०) । । भारतीय युद्ध में यह प्रथम कौरवों के पक्ष में शामिल हुआ था (म. भी. ४१. ९५ ) | किन्तु बाद में यह पाण्डवों के पक्ष में शामिल हुआ (म. द्रो. २२.२७ ) । यह योद्धाओं में श्रेष्ठ, उत्तम धनुर्धर शुर एवं था। इसके रथ के अश्व शक्तिशाली एवं पृथुल थे ( म. द्रो. २२.२० ) । भारतीय युद्ध में इसका निम्नलिखित योद्धा ओं से युद्ध हुआ था: सुबाहु ( म. द्रो. २४.१४), भगदत्त (म. प्र. २५.४८-५१), (म.क. १८०१-१०) उलूक भारतीय युद्ध से बचे हुये लोगों में से यह एक था। युद्ध के पश्चात्, युधिष्ठिर के द्वारा धृतराष्ट्र की सेवा में इसे नियुक्त किया गया था (म. शां. १४१.१६ ) अश्वमेघ यश के पूर्व पाण्डव जय धृतराष्ट्र से मिलने वन गये थे एवं मरुन्त का धन खाने हिमालय गये थे, उन दोनों समय हस्तिनापुर की रक्षा का भार इसी पर सौंपा गया था (म. आज २०.१५ आ. ६२.२३) । । युवनाश्व युयुध - (रा. निमि.) विदेह देश का एक राजा, जो वस्वनन्त राजा का पुत्र था ( मा. ९.१३.२५ ) । युयुधान- (सो. वृष्णि) सुविख्यात यादव राजा ' सात्यकि ' का नामान्तर ( सात्यकि देखिये ) | युवन कौशिक-एक भाचार्य, जिसके शरखुदक यज्ञ के संबंधित मतों के उद्धरण प्राप्त है ( कौ. स. ९.११) । युवनस्— लेख देवों में से एक । G पाण्डवों के महाप्रस्थान के समय, परिक्षित् राजा की एवं कुरु राज्य की रक्षा का भार भी युधिडिर ने इसी पर निर्भर किया था (म. महा १.६ - ७ ) । इससे प्रतीत होता है कि, धृतराष्ट्र का पुत्र हो कर भी युधिडिर इससे काफी प्रेम एवं विश्वास करता था। | २. धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक । युवनाश्व - ( सू. इ. ) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो युवनाश्व ( प्रथम ) नाम से सुविख्यात है । भागवत के अनुसार यह चंद्रराजा का, विष्णु के अनुसार आर्द्र का, मत्स्य के अनुसार इन्दु का, एवं वायु के अनुसार आंध्र राजा का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम श्रावस्त था । जो २ (सू. इ.) इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न एक सुविख्यात नरेश, युवनाश्व (द्वितीय) नाम से सुविख्यात हैं | महाभारत में इसे सुद्युम्न राजा का पुत्र कहा गया है, जिस कारण इसे सीद्युम्नि नामान्तर भी प्राप्त था। विष्णु एवं वायु । के अनुसार यह प्रसेनजित् राजा का मत्स्य के अनुसार रणाश्व का एवं भागवत के अनुसार सेनजित् का पुत्र था। इसकी सौ पत्नियाँ थी, जिनमें से गौरी इसकी पटरानी थी बहुत वर्षों तक इसे पुत्र न था । इसलिए पुत्रप्राप्ति के लिए भृगु ऋषको अध्यर्य बना कर इसने एक यश का आयोजन किया। यज्ञ समारोह की रात्रि में अत्यधिक प्यासा होने के कारण, इसने भृगुऋषि के द्वारा इसकी पत्नियों के लिए सिद्ध किया गया ज गलती से प्राशन जल किया। इसी जल के कारण इसमें गर्भस्थापना हो कर इसकी चायी कुक्षी से 'मांधातृ' नामक सुविख्यात पुत्र का जन्म हुआ (म. ब. १९१.२ मा. ९.६.२५-१२ मांधातृ देखिये) । । । । इसकी गौरी नामक पानी पौरवराजा मतिनार की मन्या थी। वायु में इसके द्वारा गौरी को शाप दिये जाने की एक कथा प्राप्त है, जिस कारण वह बहुदा नामक नदी बन गयी ( वायु, ८८.६६ ब्रह्म २.६२.६७ अस ७. ९१; ह. वं १. १२. ५ ) । इसकी एक कन्या का नाम कावेरी था, जो गंगा नदी का ही मानवी रूप थी ( ह. वं. १.२७.९) । अपनी इस कन्या को इसने नदी बनने का शाप दिया, जो आज ही नर्मदा नदी की सहाय्यक नदी के नातें विद्यमान है ( मत्स्य. १८९० २–६ ) । अपने पूर्ववर्ती रैवत नामक राजा से इसे एक दिव्य खड्ग की प्राप्ति हुयी थी, जो इसने अपने वंशज रघु ७०९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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