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युधिष्ठिर
.. प्राचीन चरित्रकोश
युधिष्टिर
हो गया. तथा नेवले का अर्धाग भी स्वर्णमय हो गया | हुआ एक कुत्ता भारत प्रदक्षिणा के लिए निकले, एवं पूरब (म. आश्व. ९२-९५; जै. अ. ६६; उच्छंवृत्ति देखिये)। | की ओर चल पड़े।
धृतराष्ट्र का वनगमन-अश्वमेध यज्ञ के पश्चात् धृतराष्ट्र 'लौहित्य' नामक सलिलार्णव में अपने धनुष्य बाण की अनुमति से युधिष्ठिर ने राज्यसंचालन आरंभ किया। विसर्जित कर ये निःशस्त्र हुयें। पश्चात् दक्षिणीपश्चिम पश्चात् धृतराष्ट्र ने अन्न-सत्याग्रह कर के, वन में जाने दिशा में मुड़ कर ये द्वारका नगरी के पास आयें । अन्त में के लिए इससे अनुमति माँगी। यह अत्यधिक दुःखी । पुनः उत्तर की ओर मुड़ कर हिमालय में प्रविष्ट हुयें । वहाँ हुआ, एवं उसे ही राज्य अर्पित कर इसने स्वयं वन में | इन्होंने वालुकार्णव एवं मेरुपर्वत के दर्शन लिये । पश्चात् जाने की इच्छा प्रकट की (म. आश्र. ६.७-९)। पश्चात् | इन्होंने स्वर्गारोहण प्रारंभ किया (म. महा. १-२)। व्यास के समझाने पर युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र को वन जाने स्वर्गारोहण-स्वर्गारोहण के समय, मार्ग में द्रौपदी, की अनुमति दे दी (म. आश्र. ८.१)। चलते समय | सहदेव, नकुल, अर्जुन एवं भीमसेन ये एक एक कर क्रमशः धृतराष्ट्र ने इसे राजनीति का उपदेश दिया (म. आश्र. गिर पड़े । अन्त में युधिष्ठिर एवं श्वानरूपधारी यमधर्म
ही बाकी रहे। ये दोनों स्वर्गद्वार पहूँचते ही, स्वयं इंद्र वन में जाते समय धृतराष्ट्र ने अपने पूर्वजों का श्राद्ध रथ ले कर इसे सदेह स्वर्ग में ले जाने के लिए उपस्थित करने के लिए हस्तिनापुर राज्य के कोशाध्यक्ष भीम के हुआ। यह रथ में बैठनेवाला ही था कि, कुत्ते ने भी इसके पास कुछ द्रव्य की याचना की। किन्तु भीम ने उसे देने साथ रथ में बैठना चाहा, जिसे इंद्र ने इन्कार कर दिया। से साफ इन्कार कर दिया। फिर युधिष्ठिर एवं अर्जुन ने | इसने कुत्ते के सिवा स्वर्ग में प्रवेश करना अमान्य कर अपने खानगी द्रव्य दे कर उसे बिदा किया (म. आश्र. दिया। फिर यमधर्म अपने सही रूप में प्रकट हुआ, एवं १७)। बाद को यह धृतराष्ट्र से मिलने के लिए 'शत- इन्द्र इन दोनों को सदेह अवस्था में स्वर्ग ले गया। यूपाश्रम' में भी गया था (म. आश्र. ३१-३२)। मृत्यु-महाभारत के भीष्म, द्रोण, कर्ण, दुर्योधन आदि
विदुर का निर्याण हिमालय में हुआ, जिस समय यह व्यक्तियों की मृत्यु में जो नाट्य प्रतीत होता है, वह उसके पास था। विदुर की मृत्यु के पश्चात् उसकी युधिष्ठिर की मृत्यु में नहीं है। इसकी मृत्यु में उदात्तता - प्राणज्योति युधिष्ठिर के शरीर में प्रविष्ट हुयी, जिस कारण | जरुर है, किन्तु आजन्म सत्य एवं नीतितत्त्व के पालन में
यह अधिक सतेज बना (म. आश्र. ३३.२६)।. एकाकी अस्तित्व बितानेवाला युधिष्ठिर अपनी मृत्यु में भी ___ महाप्रस्थान द्वारका में वृष्णि एवं यादव लोग आपस एकाकी रहा। सारे तत्त्वदर्शी एवं ध्येयवादी व्यक्ति अपनी में झगड़ा कर के विनष्ट हुये । तत्पश्चात् हुए कृष्ण- आयु में तथा मृत्यु में एकाकी रहे, यही विधिघटना -निर्याण की वार्ता सुन कर यह अत्यधिक खिन्न हुआ। युधिष्ठिर की मृत्यु में पुनः एकबार प्रतीत होती है।
अभिमन्यु के ३६ साल के पुत्र परिक्षित् को राज्याभिषेक | स्वर्गप्रवेश-स्वर्ग में पहुँचते ही नारद ने इसकी स्तुति कर, एवं धृतराष्ट्र को वैश्य स्त्री से उत्पन्न मृयुत्सु नामक की, एवं इन्द्र ने इसकी उत्तम लोक में रहने की व्यवस्था पुत्र को प्रधानमंत्री बना कर, यह महाप्रस्थान के लिए की। किन्तु इसने स्वर्ग में प्रवेश करते ही अपने भाइयों निकल पड़ा। इस समय इसके पाण्डव बन्धु एवं द्रौपदी के संबंध में पूछा । फिर यमधर्म ने इसकी सत्वपरीक्षा लेने भी राज्य छोड़ कर इसके साथ निकल पड़े (भा. १.१५. के लिए, इसके सारे पाण्डव बांधव नर्कलोक में वास कर ३७-४०)।
रहे हैं, ऐसा मायावी दृश्य दिखाया। यह दृश्य देख कर महाभारत के अनुसार, परिक्षित् का भार उसके गुरु | इसने यमधर्म से कहा, 'मैं अकेला स्वर्गसुख का उपभोग कृपाचार्य पर सौंप कर युधिष्ठिर ने महाप्रस्थान की तैयारी लेना नहीं चाहता हूँ। मेरे समस्त बांधव जिस नर्कलोक में की। परिक्षित् राजा की गृहव्यवस्था इसने उसकी दादी वास कर रहे हैं, वही मैं उनके साथ रहना चाहता हूँ सुभद्रा के उपर सौंप दी, एवं इंद्रप्रस्थ का राज्य श्रीकृष्ण | (म. स्व. २. १४)। का प्रपौत्र वज्र को दिया, जो यादवसंहार के कारण यमधर्म से भेंट- इस पर यमधर्म ने अपने अंशावतार निराश्रित बन गया था। इसके पूर्व,इसने राजवैभव छोड़ कर से उत्पन्न युधिष्ठिर को साक्षात् दर्शन दिया एवं कहा, वल्कल धारण कियें एवं अग्निहोत्र का विसर्जन किया। इस | 'आज तक तीन बार मैंने तुम्हारी सत्त्वपरीक्षा लेनी चाही। तरह पाँच पांडव, द्रौपदी एवं इसके साथ सहजवश आया। किन्तु उन तीनो समय तुमने खुद को एक सत्त्वनिष्ठ क्षत्रिय
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