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________________ युधिष्टिर प्राचीन चरित्रकोश युधिष्ठिर भारतीययुद्ध के मृतकों की संख्या युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र शास्त्रों का उचित अर्थ तुम्हे समझना असंभव है। मैंने को तीन करोड़ बतायी थी, जो सैनिक एवं उनके अन्य वेद, धर्म एवं शास्त्रों का अध्ययन किया है। इसी कारण सहाय्यक मिला कर बतायी होगी। युद्धभूमि में लड़नेवाले धर्म का सूक्ष्म स्वरूप केवल मैं ही जानता हूँ। धन एवं एक सैनिक के लिए दस सहाय्यक रहते थे (म. स्त्री. राज्य से तप अधिक श्रेष्ठ है, जिससे मनुष्यप्राणि को २६.९-१०)। सद्गति प्राप्त होती है। विरक्ति-युद्ध में मृत हुए अपने बांधवों का अशौच | अंत में युधिष्ठिर एवं अर्जन के बीच श्रीव्यास ने तीस दिनों तक मानने के बाद युधिष्ठिर हस्तिनापुर में लौट | मध्यस्थता की। उसने कहा, 'राज्य से सुख प्राप्त आया (म. शां. १.२)। युद्ध की विभीषिका को देख कर होता हो या न हो, उसका स्वीकार करना ही उचित है। यह इतना दुःखी था कि, किसी से कुछ भी न कह पाता आप्तजनों के सहवास की परिणति वियोग में ही होती था, तथा मन ही मन आन्तरिक पीड़ा में सुलग रहा था। है। इस कारण उनकी मृत्यु का दुःख करना व्यर्थ है। रही अपने मन की पीड़ा को अग्रजों से ही कह कर यह कुछ बात धन की, यज्ञ करने में ही धन की सार्थकता है। शान्ति का अनुभव कर सकता था, किन्तु कहे तो किससे? राज्याभिषेक--धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों की मृत्य से हस्तिनाकृष्ण ने इसे यद्ध के लिए प्रेरित ही किया था, तथा उसका पुर के कुरुवंश का राज्य नष्ट हुआ। बाद में कृष्ण ने इसका ढाँचा भी उसीके द्वारा बनाया गया था। धृतराष्ट्र स्वयं राज्याभिषेक किया, एवं मार्कंडेय ऋषि के कथनानुसार इससे अपने सौ पुत्रों एवं साथियों की पीड़ा से पीडित था। प्रयागयात्रा करवायी (पद्म. स्व. ४०.४९)। तत्पश्चात् व्यास व्यास भी दुखी था, कारण उसका भी तो कुल नाश हुआ की आज्ञानुसार इसने तीन अश्वमेध यज्ञों का आयोजन था। इस प्रकार इसके मन में राज्यग्रहण के संबंध में | किया (म. आश्व. ९०.१५, भा. १.१२.३४)। विरक्ति की भावना उठी, एवं इसने राज्य छोड़ कर वान- इस यज्ञ में व्यास प्रमुख ऋत्विज था, एवं बक दाल्भ्य, प्रस्थाश्रम स्वीकारने का निश्चय किया। इस समय, अर्जुन, पैल, ब्रह्मा, वामदेव आदि सोलह ऋत्विज थे (म. आश्व, भीम, नकुल, सहदेव, द्रौपदी आदि ने इसे गृहस्थाश्रम | ७१.३)। जैमिनि अश्वमेध में इन सोलह ऋत्विजों के एवं राज्यसंचालन का महत्त्व समझाते हुए इसकी कटु | नाम दिये हैं (जै. अ. ६३.) । इस यज्ञ के लिए द्रव्य न आलोचना की। होने के कारण, इसने वह हिमवत् पर्वत से मरुत्तों से । युधिष्ठिर-अर्जुन-संवाद--इस समय हुआ युधिष्ठिर लाया (म. आश्व. ९.१९-२०)। इस यज्ञ की व्यवस्था अर्जुनसंवाद अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अर्जुन ने इसे ऋद्ध इसने अपने भाईयों पर निम्न प्रकार से सौंपी थी:हो कर कहा, 'राज्य प्राप्त करने के पश्चात्, तुम भिक्षापात्र | अश्वरक्षण-अर्जुन, राज्यपालन- भीम एवं नकुल, कौटुंबिक लेकर वानप्रस्थाश्रम का स्वीकार करोंगे तो लोग तुम्हे व्यवस्था-सहदेव (म. आश्व. ७१.१४-२०)। हँसेंगे। तुम युद्ध की सारी बाते भूल कर आनेवाले राज्य- इस यज्ञ के समय, इसने पृथ्वी का अपना सारा राज्य वैभव का विचार करो, जिससे तुम जीवन के सारे दुःखों व्यास को दान में दिया, जो व्यास ने इसे लौटा कर उसके को भूल जाओंगे। किन्तु मैं जानता हूँ कि, तुम्हारे लिए यह | मूल्य का धन ब्राह्मणों को दान में देने के लिए कहा असंभव हैं, क्यों कि, सुख के समय भी, जीवन की | (म. आश्व. ९१.७-१८१ )। दुःखी यादगारे तुम्हें आती ही रहती हैं। गर्वहरण-अश्वमेध यज्ञ में एक नेवला के द्वारा किये इस पर युधिष्ठिर ने कहा, 'जिसे तुम सुख तथा दुःख | गये युधिष्ठिर के गर्वहरण की चमत्कृतिपूर्ण कथा महाकहते हो वह सापेक्ष है। विदेह देश का जनक राजा | भारत में दी गयी है । अश्वमेध यज्ञ के पश्चात् , एक विचित्र अपनी राजधानी मिथिला जलने पर भी शान्त रहा, क्यों नेवला इसके पास आया, जिसका आधा शरीर किसी कि, उसकी आध्यात्मिक संपत्ति अपार थी। इस पर अर्जुन ब्राह्मण द्वारा अन्नदान किया जाने पर छोडे गये पानी में ने कहा, 'अपना राज्य जला कर वानप्रस्थाश्रम लेनेवाले | लोट लगाने के कारण, स्वर्णमय हो गया था। उसने आ कर जनक जैसे मूढ राजा का दृष्टान्त देना यहाँ उचित नही | युधिष्ठिर से कहा, 'आपके अश्वमेध यज्ञ की प्रशंसा सुन है। प्रजापालन एवं देवता, अतिथि एवं पंचमहाभूतों का | कर अपने आधे बचे अंग को स्वर्णमय बनाने आया पूजन यही राजा का प्रथम कर्तव्य है। इस पर युधिष्ठिर | था। किन्तु, यहाँ यह शरीर स्वर्णमय न हो सका। इससे ने कहा 'तुम केवल अस्त्रविद्या ही जानते हो, धर्म एवं | यज्ञकर्ता युधिष्ठिर के मन में उत्पन्न हुआ अभिमान नष्ट ७०६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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