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________________ युधिष्ठिर प्राचीन चरित्रकोश युधिष्टिर पागल हो उठा, एवं इसने अर्जुन की अत्यंत कटु आलोचना उठा । कर्ण एवं कुंती के चेहरे में साम्य है, यह पहले से की। ही यह जानता था। इस साम्य का रहस्यभेद न करने से युधिष्ठिर-अर्जुन संवाद--इस समय युधिष्ठिर एवं अर्जुन बन्धुवध का पातक अपने सर पर आ गया इस विचार से के दरम्यान जो संवाद हुआ, वह उन दोनों के व्यक्तित्व यह अत्यधिक खिन्न हुआ। यही नहीं, कर्णजन्म का पर काफी प्रकाश डालता है। रहस्य छिपानेवाली अपनी प्रिय माता कुन्ती को इसने शाप इसने अर्जुन से कहा, 'बारह साल से कर्ण मेरे जीवन दिया। कां एक काँटा बन कर रह गया है । एक पिशाच के कर्णवध के पश्चात् , शिविर में सोये हुए पाण्डवपरिवार समान वह दिनरात मेरा पीछा करता है । उसका वध करने का अश्वत्थामन् ने अत्यंत क्रूरता के साथ वध किया, की प्रतिज्ञा तुमने द्वैतवन में भी की थी, किन्तु वह अधुरी जिसमें सभी पाण्डवपुत्र मर गये। । इस समाचार ही रही । तुम कर्ण का वध करने में यद्यपि असमर्थ हो, को सुन कर यह अत्यंत दुःखी हुआ था। तो यहीं अच्छा है कि, तुम्हारा गांडीव धनुष, बाण, एवं रथ बाद में द्रौपदी ने विलाप करते हुए इससे अश्वत्थामा यहीं उतार दो। | तथा उसके सहकारियों के वध करने की प्रार्थना की। अर्जुन ने प्रतिज्ञा की थी कि, जो उसे गांडीव धनुष युधिष्ठिर ने कहा कि, वह अरण्य चला गया है। बाद उतार देने को कहेगा, उसका वह वध करेगा । इसी कारण को द्रौपदी द्वारा यह प्रतिज्ञा की गयी कि, अश्वत्थामा उसने युधिष्ठिर से कहा, 'युद्ध से एक योजन तक दूर के मस्तक की मणि युधिष्ठिर के मस्तक पर वह देखेगी, तभी भागनेवाले तुम्हे पराक्रम की बातें छेड़ने का अधिकार जीवित रह सकती है। तब, भीम, कृष्ण अर्जुन तथा नहीं है। यज्ञकर्म एवं स्वाध्याय जैसे ब्राह्मणाम में तुम युधिष्ठिर के द्वारा द्रौपदी का प्रण पूरा किया गया (म. सौ. प्रवीण हो । ब्राह्मण का सारा सामर्थ्य मुँह में रहता हैं। ९. १६)। ठीक यही तुम्हारी ही स्थिति है। तुम स्वयं पापी हो । तुम्हारे गत खेलने के कारण ही हमारा राज्य चला गया. दुर्योधनवध--दुर्योधन एवं भीम के दरम्यान हृये एवं हम संकट में आ गये। ऐसी स्थिति में मुझे द्वंद्वयुद्ध में भीम ने दुर्योधन की वायी जाँघ फाड़ कर उसे गांडीव धनुष उतार देने को कहनेवाले तुम्हारा मैं यही नीचे गिरा दिया, एवं उसी घायल अवस्था में लत्ताप्रहार शिरच्छेद करता हूँ। भी किया। उस समय युधिष्ठिर ने भीम की अत्यंत कटु अर्जुन जैसे अपने प्रिय बन्धु से ऐसा अपमानजनक आलोचना की । इसने कहा, 'यह तुम क्या कर रहे हो ? (प्राकृत ) भाषण सुन कर, पश्चाताप भरे स्वर में इसने दुर्योधन हमारा रिश्तेदार ही नहीं, बल्कि एक राजा भी है। उसे कहा, 'तुम ठीक कह रहे हो। मेरी मूढता, उसे घायल अवस्था में लत्ताप्रहार करना अधर्म है। कायरता, पाप एवं व्यसनासक्तता के कारण ही सारे पश्चात् इसने दुर्योधन के समीप जा कर कहा, 'तुम दुःख पाण्डव आज संकट में आ गये है। तुम्हारे कटु वचन मत करना । रणभूमि में मृत्यु आने के कारण, तुम धन्य मुझसे अभी नहीं सहे जाते हैं। इसी कारण तुम मेरा हो । सारे रिश्तेदार एवं बांधव मृत होने के कारण, हमारा शिरच्छेद करो, यही अच्छा है । नहीं तो, मैं इसी समय जीवन हीनदीन हो गया है। तुम्हे स्वगंगति तो जरूर वन में चला जाता हूँ। प्राप्त होंगी । किन्तु बांधवों के विरह की नरकयातना सहते युधिष्ठिर की यह विकल मनस्थिति देख कर सारे पाण्डव | सहते हमें यहाँ ही जीना पडेगा। भयभीत हो गये । अर्जुन भी आत्महत्त्या करने के लिए | बचे हुए वीर-दुर्योधनवध के पश्चात् भारतीय युद्ध प्रवृत्त हुआ। अन्त में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से आश्वासन दिया, | की समाप्ति हयी। कौरव एवं पाण्डवों के अठारह 'आज ही कर्ण का वध किया जाएगा। इस आश्वासन | अक्षौहिणी सैन्य में से केवल दस लोग बच सके। उनमें के अनुसार, अर्जन ने कर्ण का वध किया (म. क. परि. | पाण्डवपक्ष में से पाँच पाण्डव, कृष्ण एवं सात्यकि, तथा १.क्र. १८.पंक्ति ४५-५०)। कौरवपक्ष में से कृप, कृत एवं अश्वत्थामन् थे (म. सौ. जिस कर्ण के वध के लिए यह तरस रहा था, वह पाण्डवों ९.४७-४८)। युद्धभूमि से बचे हुए इन लोगो में धृतराष्ट्र का ही एक भाई एवं कुंती का एक पुत्र है, यह कर्ण-वध पुत्र युयुत्सु का निर्देश भी प्राप्त है, जो युद्ध के प्रारंभ में के पश्चात् ज्ञात होने पर, युधिष्ठिर आत्मग्लानि से तिलमिला | ही पाण्डवपक्ष में मिला था। प्रा. च. ८९] ७०५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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