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________________ युधिष्ठिर इस यज्ञ के सिध्यर्थं इसने अर्जुन, भीम, सहदेव एवं नकुल इन भाईयों को क्रमशः उत्तर पूर्व, दक्षिण एवं पश्चिम दिशाओं में भेज दिया। इन दिग्विजयों से अपार संपत्ति प्राप्त कर, पाण्डवों ने अपने राजसूय यज्ञ का प्रारंभ किया (भा. १०.७२.७४) । प्राचीन चरित्रकोश श्रीकृष्ण की आज्ञा से, इसने स्वयं राजसूय यज्ञ की दीक्षा ली थी। इसके यश के प्रमुख पुरोहितगण निम्न लिखित :- ब्रह्माद्वैपायन व्यासः सामग मुसामन् अध्वर्यु-सियाशयस्य होता यमुपुत्र पैल एवं भौग्य ( म. स. ३०.३४-३५ ) । इस यज्ञ में कौरव, यादव एवं भारतवर्ष के अन्य सभी राजा उपस्थित थे । इस यज्ञ की व्यवस्था युधिष्ठिर के द्वारा निम्नलिखित व्यक्तियों पर सौंपी गयी थी :- भोजनशाला-दुःशासन; ब्राह्मणों का स्वागत - अश्वत्थामा, दक्षिणा प्रदान - कृपाचार्य: आयव्यय निरीक्षण विदुरः ब्राह्मणों का चरणक्षालन-श्रीकृष्ण; सामान्य प्रशासन - भीष्म एवं द्रोण । इस यश में प्रतिदिन दस हजार ब्राह्मणों को स्वर्ण की स्थालियों में भोजन कराया जाता था। एक लाख ब्राह्मणों को इस तरह भोजन दिया जाने पर, 'लक्षभोजन' सूचक शंखध्वनि की जाती थी ( म. स. ४५.२० ) । इस प्रकार इसका राजसूय यज्ञ सर्वतोपरि सफल रहा। दुर्योधनविद्वेष - - युधिष्ठिर के द्वारा किये गये इस यज्ञ की सफलता को देख कर दुर्योधन ईर्ष्या से जल-भून गया। बुधिष्ठिर के द्वारा खर्च की गयी अगणित संपत्ति एवं लोगों के द्वारा की गयी बुधिष्ठिर की प्रशंसा उसे असा प्रतीत हुयी ( म. स. ३२.२७, भा. १०.७४) । इसी कारण इसे जड़मूल से उखाड़ फेंकने की योजनाएँ वह बनाने लगा। इसे युद्ध में जीतना तो असंभव था । इसी कारण द्यूत के द्वारा इसकी समस्त धन-संपत्ति हरण करने की शकुनि मामा की सूचना उसने मान्य की पश्चात् इसी सूचना को स्वीकार कर, धृतराष्ट्र ने विदुर के द्वारा युधिष्ठिर को व्रत खेलने का निमंत्रण दिया । । युधिष्ठिर पाण्डव पहचाने गये, तो इन्हे बारह वर्षों का वनवास और सहना पड़ेगा ( म. स. ७१) 1 द्यूत - पराजय - हस्तिनापुर में संपन्न हुए द्यूतक्रीडा में, दुर्योधन के स्थान पर शकुनि ने बैठ कर युधिष्ठिर को पूरी तरह से हरा दिया, एवं इसका सबकुछ जीत लिया। यह धन, राज्य, भाई तथा द्रौपदी सहित अपने को भी हार गया । द्यूत खेल कर पराजित होने के बाद, इसने बारहवर्ष का वनवास एवं वर्ष एक का अज्ञातवास स्वीकार लिया, एवं यह भी शर्त मान्य की कि, यदि अशातवास के समय वनवास - कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन यह अपने अन्य भाई एवं द्रौपदी के साथ बनवास के लिए निकला। यह जब अरण्य की ओर चला, उस समय हस्तिनापुर के अनेक नगरवासी इसके साथ जाने के लिए तत्पर हुये । इसने इन सभी लोगों को लौट जाने के लिए कहा, एवं ऋषिनों में से केवल इसके उपाध्याय घोग्य इसके साथ रहे वनवास के प्रारंभ में ही इसने सूर्य की प्रार्थना कर अक्षय्य अन्न प्रदान करनेवाली एक स्थाली प्राप्त की । इस तरह अपनी एवं अपने बांधवों की उपजीविका का प्रश्न हल किया (म. व. १-४ ) । युधिष्ठिर के द्यूत खेलने के समय एवं द्रौपदी वस्त्रहरण के समय श्रीकृष्ण हस्तिनापुर में नही था, क्यों कि, उसी समय शाल्व ने द्वारका पर आक्रमण किया था। पाण्डवों के वनवास की वार्ता ज्ञात होते ही वह इनसे मिलने वन में आया। उस समय धार्तराष्ट्रों पर आक्रमण कर, उनका राज्य पाण्डवों को वापस दिलाने का आश्वासन कृष्ण ने इसे दिया। किन्तु इसने दृढता से कहा, 'मैंने कौरवों से शब्द दिया है कि, बारह साल वनवास एवं एक साल अतवास हम भुगतते यह मेरी आन है एवं उसे किसी तरह भी निमाना यह हमारा कर्तव्य है। इसी कारण वनवास की समाप्ति के पश्चात् ही हमे राज्य के पुनःप्राप्ति का विचार करना चाहिए। , द्रौपदी - युधिष्ठिर संवाद -- पाण्डवों के वनवास के प्रारंभ में ही देत वन में द्रौपदी ने युधिष्ठिर के पास अत्यधिक विलाप किया। उसने कहा, 'द्रुपद राजा की कन्या, पाण्डुराजा की स्नुषा एवं तुम्हारी पटरानी, जो मैं आज तुम्हारे कारण वनवासी बन गयी हूँ । भीम जैसे राजकुमार 1 एवं अर्जुन जैसे योद्धा आज भूख एवं प्यास से व्याकुल होकर इधर उधर घूम रहे है। अपने बांधयों की यह हालत देख कर भी तुम चुपचाप क्यों बैठते हो ? । दुर्योधन अत्यंत पापी एवं लोभी है, एवं उसका नाश करना ही उचित है'। इस पर बुधिष्ठिर ने कश्यपगीता का निर्देश करते हुए कहा, 'क्षमा पर ही सारा संसार निर्भर है। राज्य के खोम से अपने मन में स्थित क्षमाभावना का त्याग करना उचित नही है । लोभ से बुद्धि मलीन हो जाती है। ' केवल पाण्डवों का ही नहीं, बल्कि सारे भरत वंश का नाश होने का समय आज समीप आया है। फिर भी अपनी मन की शान्ति हमें नहीं छोड़नी चाहिये। । ६९८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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