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________________ याज्ञवल्क्य प्राचीन चरित्रकोश याज्ञवल्क्य थे, जिनका निर्देश बृहदारण्यक उपनिषद के चौथे अध्याय | पुराणों में--देवमित्र शाकल्य के साथ याज्ञवल्क्य ने में प्राप्त हैं :-- किये वादविवाद की कथा, पुराणों एवं महाभारत में भी १. उदक शौल्वायन-प्राणब्रह्म' (बृ. उ. ४.१.२.३)। विस्तृत रूप से दी गयी है। .. २. बर्कु वार्ण-चक्षुब्रह्म' (बृ. उ. ४.१.४)। विदेह देश के देवराति ( दैवराति ) जनक ने अश्वमेध ३. गर्दभीविपीत भारद्वाज--'श्रोत्रब्रह्म' (बृ. उ. यज्ञ प्रारंभ किया, तथा उस सम्बन्ध में सैकड़ो ऋषियों को ४.५)। निमंत्रित भी किया (म. शां. ३०६)। उस यज्ञ में, हज़ार - ४. सत्यकाम जाबाल--'मनोब्रह्म' (बृ. उ. ४.१.६)। गायों के अतिरिक्त न जाने कितने स्वर्ण, रत्नादि सामने ५. विदग्व शाकल्य--'हृदयब्रह्म' (बृ. उ. ४.१.७)। रक्ख कर उसने कहा, 'यह सारी सुखसामग्री,तथा प्रामादि वादविवाद के विषय-जनक के दरबार में हुये | और सेवक आदि सारी संपत्ति वह ऋषि ले सकता है, जो वाद-विवाद में, अश्वल एवं विदग्ध शाकल्य ने याज्ञवल्क्य उपस्थित सभा में सर्वश्रेष्ठ हो'। यह सुन कर कोई न उठा। से ईश्वर एवं कर्मकाण्ड के विषय में प्रश्न पूछे थे, जो तब याज्ञवल्क्य सामने आया, तथा अपने शिष्य सामविशेष कठिन नहीं थे । शाकल्य ने इससे पूछा. 'देव | श्रवस् से इसने कहा, 'मेरे समान वेदवत्ता यहाँ कोई कितने है ' ( कति देवाः )। इस पर याज्ञवल्क्य ने देवों नहीं है। इसलिए यह समस्त संपत्ती हमारी है। उसे तुम की संख्या तीन हजार तेंतीस, तेंतीस, तीन, ऐसी विभिन्न | उठा लो। प्रकार से बताकर, अंत में ये सारे एक ही परमेश्वर के - इतना कह कर फिर समस्त उपस्थितजनों को सम्बोधित विविध रूप है, ऐसा कह कर बहुत ही सुंदर जवाब दिया | कर याज्ञवल्क्य ने कहा, 'यदि कोई भी व्यक्ति मुझे सर्वश्रेष्ठ था (बृ. उ. ३.९.१-३)। नहीं समझता, तो उसे मेरी ओर से चुनौती है किं, वह - अपने इस जबाब से याज्ञवल्क्य ने शाकल्य को मौन | मेरे सामने आये। इतना सुनते ही सारी सभा में कर दिया। यही नहीं, वादविवाद के शर्त के अनुसार, खलभली मच गई, और कई ब्राह्मण इससे वादविवाद शाकल्य को मृत्यु स्वीकार करनी पड़ी, एवं उसकी अस्थियाँ | करने आये। लेकिन सभी इसमें परास्त हुए। भी उसके शिष्यों को प्राप्त न हुई (बृ. उ. ३.९.४-२६) उपस्थित पंडितों से इसका कई विषयों पर वादविवाद शाकल्य की तुलना में, याज्ञवल्क्य से वाद विवाद करने- हुआ। सब को जीतने के बाद, इसने देवमित्र शाकल्य वाले जनकसभा के अन्य ऋषिगण अधिकतर अधिकारी | को ललकारते हुए कहा, 'भरी हुई धौंकनी के समान चप व्यक्ति थे, एवं उनके द्वारा पूछे गये प्रश्न भी अधिक कठिन क्यों बैठे हो ? कुछ बोलो तो'। इस प्रकार इसकी वाणी सुन थे। मृत्यु के पश्चात् आत्मा की क्या गति होती है, यह कर शाकल्य ने अकेले ही समस्त धन ले जाने के संबंध में पूछनेवालां जारत्कारव; अंतिम सत्य का स्वरूप क्या होता है, इससे शिकायत की। तब याज्ञवल्क्य ने कहा, 'ब्राह्मण का यह पूछनेवाला उषस्त; आत्मानुभव किस मार्ग से मिलता बल है विद्या, एवं तत्वज्ञान में निपुणता । क्यों कि, मैं किसी है, यह पूछनेवाला कहोल; एवं परमात्मा सर्वांतर्गत हो कर प्रकार के प्रश्न का उत्तर देने के लिए अपने को समर्थ भी अचेतन अथवा चेतनायुक्त कैसे रह सकता है, यह समझता हूँ, इसलिए इस समस्त धन पर मेरा अपना पूछनेवाले उद्दालक एवं गार्गी, ये उस समय के सर्वश्रेष्ठ अधिकार है। तत्त्वज्ञ थे । उनके प्रश्नों को तर्कशुद्ध जबाब दे कर,याज्ञवल्क्य याज्ञवल्क्य की ऐसी वाणी सुन कर देवमित्र शाकल्य ने विद्वत्सभा में अपना श्रेष्ठत्व प्रस्थापित किया। क्रोध से पागल हो गया, और उसने इससे एक हज़ार निष्प्रपंच सिद्धान्त-इसी वाद-विवाद में याज्ञवल्क्य प्रश्न पूछे, जिनके सभी उत्तर इसने बड़ी निपुणता एवं ने आत्मा के विषयक अपने 'निष्प्रपंच सिद्धान्त' का विद्वत्ता के साथ दिये। फिर याज्ञवल्क्य की प्रश्न पूछने पुनरुच्चार किया । इसने कहा, 'आत्मा बड़ा नहीं, उसी की बारी आई। याज्ञवल्क्य ने एक ही प्रश्न उससे किया । तरह छोटा भी नहीं। वहा ऊँचा नहीं, उसी तरह नीचा किन्तु शाकल्य उसका भी उत्तर न दे सका, जिसके भी नहीं। वह रुचि, दृष्टि एवं गंध के विरहित है (बृ. उ. परिणामस्वरूप उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। ३.८.८)। वह सृष्टि के समस्त वस्तुमात्रों का अंतर्निया- देवमित्र शाकल्य की मृत्यु से सब ब्राह्मणों को ब्रह्महत्या का मक है, जिसके कारण सारी सृष्टि कठपुतलियों के जैसी | को पाप लगा । इसलिए सभी उपस्थित जनों ने पवनपुर में नाचती है। | जाकर द्वादशार्क, वालुकेश्वर, एकादश रुद्र इत्यादि के दर्शन प्रा. च, ८७] ६८९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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