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________________ यशोदा . प्राचीन चरित्रकोश याज्ञवल्क्य मत्स्य में, इसे अंशुमत् की पत्नी होने का अयोग्य निर्देश | याज-कश्यपकुलोत्पन्न एक ऋषि, जो यमुना नदी के किया गया होगा। तट पर निवास करता था। द्रोण का विनाश करनेवाला २. नंद गोप की पत्नी, जिसने श्रीकृष्ण को पालपोस | पुत्र उत्पन्न करने के लिए द्रुपद राजा ने इससे, एवं इसके कर बडा किया था ( भा. १०.२.९)। यह देवक नामक | भाई उपयाज से एक यज्ञ कराया था। गोप की कन्या थी । भागवत में, इसे द्रोण नामक वसु | यह वेदाभ्यासक एवं सूर्यभक्त ऋषि था। किन्तु प्रारंभ की पत्नी धरा का अवतार कहा गया है ( भा. १०.८. से ही, यह अत्यंत हीन मनोवृत्ति का एवं लोभी था ५०%; रापण देखिये)। (म. आ. १५५.१४-२१)। पंचाल देश का द्रुपद राजा • यशोदेवी--अनुवंशीय सम्राट बृहन्मनस् की पत्नी। एक ऐसे पुत्र की कामना मन में रखता था,जो उसके शत्र यशोधन-पाण्डवपक्षीय दुर्मुख पांचाल नामक राजा द्रोणाचार्य का वध करे। इसने एवं इसके भाई उपयाज का पुत्र । इसे 'दौर्मुखी' पैतृक नाम भी प्राप्त था | ने एक अबंद धेनुओं के बदले में, द्रपद राजा के पुत्रकामेष्टी (म. द्रो. १५९. ४)। पाठभेद ( भांडारकर संहिता)- यज्ञ का काम स्वीकार लिया (म. आ. १६७.२१)। यज्ञ 'यशोधर'। समाप्त होने पर, यज्ञ में सिद्ध किया गया 'चरु' भक्षण यशोधर-श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी का एक पुत्र | करने के लिए, इसने द्रुपदपत्नी सौत्रामणि को बुलाया। (म. अनु. १४.३३)। उसे आने में विलंब होते ही, इस तामसी ऋषि ने वह यशोधरा--विरोचन दैत्य की कन्या, जो त्वष्ट्ट की चरु अग्नि में झोंक दिया, जिससे द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न उत्पन्न पत्नी थी। इसे 'वैरोचनी यशोधरा' एवं 'रचना' हुआ (द्रुपद देखिये)। नामान्तर भी प्राप्त थे । इसे त्वाट्ट से निम्नलिखित दो ___पंचाल देश में राज्य करनेवाला पुरुयशस् राजा भी पुत्र उत्पन्न हुये थे:-त्रिशिरस् विश्वरूप, एवं विश्वकर्मन् याज एवं उपयाज ऋषियों का ही शिष्य था ( स्कंद. २.७. (संनिवेश) (ब्रह्मांड, ३.१.८६-८७)। १५-१६; पुरुयशम् देखिये)। २. त्रिगर्तराज की कन्या, जो पूरुवंशीय सम्राट हस्तिन् । याज्ञ--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । ' की पत्नी थी । इसके पुत्र का नाम विकुंठन था। याज्ञतुर--ऋषभ नामक अश्वमेध करनेवाले राजा का , पाठभेद-- 'यशोदा'। पैतृक नाम (श. ब्रा. १२.८.३.७; सां. श्री. १६.९.८. । यशोभद्र-एक राजा, जो मनोभद्र राजा का पुत्र १०)। 'यज्ञतुर' का वंशज होने से, इसे यह पैतृक नाम • था। इसके भाई का नाम वीरभद्र था । पूर्वजन्म में प्राप्त हुआ होगा। गंगास्नान का पुण्य करने के कारण, इसे राजकुल में जन्म प्राप्त हुआ था ( पद्म. क्रि. ३)। • याज्ञदत्त--वसिष्ठकुलोत्पन्न याज्ञवल्क्य नामक गोत्रकार । यशोमेधस्-सुमेधस् देवों में से एक । का नामान्तर (याज्ञवल्क्य २. देखिये )। यशोवती-हैहय राजा एकवीर की पत्नी। याज्ञवल्क्य--विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । यशोवसु-(सो. अमा.) एक राजा, जो वायु के २. वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। इसे याज्ञदत्त नामान्तर अनुसार कुश राजा का पुत्र था । विष्णु में इसे भी प्राप्त था (मत्स्य. २००.६)। 'अमावसु' एवं भागवत में 'वसु' कहा गया है। ३. एक आचार्य, जो व्यास की कशिष्यपरंपरा में से यस्क-एक व्यक्ति, जो गिरिक्षित का वंशज था | बाष्कल नामक ऋषि का शिष्य था। इसीके नाम से व्यास (का. सं. १३.१२)। इसी कारण इसे 'गैरिक्षित ' कहा की उस ऋक् शिष्यपरंपरा को 'याज्ञवल्क्य' नाम प्राप्त हुआ गया है। (वायु. ६०.१२-१५)। २. भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार, जिसके नाम के लिए ४. एक आचार्य, जिसके आश्रय में विष्णुयशस् नामक 'यस्कावर' पाठभेद प्राप्त है। पाणिनि ने यस्क नामक | ब्राह्मण के घर, कल्कि नामक विष्णु का ग्यारहवाँ अवतार एक आचार्य का निर्देश किया है (पा. सू. २.४.६३, ४. उत्पन्न होनेवाला है (भा. १.२.३५)। वास्तव में, कल्कि १.११२) । आश्वलायन श्रौतसूत्र के गोत्रप्रवरों की अवतार इसके पहले ही हो चुका है। किन्तु उस अवतार तालिका में 'यस्क' का निर्देश प्राप्त है (आ. श्री. ६. | के जीवन-चरित्र में किसी याज्ञवल्क्य नामक आचार्य का १०.१०)। संभवतः ये सारे व्यक्ति एक ही होगे। | | निर्देश अप्राप्य है। ६८५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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