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________________ यवन प्राचीन चरित्रकोश यशोदा लोगों के द्वारा प्रस्थापित की गयी थी (पा. सू. ४.१.४९; | यवस--सावर्णि मनु के पुत्रों में से एक । पद्म में इसे कात्यायन वार्तिक. ३)। 'यवसु' कहा गया है (पम. सु. ७)। सिकंदर के हमले के पश्चात् , यवन लोगों का एक | २. इध्मजिह्व राजा के सात पुत्रों में से एक । उपनिवेश भारत के उत्तरीपश्चिम प्रदेश में बसा हुआ था। यविष्ठ-स्वायंभुव मन्वन्तर के जिदाजित् देवों में से चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आये हुये मेगॅस्थिनिस, | एक । दिओन्सिअस आदि परदेशीय वकील यवन ही थे। २. अग्नि का एक नामान्तर । यविनर--(सो. द्विमीढ.) द्राकुलोत्पन्न एक सुविख्यात अशोक के बारहवे स्तंभलेख में, 'योन' लोगों के राजा, जो मत्स्य के अनुसार अजमीढ राजा का, एवं देश में महारक्षित नामक बौद्ध भिक्षु धर्मप्रचारार्थ भेजने का भागवत, विष्णु एवं वायु के अनुसार द्विमीढ राजा का निर्देश प्राप्त है। 'योन धर्मरक्षित' नामक अन्य एक पुत्र था। इसके पुत्र का नाम धृतिमंत (कृतिमत् ) था। बौद्ध धर्मगुरु अशोक के द्वारा 'अपरान्त ' प्रदेश में भेजा २. (सो. नील.) उत्तर पंचाल देश का एक राजा, गया था। रुद्रदामन् के जुनागड स्तंभलेख में, अपरान्त जो भागवत के अनुसार भय॑श्व राजा का पुत्र था। इसे प्रदेश का राज्य योनराज तुषाष्प के द्वारा नियंत्रित किये मुद्गल, संजय, बृह दिश, एवं कांपिल्य नामक चार भाई जाने का, एवं वह सम्राट अशोक का राजप्रतिनिधि होने थे। भHश्व राजा के ये पाँच पुत्र 'पंचाल' नाम से का निर्देश प्राप्त है। इससे प्रतीत होता है कि, अशोक के सुविख्यात थे। . ... राज्यकाल में यवन लोगों की एक वसाहत पश्चिमी भारत यावियस्-(सो. नील.) एक राजा, जो वायु के में गुजरात प्रदेश में भी बसी हुयी थी। अनुसार ऋक्ष राजा का पुत्र था। पतंजलि के महाभाष्य में, मिनेन्डर नामक यवन २. एक आचार्य, जो वायु के एवं ब्रह्मांड के अनुसार, राजपुत्र ने 'साकेत' (अयोध्या) एवं 'मध्यमिका' व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से हिरण्यनाम ऋषि का. नगरी को युद्ध में घिरा लेने का निर्देश प्राप्त है शिष्य था। (महा. २.११९)। आगे चल कर शुगराजा पुष्यमित्र यश--सुतभ देवों में से एक । एवं वसुमित्र ने यवनों को पराजित किया। आंध्र राजा २. विकुंठ देवों में से एक। गौतमीपुत्र शातकर्णी ने इनका संपूर्ण नाश किया। यशस्कर--शिवदेवों में से एक। महाभारत में-महाभारत के अनुसार, यवन लोग | यशस्विन्-प्रतर्दन देवों में से एक। ययातिपुत्र तुर्वसु के वंशज थे (म. आ. ८०.२६)। यशस्विन् जयन्त्य लौहित्य-एक आचार्य, जो ये लोग पहले क्षत्रिय थे; किंतु ब्राह्मणों से द्वेष रखने के कृष्णरात त्रिवेद लौहित्य नामक आचार्य का शिष्य था कारण, बाद में शूद्र बन गये थे (म. अनु. ३५.१८)। (वं. ब्रा. ३: जै. उ, ब्रा. ३.४२.१)। लोहित का वंशज उसी ग्रंथ में अन्यत्र इन्हे नंदिनी के योनि (मूत्र) प्रदेश होने से इसे 'लौहित्य' पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। से उत्पन्न कहा गया है (म. आ. १६५.३५)। । यशस्विनी-स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म.श. सहदेव ने अपनी दक्षिणदिग्विजय में इनके नगरों को | ४५.१०)। जीता था (म. स. २८.४९)। नकुल ने भी अपनी पश्चिम | यशोदा-हविष्मत् नामक पितरों की मानसकन्या दिग्विजय में इन्हे परास्त किया था (म. स. २९.१५ | (ह. वं. १.१८.६१)। कई ग्रंथों में इसे 'सुस्वधा' पाठ.)। कर्ण ने अपनी पश्चिम दिग्विजय में इन्हे जीता था | ( उपहत ) पितरों की कन्या कहा गया है। इसका विवाह (म. व. परि. १.२४.६६)। इक्ष्वाकुवंशीय विश्वमहत् (विश्वसह) राजा से हुआ था, भारतीय युद्ध में, ये लोग कौरवों के पक्ष में शामिल थे। जिससे इसे दिलीप खट्वांग नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था कांबोजराज सुदक्षिण यवनों के साथ एक अक्षौहिणी सेना ले | (ब्रह्मांड. ३.१०.९०)। कर भारतीय युद्ध में उपस्थित हुआ था (म. उ. १९.२१- मत्स्य में इसे इक्ष्वाकुवंशीय अंशुमत् राजा की पत्नी २२)। भारतीय युद्ध में यवनों के साथ अर्जुन का (म. | कहा गया है. (मत्स्य. १५.१८)। किन्तु यह अयोग्य द्रो. ६८.४१,९६.१), एवं सात्यकि का (म. द्रो. | प्रतीत होता है। अंशुमत् राजा के पुत्र का नाम भी ९५.४५-४६) घनघोर युद्ध हुआ था। दिलीप (प्रथम) ही था। संभव है, इसी नामसादृश्य से
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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