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ययाति
प्राचीन चरित्रकोश
यवक्रीत
१४; ९०.८-९)। इन पुत्रों के अतिरिक्त इसे माधवी | यवक्रीत एवं इसके पिता दोनों तपोनिष्ठ व्यक्ति थे, एवं सुकन्या नामक दो कन्याएँ भी थी (विष्णुधर्म. १. | किंतु इन दोनों को ब्राह्मणलोग आदर की दृष्टि से न देखते ३२)। किंतु अन्य ग्रंथों में सुकन्या को वैवस्वत मनु के | थे, क्यों कि, इनमें वेदों की ऋचाओं के निर्माण करने की पुत्र शर्याति की कन्या कहा गया है।
शक्ति न थी। ययातिपुत्रों के राज्य--ययाति ने अपना साम्राज्य
| तपस्या-यवक्रीत ने वेदज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने पाँच पुत्रों में बाँट दिया, जहाँ उन्होंने पाँच स्वतंत्र | कठोर तप किया, जिससे घबरा कर इंद्र ने इसे सूचना की राजवंशों की स्थापना की। उनकी जानकारी निम्न - कि, यह अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए व्यर्थ प्रयत्न प्रकार है:
न करे । किंतु यह प्रचंड अग्नि को प्रज्वलित कर के १. यदु-इसे मध्य देश के चर्मण्वती (चंबल), | वेदप्राप्ति की लिप्सा में कठोर तप करता ही रहा । इंद्र वेत्रवती ( बेटवा) एवं शुक्तिमती (केन) नदियों से के बार बार मना करने पर इसने उसे उत्तर दिया, 'अगर वेष्टित प्रदेश का राज्य प्राप्त हुआ, जहाँ उसने यादववंश | तुम मेरी मनःकामना पूरी न करोगे, तो मैं इससे भी . की स्थापना की।
| कठिन तप कर के, अपने प्रत्येक अंग को छिन्नभिन्न कर, २. तुर्वसु--इसे मध्य देश के आग्नेय भाग में स्थित | जलती हुई अग्नि में होम कर दूंगा।' वाहरे प्रदेश का राज्य प्राप्त हुआ, जहाँ उसने तुर्वसु |
| इंद्र से भेंट--यवक्रीत के न मानने पर, इंद्र ने. वृद्ध (यवन ) वंश का राज्य स्थापित किया।
ब्राह्मण का वेष धारण किया, एवं वह संध्या के समय ३. अनु--इसे मध्यदेश के उत्तर भाग में स्थित गंगा
घाट पर जाकर, भागीरथी में मुट्ठी भर भर कर बालू डालने यमुना नदियों के दोआब का राज्य प्राप्त हुआ, जहाँ
लगा। उसे ऐसा करते देख कर, इसने उसका कारण पूछा। उसने अनु (म्लेच्छ ) राज्य स्थापित किया।
तब इंद्ररूपधारी ब्राह्मण ने कहा, 'भागीरथी में बालू डाल ४. द्रुह्य--उसे मध्यप्रदेश के यमुना नदी के पश्चिम में,
डाल कर, लोगों के लिए मै एक पूल निर्माण करना चाहता एवं चंबल नदी के उत्तर में स्थित प्रदेश का राज्य प्राप्त
हूँ'। इसने उस ब्राह्मण की खिल्ली उड़ायी, एवं उसको हुआ, जहाँ उसने द्रुह्यु (भोज) वंश का राज्य स्थापित
इस निरर्थक कार्य को न करने की सलाह देते हुए कहा, .. किया।
'यह भागीरथी की धारा का प्रवाह मुट्ठी भर ५. पूरु--इसने ययाति की जरा स्वीकारने के कारण, मिट्टी से तुम नहीं रुका सकते । सेतु बाँधने की कोरी ययातिपुत्रों में सबसे छोटा होने पर भी, पूरुं प्रतिष्ठान | कल्पना में तुम अपने श्रम को व्यर्थ न गवाँओं'। तब देश का राजा बनाया गया। इसे राज्य का सब से | ब्राहाण ने कहा, 'जिस प्रकार तुम वेदज्ञान की प्राप्ति के बड़ा हिस्सा मिल गया, जिस में सारा मध्यदेश एवं गंगा- | लिए तप कर रहे हो, उसी प्रकार में भी लगा हूँ। तब यमुना के दो आब का प्रदेश समाविष्ट था। सोमवंश की | हँसने की बात ही क्या ?' मुख्य शाखा पूरु राजा से 'पूरुवंश' अथवा 'पौरव' कहलाने लगी।
यह सुन कर यवक्रीत ने इंद्र को पहचान लिया, तथा २. स्वायंभुव मन्वन्तर के जित देवों में से एक।
| उससे क्षमा माँगते हुए वरदान माँगा, 'मेरी योग्यता
अन्य सारे ऋषिओं से श्रेष्ठ हो। तब इंद्र ने इसके यवक्री-.' यवक्रीत' ऋषि का नामांतर । यवक्रीत--भरद्वाज ऋषि का एकलौता पुत्र, जिसने
द्वारा माँगे गये सभी वर देते हुए कहा, 'तुम्हें एवं तुम्हारे । वेदों की विद्या को प्राप्त करने के लिए घोर तप किया
पिता में वेदों के सृजन करने की शक्ति जागृत होगी । तुम था (म. व. १३५.१३)। 'यवक्रीत' का शाब्दिक अर्थ
अन्य लोगों से श्रेष्ठ होंगे, तथा तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण 'यव दे कर खरीदा गया' होता है। इसे 'यवक्री'
होगे' (म. व. १३५)। नामांतर भी प्राप्त था। इसका आश्रम स्थूल शिरस् ऋषि इन्द्र के द्वारा वर प्राप्त कर यह अपने पिता भरद्वाज के आश्रम के पास था (म. व. १३५.१३८)। ज्ञान | के पास आया, एवं उसे वरप्राप्ति की कथा सविस्तार केवल अध्ययन से ही प्राप्त हो सकता है, तप से नही, | बतायी। भरद्वाज ने इसकी गर्वपूर्ण वाणी को सुन कर, इसकी इस तत्त्व के प्रतिपादन के लिए इसकी कथा महाभारत में अभिमानभावना को नाश करने के लिए, इसे बालधि दी गयी है।
ऋषि तथा उसके पुत्र मेधाविन् की कथा सुनायी, एवं ૬૮૨