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________________ • यम प्राचीन चरित्रकोश यम दूत-यम के दूतों में दो श्वान प्रमुख थे, जो चार | घनिष्ठ रूप से संबद्ध होने के कारण, यम मृत्यु के देवता नेत्रोंवाले, चौड़ी नासिकावाले, शबल, उदुंबल (भूरे ), एवं बन गया। बाद की संहिताओं में 'अंतक' 'मृत्यु सरमा के पुत्र थे (ऋ. १०.१४.१०)। ऋग्वेद में अन्यत्र | 'निर्ऋति' के साथ यम का उल्लेख कर, 'मृ यु' को 'उलूक' एवं 'कपोत' को भी यम के दूत कहा गया है | इसका दूत कहा गया है (अ. वे. ५.३०; १८.२)। (ऋ. १०.१६५.४)। | अथर्ववेद में मृत्यु को मनुष्यों का, तथा यम को पितरों का मित्रपरिवार-यम के मित्रों में अग्नि प्रमुख है, जिसे | अधिपति कहा गया है, तथा 'निद्रा' को कहा गया है यम का मित्र एवं पुरोहित कहा गया है (ऋ. १०.२१; | कि, वह यम के क्षेत्र से आती है। ५२)। मृत लोगों को द्युलोक में ले जानेवाला अग्नि यम का | व्युत्पत्ति—यम शब्द का भाषाशास्त्रीय आशय 'यमज' मित्र होना स्वाभाविक ही प्रतीत होता है । इसके अन्य मित्रों | (जुड़वां पैदा होनेवाला) है, जिस अर्थ में इसका निर्देश में वरुण एवं बृहस्पति प्रमुख थे, जिनके साथ यह आनंद- | ऋग्वेद में अनेक बार प्राप्त है (ऋ. १०.१०) । अवेस्ता पूर्वक निवास करता था। वैदिक साहित्य में अन्यत्र निम्न- में निर्दिष्ट 'यिम' का अर्थ भी यही है । इसके अतिलिखित देवताओं को यम से समीकृत किया गया है:- | रिक्त, 'निर्देशक ' अर्थ से 'यम' का प्रयोग भी ऋग्वेद अग्नि (तै. सं. ३.३.८.३); वायु (नि.१०.२०.२); एवं | में कई बार हुआ है। उत्तरकालीन साहित्य में, यम को सूर्य (ऋ. १०.१०; १३५.१)। दुष्टों का यमन (नियंत्रित ) करनेवाला देवता माना गया यम-यमी संवाद--यम एवं उसकी जुड़वा बहन यमी | है । का संवाद ऋग्वेद में प्राप्त है, जहाँ यमी इससे संभोग के | वेदकालोपरांत यम--महाभारत तथा पुराणों में इसे लिए प्रार्थना करती है । उस समय यम ने भगिनीसंभोग विवस्वत् तथा संज्ञा का पुत्र कहा गया है (ह. वं. १.९. अधर्म कह कर उसे निराश . किया। फिर यमी ने | ८;माके. ७४.७; भा. ६.६.४०; मत्स्य. ११.४; विष्णु. इससे कहा, 'यहाँ कौन देख रहा है' ? तब इसने कहा, | ३.२.४; पद्म. सू. ८; वराह. २०.८; भवि. प्रति. ४. 'देवदूत देखते है, जिनका निवास-संचार हर एक स्थान | १८)। संज्ञा को सूर्य का तेज सहन न होता था, इसलिए पर है । (न निमिषन्त्येते देवानां स्पर्श इह ये चरन्ति) वह उसके सामने आते ही नेत्र बन्द कर लेती थी । इसी (ऋ. १०.८)। यह कथा उस समय की है, जब मानव- लिए सूर्य ने उसे शाप दिया, 'तुम्हारे उदर से प्रजासमाज में नीतिशास्त्र अप्रगल्भ अवस्था में था। संहारक यम जन्म लेगा' (मार्क. ७४.४)। यम यमी - आत्मसमर्पण-ऋग्वेद के एक सूक्त में यम के द्वारा | जुड़वा संतान थे (पन. स.८)। मृत्यु की स्वीकार किये जाने का, एवं यज्ञकुंड में आत्माहुति यम को शाप--इसने छाया नामक अपनी सौतेली देने का निर्देश प्राप्त है (ऋ. १०.१३.४)। उस सूक्त के माता की निर्भर्त्सना कर के उसे लातों से मारा था (ब्रहा.६); अनुसार, देवों के कल्याण के लिए यम ने मृत्यु की स्वीकार एवं दाहिना पैर उठा कर उसकी निर्भर्त्सना की थी (मत्त्य. की (अवृणीत मृत्युम् ), एवं अपना प्रिय शरीर यज्ञकुंड | ११.११, पन. स. ८)। इसलिए छाया ने एकदम क्रोध से में झोंक दिया (प्रियां यमस्तन्वं प्रारिरेचीत्)। इसे शाप दिया, 'तुम्हारा यह पैर गल जायेगा । उसमें ऋग्वेद के इस महत्वपूर्ण सूक्त से प्रतीत होता है कि, पीप, रक्त तथा कीडे होंगे' (मत्स्य. ११.१२)। उसके वैदिक आर्यों के यज्ञसंस्था के प्रारम्भ में यज्ञकर्ता स्वयं बाद यम अपने पिता के पास गया, तथा सारी स्थिति की आहुति देता था। आत्मबलिदान की इसी कल्पना से कह सुनाई । तब पिता ने इसे उःशाप दिया, जिसके संबंध यज्ञसंस्था का प्रारंभ हुआ। प्रजा तथा देवों के कल्याण के से काफी मत मतान्तर है:-'पैर हड्डी सहित न गलेगा, लिए, आत्मसमर्पण करनेवाला यम एक आद्य यज्ञकर्ता केवळ पैर का मांस कीड़े खा लेंगे' (ह. वं १.९.३१ माना जाता है। आगे चल कर, यज्ञ में आत्मबलिदान की | वायु. ८४. ५५ )! 'पीप रक्त इत्यादि कीड़े खा जगह यज्ञीय पशु का हवन करने की प्रथा प्रचलित हुयी । | लेंगे, तथा बाद में पैर पूर्ववत् हो जायेगा' (मत्स्य. ११. मृत्यु का देवता-यम मरणशील मनुष्यों में प्रथम था, | १७)। 'एक लाल पैर का पक्षी पैर खा लेगा, तथा बाद अतएव उसे मृत होनेवालों में प्रधान माना गया, तथा में पैर छोटा परन्तु सुन्दर बन जायेगा। इसे मृत्यु के साथ समीकृत किया गया । अथर्ववेद तथा पितरों का प्रमुख--बाद में इसे वैराग्य उत्पन्न हुआ, बाद के पुराकथाशास्त्र में, मृत्यु का भय के साथ | और इसने तप करना प्रारंभ किया । तब ब्रह्मदेव ने इसे ६७५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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