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________________ प्राचीन चरित्रकोश यदु श्रीकृष्ण के समय, यादवों की संख्या कुल तीन कोटि थी, जिनमें से साठ लाख लोग शूर योद्धा थे । अठारह महारथ - - भागवत में यादववंश में उत्पन्न अठारह शूर योद्धाओं की नामावलि दी गयी है, जो निम्नप्रकार है: - प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, दीप्तिमत्, भानु, साम्ब, मधु, बृहद्भानु, चित्रभानु, वृक, अरुण, पुष्कर, वरबाहु, श्रुतदेव सुनंदन, चित्रबाहु विरूप, कवि एवं न्यग्रोध (मा. १०.९०.३३-३४ ) । इनमें से प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, एवं वज्र भारतीय युद्ध के पश्चात् हुये मौसल युद्ध में मारे गये इसी युद्ध में समस्त यादव वंश का भी जड़मूल से संहार हुआ। इस महाभयानक संहार का वर्णन भागवत, एवं महाभारत में प्राप्त है ( मा. ३.४.१२ म. मी. ४) । इस संहार से केवल चार पाँच यादव ही बच सके ( भा. १.१५.२३ ) । भार्यसंस्कृति का प्रसार -- प्राचीन आर्यसंस्कृति का प्रसार राजपूताना गुजरात, मालवा एवं दक्षिण के प्रदेशों में करने का महान कार्य यादव लोगों ने किया । पूर्वकाल में ये सारे प्रदेश अनार्य थे, जिन्हे आर्य धर्म एवं संस्कृति की दीक्षा यादवों ने दी। यह कार्य करते समय ये लोग अनार्य लोगों के साथ सम्मिलित हुये कर्मठ आर्यधर्म का पालन न कर सके। इसी कारण महाभारत एवं पुराणों इन्हे 'असुर' कहा गया है, एवं उत्तरी पश्चिमी भारत के ‘नीच्य’ एवं ‘अपाच्य ’जातियों में इनकी गणना की गयी है। फिर भी आर्यधर्म के प्रसार में इन्होंने जो कार्य किया वह प्रशंसनीय है । यादवों का सर्वश्रेष्ठ नेता श्रीकृष्ण था, जो धर्मनीति एवं युद्धनीति में प्रवीण होने के कारण, समस्त भारतवर्ष का नेता बन गया एवं साक्षात् विष्णु का अवतार कहलाने लगा। आर्यसंस्कृति के प्रसार में यादवों के द्वारा किये गये कार्य में श्रीकृष्ण का बड़ा हाथ रहा है। यादव निंदा -- महाभारत में भूरिश्रवस् राजा के द्वारा यादवों की अत्यधिक कटुशब्दों में आलोचना की गयी है, जहाँ उन्हें आचारहीन (आय), निद्यकर्म करनेवाले, एवं गर्हणीय योनि के कहा गया है ( म. द्रो. ११८.१५) । कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी इन्हे 'छलकपट करनेवाले' कहा गया है, एवं द्वैपायन के साथ कपट करने से इनका नाश होने का निर्देश प्राप्त है ( कौ. अ. पृ. २२ ) । ४. विदर्भदेश का एक राजा, जिसने अपनी प्रभा अपवा सुमति नामक कन्या सगर राजा को विवाह में दी थी। ६७४ यम ५. ( सो. ऋक्ष. ) एक राजकुमार, जो उपरिचर वसु राजा का पुत्र था। युद्ध में यह किसी से पराजित नही होता था ( म. आ. ५७.२९ ) । ६. स्वायंभुव मन्वन्तर के जिस देवों में से एक। यदुध - रेवत मन्वन्तर के सप्तर्पियों में से एक। यद्रा मिलायन -- भृगुकुलोत्पन्न गोत्रकार 'यज्ञपिंडायन' का नामान्तर । 6 यम - एक पार्षद, जो वरुण के द्वारा स्कंद को प्रदान किया गया था। दूसरे पार्षद का नाम अतियम' था (म. श. ४.४.४९ ) । पाठभेद ( भांडारकर संहिता ) - 'एस' एवं ' अतिघस । यम वैवस्वत समस्त प्राणियों का नियमन करनेवाला एक देवता, जो मृत्युलोक का अधिष्ठाता माना जाता है। वैदिक ग्रंथों में इसे मृत व्यक्तियों को एकत्र करनेवा मृतकों को विश्रामस्थान प्रदान करनेवाला, एवं उनके लिए आवास निर्माण करनेवाला कहा गया है (ऋ. १०.१४१ १८; अ. वे. १८. २ ) । ऋग्वेद में इसे मृतकों पर शासन कग्नेवाला राजा कहा गया है (ऋ. १०.१६ ) । इसके अब स्वर्ण नेत्रों तथा सौह रोवाले है। का नाम सरयु था (ऋ. १०.१४ १०) । इसी कारण इसके पिता का नाम विवस्वत् था, एवं इसकी माता । इसे 'वैवस्वत' पैतृक नाम प्राप्त हुआ था (ऋ. १०. १४.१९ ५८.१९ ६०.१०; १६४.२)। अथर्ववेद में इसे उपनिषदों में इसे देवता माना गया है (बृ. उ. १.४. 'विवस्वत्' से भी श्रेष्ठ बताया गया है ( १८.२) । ४.११ १.१.६२१) । पहला राजा - इसे पहला मनुष्य कहा गया है (अ. वे. ८३.१२ ) । इसे राजा भी कहा गया है ( कौ. ॐ. ४८ । उ. १५. ९.११३१०.१४) । शतपथ में इसे दक्षिण का राजा माना गया है (श. ब्रा. २.२.४.२ ) । ऋग्वेद के तीन सूक्तों में इसका निर्देश हुआ है (ऋ. १०. १४. १३५; १५४ ) । निवासस्थान यम का निवासस्थान आकाश के दूरस्थ स्थानों में था (ऋ. ९.११३) । वाजसनेय संहिता में यम एवं उसकी बहन यमी को उच्चतम आकाश में रहनेवाले कहा गया है, जहाँ ये दोनों संगीत एवं बीणा के स्वरों से घिरे रहते हैं (बा. सं. १२.६२) । ऋग्वेद में अन्यत्र इसका वासस्थान तीन लोकों में सब से उँचा कहा गया है (ऋ. १.१.५-६ ) ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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