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________________ प्राचीन चरित्रकोश यदु हरिवंश एवं ब्रह्म के अनुसार, यदु ने किसी ब्राह्मण २८)। हरिवंश के अनुसार, यदु के पाँच पुत्रों ने यादव को कई वस्तु दान में देने का अभिवचन दिया था, जिस | वंश की पाँच शाखाएँ प्रस्थापित की। उनमें से माधव ने कारण इसने ययाति की जरा स्वीकार ने में असमर्थता | मथुरा नगरी में राज्य स्थापित किया, एवं मुचकुंद, सारस, प्रकट की (ह. वं. १.३०.२३-२४: ब्रह्म. १२)। हरित एवं पद्मवर्ण राजाओं ने दक्षिण हिंदुस्थान में — इसे एवं इसके भाई अनु को यद्यपि राज्य प्राप्त हुआ महाराष्ट्र में आ कर स्वतंत्र राज्य स्थापित किये, जो आगे था, फिर भी सार्वभौम राज्याधिकार से ये सदा के लिए चल कर करवीर (कोल्हापूर) आदि नामों से प्रसिद्ध वंचित रहे (विष्णु. ५.३)। इसी कारण 'यादव वंश' हुये । हरिवंश में प्राप्त माधव की वंशावली निम्न प्रकार में उत्पन्न हुये कृष्ण आदि राजा को, एवं 'अनुवंश' में है:-माधव-सत्वत्-भीम सात्वत-अंधक-रैवत-ऋक्ष उत्पन्न हुये कर्ण आदि को अन्य सार्वभौम राजाओं से | एवं विश्वगर्भ-वसुदेव, दमघोष, वसु, बभ्रु, सुषेण एवं उपेक्षा सहनी पडी । श्रीकृष्ण को 'ग्वाला', एवं कर्ण को | सभाक्ष-श्रीकृष्ण (ह. वं. २.३८.३६-५१)। 'सूतपुत्र' व्यंजनात्मक उपाधियाँ उनके विपक्ष के लोगों के | __सास्वत शाखा-इनमें से भीम सात्वत राम दाशरथि द्वारा प्रदान की जाती थी। राजा का समकालीन था। उसने इक्ष्वाकुवंशीय शत्रुपरिवार-हरिवंश के अनुसार, यदु को कुल पाँच | घातिन् राजा से मथुरा नगरी को जीत कर, वहाँ अपना पत्नियाँ थी. जो धम्रवर्ण नामक नाग की कन्याएँ थी। इन राज्य स्थापित किया। सात्वत राजा को भजमान, देवावृध, पाँच पत्नियों से इसे निम्नलिखित पाँच पुत्र उत्पन्न हुयेः- | अंधक एवं वृष्णि नामक चार पुत्र थे, जिनके कारण, १. पनवर्ण, २. माधव, ३. मुचुकुंद, ४. सारस, ५.यादव वंश की चार शाखाएँ उत्पन्न हयी। उनमें से देवावृध एवं उसके पुत्र बभ्र ने अबु पहाड़ी के प्रदेश में 'सहस्त्रद ' एवं 'पयोद' नामक दो पुत्रों का निर्देश प्राप्त स्थित मार्तिकावत देश में अपना राज्य स्थापित किया। है (ह. वं. १.३३.१.)। . ___ अंधक एवं उसके दो पुत्र कुकुर एवं भजमान, मथुरा में इनके अतिरिक्त, निम्नलिखित ग्रंथों में यदु के पुत्र | राज्य करते रहे । कंस राजा उन्ही के वंश में उत्पन्न हुआ इस प्रकार बताये गये है: था। भजमान के पुत्र 'अंधक' नाम से ही सुविख्यात हुये, १, भागवत में--क्रोष्टु, सहस्रजित् , नल, एवं रिपु एवं उनका राज्य मथुरा के पास ही कहीं था। भारतीय (भा. ९.२३)। युद्ध के समय कृतवर्मन् उनका राजा था। वृष्णि का राज्य २. मत्स्य में--नील, अंतिक, एवं लघु (मत्स्य. ४३. गुजराथ में द्वारका प्रदेश में था ( वृष्णि देखिये)। अन्य शाखाएँ-इनके सिवा यादव वंशों के अन्य कई ३. वायु में--जित एवं लघु (वायु. ९४.२)। उपशाखाओं का राज्य विदर्भ, अवंती, दशार्ण प्रदेश में ४. विष्णु में--क्रोष्टु (विष्णु. ४.११)। भी था। ५. पद्म में--भोज, भीमक, अंधक, कुंजर, वृष्णि, | हैहकों का मुख्य राज्य नर्मदा नदी के किनारे, माहिष्मती श्रुतसेन, श्रुताधार, कालदंष्ट्र एवं कालजित (पन. भू. | में था, एवं उनकी वीतहोत्र, शर्यात, भोज, अवन्ती एवं पार्गिटर के अनुसार, भागवत में प्राप्त युदुपुत्रों की तुंडिकेर नामक पाँच शाखाएँ प्रमुख थी। नामावली प्रक्षिप्त है। यदु के पुत्रों में केवल दो पुत्र ही । यद्यपि हैहयों के उपशाखाओं में से 'भोज' एक था, फिर महत्त्वपूर्ण थे :-१. कोष्ट, जिसने मथुरा में यादव वंश भी गुजरात के वृष्णियों को छोड़ कर बाकी सारे यादव की स्थापना की.२ जित लिने यश की वंश 'भोज' सामुहिक नाम से प्रसिद्ध थे। इसी कारण, स्थापना की (पार्गि.८७)। निम्नलिखित यादव राजाओं को 'भोज' कहा गया है:यादववंश--पुराणों में यादववंश की जानकारी विस्तृत | उग्रसेन, कंस, कृतवर्मन् , विदर्भराज भीष्मक, एवं रुक्मिन् । रूप में उपलब्ध है, किंतु वहाँ प्राप्त बहुत सारे निर्देश एक । भीम सात्वत से ले कर श्रीकृष्ण तक के यादव राजाओं दूसरे से मेल नहीं खाते है । वायु के अनुसार, यादव वंश | का मुख्य राज्य मथुरा में ही था। जरासंध की भय से, की ग्यारह शाखाएँ थी (वायु. ९६.२५५)। मत्स्य के श्रीकृष्ण ने एक स्वतंत्र यादव राज्य पश्चिम समुद्र के तट अनुसार, इनकी एकसौ शाखाएँ थी (मत्स्य. ४७.२५- | पर सुराष्ट्र में स्थित द्वारका नगरी में स्थापित किया। प्रा. च. ८५] ६७३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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