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यति
प्राचीन चरित्रकोश
यदु
गया (म. आ. ७०.२८%; ६९२, भा. ९.१८.१-२; ___ अपने पिता ययाति को युवावस्था देने से इसने पन. सृ. १२; मत्स्य. २.४.५१; ह. वं. १.३०.३)। अस्वीकार कर दिया । इस कारण, ज्येष्ठ पुत्र होते हुये
४. ब्रह्मदेव का एक मानसपुत्र (भा. ४.८.१)। भी ययाति ने प्रतिष्ठान देश के अपने राज्य से इसे ५. विश्वामित्र का एक पुत्र ।
वंचित कर, अपने कनिष्ठ पुत्र पूरु को राज्य प्रदान किया। ६. शिवदेवों में से एक।
ययाति के मृत्यु के पश्चात् , उसके राज्य का थोडा हिस्सा यतिनाथ-एक शिवावतार । अबु के पहाड पर इसे प्राप्त हुआ, जिसमें मध्य भारत के चर्मण्वती आहुका नामक एक भिल्लदम्पती रहते थे । इसने उन पर (चंबल), वेत्रवती (बेटवा), शुक्तिमती (केन) कृपा की, जिसके कारण अगले जन्म में उन्हे राजवंश में नदियों से वेष्टित प्रदेश शामिल था। हरिवंश के अनुसार, नल एवं दमयंती के रूप में जन्म प्राप्त हुआ (शिव. ययाति के राज्य में से पूर्वी उत्तर प्रदेश का राज्य इसे शत. २८)।
| प्राप्त हुआ था (ह. वं. १.३०.१८)। यतीश्वर-शिखण्डिन् नामक शिवावतार का शिष्य। इसी प्रदेश में इसने अपना सुविख्यात राजवंश
यदु--एक जातिसमूह, जो दाशराज्ञ युद्ध में भरत एवं स्थापित किया । इस राजवंश ने मथुरा, गुजराथ, राजा सुदास के विपक्ष में था (ऋ. ७.१९.१८) सीमर काठेवाड प्रदेश में स्थित राक्षस लोगों का नाश किया। के अनुसार, यदु, अनु, द्रुह्य एवं तुर्वश लोग मिल कर पश्चात् इन दोनों प्रदेश में यादव एवं उन्हीके ही वंश के. प्राचीन 'पंचजन' लोग बने थे, जिनका निर्देश ऋग्वेद में हैहय लोगों का राज्य स्थापित हुआ। प्राप्त है (त्सीमर- आल्टिन्डिशे लेबेन. १२२; १२४)। शाप-शुक्राचार्य के शाप के कारण, इसके पिता दाशराज्ञ युद्ध में अर्ण एवं चित्ररथ राजा पानी में डूब कर | ययाति का तारुण्य नष्ट हुआ। फिर ययाति ने अपने . मर गये, जिनके साथ ये लोग भी मरनेवाले थे। किन्तु | ज्येष्ठ पुत्र यदु को अपनी जरा ले कर उसके बदले इसका.. इन्द्र ने इन्हें बचाया। यदु एवं तुर्वश लोगों को सुदास | तारुण्य देने की प्रार्थना की । यदु ने अपने पिता की यह राजा के हाथ में देने की प्रार्थना, ऋग्वेद में वसिष्ठ के | प्रार्थना अस्वीकार कर दी। इस पर क्रद्ध हो कर ययाति द्वारा इन्द्र से की गयी है (ऋ.७.१९.८)। इन्द्र के द्वारा | ने इसे शाप दिया, 'आज से तुम एवं तुम्हारे वंशज इन्हे सदास राजा के हाथ सौंप देने का निर्देश भी ऋग्वेद | राज्यधिकार से वंचित रहोगे' (म. आ. ७९.१-७)। में प्राप्त है।
यदु के जिस भाईयों ने इसका अंनुकरण किया, उन्हें भी ___ इससे प्रतीत होता है कि, ये लोग शुरु में सुदास राजा ययाति का यही शाप प्राप्त हुआ। के शत्र थे, किन्तु आगे चल कर उसके मित्र बने (ऋ. ४. पौराणिक ग्रंथों में ययाति ने इसे निम्नलिखित अन्य ३०.१७;६.२०.१२; ४५.१)।
शाप देने का निर्देश प्राप्त है:-१. 'तुम मातुलकन्या२. यदु लोगों का राजा, जिसका निर्देश ऋग्वेद में परिणय करोंगे'। २. 'तुम मातृद्रव्य का हरण करोगे' अनेक बार प्राप्त है। यह सुदास राजा का शत्रु था, किन्तु | (पन. भू. ८०)। ३. 'तुम सोमवंश में न रहोंगे। इंद्र का उपासक था (ऋ. १.१०८.८; १७४. ९,५.३१.७; | ४. तुम यातुधान नामक राक्षस उत्पन्न करोंगे' (वा. रा. ७.१९.८.)। दाशराज्ञ युद्ध में यह एवं तुर्वश राजा | उ. ५९.५; १४-१६, २०)। अपनी जान बचा कर भाग गये थे, जब की इसके मित्र ययाति का अत्यंत प्रिय पुत्र होते हुये भी, यदु ने अनु एवं द्रा मारे गये थे। इसके साथ उग्रदेव, नर्य, | अपने पिता की जरा लेना अस्वीकार क्यों कर दिया, तुर्वीति, एवं वैय्य आदि व्यक्तियों के निर्देश प्राप्त है | इसका स्पष्टीकरण वायु एवं भागवत में प्राप्त है। इन (ऋ. १.३६.१८, ५४.६ )। ऋग्वेद में इसके वंशजों का | ग्रंथों के अनुसार, अपना यौवन ले कर अपने पिता निर्देश 'याद' नाम से किया गया है (ऋ. ७.१९.८.)। अपनी ही माता से भोगविलास करे, यह कल्पना इसे किन्तु इनमें से किसी का भी निर्देश पुराणों में प्राप्त नहीं है। अपवित्र एवं अवैध प्रतीत हुयी । इसी कारण, यद्यपि
३. (सो. आयु.) ययाति राजा के पाँच पुत्रों में से पिता की प्रार्थना मान्य करने से पित्राज्ञा का पालन करने ज्येष्ठ पुत्र । ययाति राजा को देवयानी से दो पुत्र उत्पन्न | का पुण्य प्राप्त होगा, फिर भी उससे मात्रागमन का हुये थे, जिनके नाम यदु एवं तुर्वसु थे (ह. वं. १.३०. | महान् दोष भी लगेगा, ऐसे सोच कर, इसने ययाति की . ५ म. आ. ७८.९; मत्स्य. ३२.९)।
प्रार्थना अमान्य कर दी (वायु. ९३; भा. ९.१९.२३)। ६७२