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________________ यज्ञदत्त • ४. (सो. कुरु. भविष्य . ) एक राजा, जो भविष्य के अनुसार शतानीक राजा का पुत्र था। यज्ञपति -- भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । प्राचीन चरित्रकोश यज्ञबाहु - ( स्वा. प्रिय. ) शाल्मलिद्वीप का एक सुविख्यात राजा, जो भागवत के अनुसार प्रियव्रत राजा का पुत्र था। इसकी माता का नान बार्हिष्मती था । इसे निम्नलिखित सात पुत्र थे: -- सुरोचन, सौमनस्य, रमणक, देववर्ष, पारिभद्र, आप्यायन एवं अविज्ञात ( भा. ५. २०.९ ) । इसने शाल्मलिद्वीप के अपने राज्य के सात भाग कर, उन्हें अपने उपनिर्दिष्ट पुत्रों में बाँट दिये । आगे चल कर, उस द्विप के सात भाग इसके सात पुत्रों के नाम से सुविख्यात हुयें (भा. ५.१.२५ ) । यज्ञवचस् राजस्तंबायन — एक आचार्य, जो तुर कावषेय नामक आचार्य का शिष्य था (श. ब्रा. १०.४. २.१; मै. सं. ३.१०.३; ४.८.२ ) । इसके शिष्य का नाम कुश्रि-था ( उ. ६.५.४ काण्व)। राजस्तंत्र का वंशज होने कारण इसे 'राजस्तंत्रायन' नाम प्राप्त हुआ होगा । यति भागवत एवं विष्णु में इसे शिवत्कंद राजा का, एवं वायु गौतम राजा का पुत्र कहा गया है । यज्ञपिंडायन -- भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । पाठभेद - ( म. आ. १२२.२६; द्रुपद देखिये) । ' यद्रा मिलायन' । यज्ञवराह-- वराहरूपधारी श्रीविष्णु का नामान्तर . ( म. स. परि. १. क्र. २१. पंक्ति. १२८ ) । यज्ञवाह -- अगस्त्यकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । २. स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.६५ ) । यज्ञशत्रु -- एक राक्षस, जो लंका में रहनेवाले खर नामक राक्षस का अनुगामी था ( वा. रा. अर. ३१) । २३. यज्ञशर्मन- -- द्वारका में रहनेवाला एक ब्राह्मण, जो शिवशर्मन् नामक एक तपस्वी ब्राह्मण का पुत्र था । यज्ञसेन -- पांचालनरेश द्रुपद राजा का नामान्तर यज्ञसेन चैत्र -- एक आचार्य, जिसका पैतृक नाम 'चैत्र' अथवा 'चैत्रियायण ' था (का. सं. २१.४; तै. सं. ५.३.८.१ ) । यज्ञहन -- एक राक्षस, जो रक्षस् एवं ब्रह्मधना का पुत्र था । २. कृष्णपुत्र वृष का पुत्र । यज्ञहोत्र -- उत्तम मनु के पुत्रों में से एक । यज्ञापेत - एक राक्षस, जो रक्षस् एवं ब्रह्मधना का पुत्र था । यज्ञेषु - एक यज्ञकर्ता, जिसके पुरोहित का नाम मात्स्य था । यज्ञ प्रारंभ करने के लिए उत्तम मुहूर्त जाननेवाले मास्त्य ने एक सुमुहूर्त पर इसका यज्ञ प्रारंभ किया, एवं संपन्न बनने में इसे सहाय्यता की (तै. सं. १. ५. २. १ ) । यज्वन् - पारावत देवों में से एक । यति - यज्ञविरोधी एक जातिसमूह, जिनका निर्देश ऋग्वेद में अनेक बार प्राप्त है (ऋ. ८.३.९; ६.१८ ) । ये लोग यज्ञविरोधी होने के कारण, इन्द्र ने एक अशुभ मुहूर्त में इन्हे कड़वे ( सालानुक ) को दे दिया था । इनमें से पृथुरश्मि, बृहत् गिरि एवं रायोवाज ही अपने को बचा सके। उनकी दया आ कर इंद्र ने उनकी रक्षा की, एवं उन्हे क्रमशः क्षात्रविद्या, ब्रह्मविद्या, एवं वैश्यविद्या सिखायी (तै. सं. २.४.९.२१ का. सं. ८.५; पं. ब्रा. १३.४.१६ ) । मनुस्मृति में इस कथा का निर्देश प्राप्त है, एवं जानबूझ कर ब्रह्महत्त्या करने पर प्रायश्चित्त लेनेवाले लोगों में मनु ने इन्द्र का निर्देश किया है (मनु. ११.४५. कुल्लूकभाष्य ) | एकबार इसकी पितृभक्ति की परीक्षा लेने के लिए, इसके पिता शिवशर्मन् ने माया से इसकी पत्नी का वध किया । पश्चात् उसने इसे पत्नी की शरीर टुकड़े टुकड़े कर, उन्हें फेंक देने के लिए कहा । अपने पिता की आज्ञानुसार, इसने यह पाशवी कृत्य किया । इस पर इसका पिता प्रसन्न हुआ, एवं उसने इसे अपनी पत्नी पुनः जीवित करने के लिए कहा (पद्म. भू. १. ) । यज्ञश्री -- (आंध्र. भविष्य . ) एक सुविख्यात आंध्रवंशीय राजा, जो ब्रह्मांड के अनुसार गौतमीपुत्र राजा का पुत्र था । मत्स्य में इसका 'शिवश्री' नामान्तर दिया गया है | इसके पितामह का नाम शिवस्वाति था । को नहुष राजा का ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण, उसके पश्चात् प्रतिष्ठान के राजगद्दी पर इसका ही अधिकार था। किंतु यह प्रारंभ से ही विरक्त था, जिस कारण अपने छोटे भाई ययाति को राज्य दे कर, यह स्वयं वन में चला । ६७१ २. एक आचार्य, जिसका निर्देश सामवेद में भृगु ऋषि के साथ किया गया है (सा. वे. २.३०४ ) । ३. (सो. पुरुरवस्.) नहुष के छः पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र । कुकुत्स्थ राजा की कन्या गो इसकी पत्नी थी (ब्रह्म. १२.३; वायु. ९३.१४ ) ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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