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प्राचीन चरित्रकोश
मौद्गल्यं
इन्दाजेत् से युद्ध-इन्द्रजित् के साथ हुए मायावी दानवों ने अपने अधिकार में अमृतकलश रक्खा था। युद्ध में राम एवं लक्ष्मण मूर्छित हुए । उस समय, विभी- | देवों को अमृत पी कर अमर होने की इच्छा थी, किन्तु षण ने कुवेर से प्राप्त दैवी उदक सारे रामपक्षीय वानरों| वे यह नही चाहते थे कि, दानव अमृतपान कर अमर को आँखों में लगाने के लिए दिया, जिसका उपयोग हो जाये । इस अवसर पर, श्रीविष्णु ने मोहिनी नामक करते ही गुप्त रूप से लड़ाई करनेवाले इन्द्रजित् के सैन्य सुंदर अप्सरा का रूप धारण कर दानवों को मोहित किया। के सारे असुर वानरसैन्य को साफ दिखाई देने लगे। यह सुअवसर देखकर, देवों ने यथेष्ट अमृतपान किया, इस उदक को अपनी आँखों को लगा कर, इसने भी काफ़ी | एवं वे अमर हुयें (भा. १.३; ८.८-१२; म. आ. १७. पराक्रम दिखाया था (म. व. २७३.१-१३)। ३९-४०; भस्मासुर देखिये)।
यह एवं इसका भाई द्विविद ने किष्किंधा नामक गुफा | २. एक वेश्या, जो मृत्यु के समय गंगाजल पीने के के समीप सहदेव से युद्ध किया था, जो दक्षिण दिग्विजय | कारण, अगले जन्म में द्रविड देश के वीरवर्मा राजा की के लिए उस नगरी में आया था। आगे चल कर, इन्होंने | पटरानी हुयी (पद्म. उ. २२०)। सहदेव को रत्न आदि करभार प्रदान किया, एवं उसे मौजवत--अक्ष नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का पैतृक बिदा किया (म. स. परि. १. क्र. १३ पंक्ति. १५-२०)। नाम।
मैरावण-महिरावण नामक राक्षस का नामान्तर । २. मूजवन्त लोगों का नामान्तर ( मूजवन्त देखिये)। अहिरावण एवं महिरावण राक्षसों की कथा 'आनंद | मौंज-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । रामायण' में प्राप्त है, जहाँ उन्हे 'मैरावण' एवं 'ऐरावण' मोजकेश--अत्रिकलोत्पन्न एक गोत्रकार। कहा गया हैं (अहिरावण-महिरावण देखिये)। मौजवृष्टि-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
मोद-हिरण्याक्ष के पक्ष का एक असुर, जिसका | मौजायन--युधिष्ठिर की सभा का एक ऋषि (म. स. देवासुरसंग्राम के समय वायु ने वध किया था। | ४.११) । हस्तिनापुर जाते समय, मार्ग में श्रीकृष्ण से
२.ऐरावतकुलोत्पन्न एक सर्प, जो जनमेजय के सर्पसत्र इसकी भेंट हुयी थी (म. उ. ८१.३८८५)। में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.१०)
मौजायनि-विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । ३. मौद्ग नामक आचार्य का नामान्तर ।
पाठभेद-'कौब्जायनि'। मोदोष-एक आचार्य, जो विष्णु के अनुसार व्यास मौद्ग--एक आचार्य, जो भागवत के अनुसार व्यास की अथर्वन् शिष्यपरंपरा में से वेददर्श नामक आचार्य की अथर्वशिष्य परंपर। में से देवदर्श नामक आचार्य का का शिष्य था (व्यास देखिये)।
शिष्य थे । पाठभेद-'मोद' एवं 'मोदोष'। - मोह-ब्रह्मा का एक पुत्र, जो उसकी छाया से उत्पन्न | मौदल-एक आचार्य, जो वेदमित्र नामक आचार्य हुआ था (मा. ३.२०)। मत्स्य के अनुसार, यह ब्रह्मा | का शिष्य था। पाठभेद-' मुद्गल ' (व्यास देखिये) की बुद्धि से उत्पन्न हुआ था (मत्स्य. ३.११)।
मौद्गलायन-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। . मोहक-एक राजकुमार, जो राम के परमभक्त सुरथ मौदल्य--एक पैतृक नाम, जो नाक, शतबलाक्ष एवं नामक राजा का पुत्र था। सुरथ राजा ने राम का अश्व
लांगलायन आदि आचार्यों के लिए प्रयुक्त हुआ है (श. मेधीय अश्व रोंक दिया था, जिस समय यह सुरथ की
ब्रा. १२.५.२.१; नि. ११.६; ऐ. ब्रा. ५.३.८)। मुद्गल' ओर से युद्ध में शामिल था (पन. पा. ४९)।
का वंशज होने के कारण, उन्हे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ मोहना--सुग्रीव की पत्नी | राम के अश्वमेधीय अश्व |
| होगा। को स्नान कराने के लिए, इसने अपने पति के साथ सरयू का जल लाया था (पद्म. पा. ६७)।
२. एक ब्रह्मचारी पुरुष, जिसने ग्लाव मैत्रेय नामक
आचार्य ले साथ वाद-विवाद किया था (गो. ब्रा. १.१. मोहिनी-विष्णु का एक अवतार, जो चाक्षुष मन्वन्तर में हुआ था। समुद्रमंथन से चौदह रत्न निकले, जिसमें अमृत भी था। देव एवं दानवों ने मिल कर समुद्रमंथन | ३. एक ब्राह्मण, जो मुद्गल एवं भागीरथी का पुत्र किया, जिस कारण दोनों को अमृतप्राशन करने का था। इसकी पत्नी का नाम जाबाला था । विष्णु की अधिकार था। इसलिए वे अमृतप्राशनार्थ एकत्रित हुयें। आज्ञानुसार गरुड के द्वारा दिया हुआ भुट्टा इसने
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३१)।