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मैत्रेय सोम
प्राचीन चरित्रकोश
१.३२.७५-७७)। इसके बाद इसका पुत्र संजय उत्तर | आत्मा का अध्ययन एवं मनन करने से ही संसार के पंचाल देश के राजगद्दी पर बैठा ।
हर एक वस्तु का ज्ञान प्राप्त होता है। इसी कारण, मैत्रेय ब्राह्मण-मैत्रेय राजा से 'मैत्रेय ब्राह्मण' नामक | इस सर्वश्रेष्ठ ज्ञान का साक्षात्कार मैं तुम्हे करना चाहता ब्राह्मण जाति का निर्माण हुआ। मैत्रेय एवं इसके पूर्वज | हूँ'। 'क्षत्रिय ब्राह्मण' कहलाते थे । उत्तर पंचाल देश के मुद्गल | इस संवाद में आत्मा शब्द का अर्थ · विश्व का राजा का ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मिष्ठ सर्वप्रथम ब्राह्मण बन गया, | अन्तीम सत्य ' लिया गया है। जिससे 'मुद्गल' अथवा 'मौद्गल्य' नामक क्षत्रिय ब्राह्मण बृहदारण्यक उपनिषद में अन्यत्र याज्ञवल्क्य एवं उत्पन्न हो गये । ये ब्राह्मण स्वयं को 'आंगिरस' कहलाते | मैत्रेयी के बीच हुए अन्य एक संवाद का निर्देश प्राप्त . थे (मत्स्य. ५-७; वायु. ९०.१९८-२०१)। है (बृ. उ. ४.५.११-१५)। मैत्रेयी याज्ञवल्क्य से
ब्रह्मिष्ठ का पुत्र वयश्व, एवं पौत्र दिवोदास ये दोनो | पूछती है, 'मनुष्य जब वेहोश होता है, तब उसकी वैदिक सूक्तद्रष्टा थे, एवं भार्गव कुल में शामिल हो गये थे आत्मा का क्या हाल होता है ? वह परमात्मा से विला (ऋ. १०.५९.२, ८.१०३.२)। स्वयं मैत्रेय, एवं इसका | होता है, या वैसा ही रहता है? उसपर याज्ञवल्क्य पिता मित्रयु 'भार्गव' कहलाते थे । पराशर ऋषि ने मैत्रैय | ने जवाब दिया, 'बेहोश अवस्था में भी आत्मा एवं को 'विष्णु पुराण' का ज्ञान कराया था (विष्णु. १.१. परमात्मा एक ही रहते है, क्यों कि, आत्मा 'अंगृह्य' ४-५)।
'अशीय' एवं 'असंग' रहता है। .... मैत्रेय एवं मौद्गल्य ब्राह्मण कुलों में कोई भी विख्यात याज्ञवल्क्य के द्वारा आत्मज्ञान की प्राप्ति होने पर, ऋषि उत्पन्न न हुआ था, किन्तु मैत्रेय कौशारव नामक एक | अपनी सारी जायदाद अपनी सौत कात्यायनी को दे कर, ऋषि का निर्देश वैदिक ग्रंथों में प्राप्त है ( मैत्रेय कौशारव | यह याज्ञवल्क्य के साथ वन में चली गयी। देखिये)।
मैनाक--एक सुविख्यात पर्वत, जो हिमालय एवं मैत्रेयी--एक सुविख्यात ब्रह्मवादिनी स्त्री, जो याज्ञ- मेनका ( मेना) का पुत्र था (ह. वं. ११८.१३)। वल्क्य महर्षि की दो पत्नियों में से एक थी (बृ. उ. ४. वाल्मीकिरामायण में इसका चरित्र एक व्यक्ति मान ५.१)। बृहदारण्यक उपनिषद में इसका अनेक बार उल्लेख | कर दिया गया है। प्राप्त है, जहाँ इसके एवं य ज्ञवल्क्य ऋषि के संवाद
। इन्द्र ने पृथ्वी के सारे सारे पर्वतों के पंख तोड़ डाले। उद्धृत किये गये हैं (बृ. उ. २.४.१-२, ४.५.१५)।
उस समय, यह भय के मारे समुद्र में जा कर छिप यह संभवतः ब्रह्मवाह के पुत्र याज्ञवल्क्य की पत्नी
गया । हनुमत् लंका दहन के लिए जा रहा था, उस होगी।
समय यह समुद्र के कहने पर बाहर आया, एवं अपने __ मैत्रेयी-याज्ञवल्क्यसंवाद-याज्ञवल्क्य महर्षि ने शिखर पर सवार होने की प्रार्थना इसने हनुमत् से का। संन्यास लेने पर, उसकी जायदाद में से उसके अध्यात्मिक
मात्मक इसके पुत्र का नाम क्रौंच था (वा. रा. सु. १.१०५)। ज्ञान का हिस्सा मैत्रेयी ने माँगा । उस समय मैत्रेयी एवं
या एव मैंद--राम के पक्ष का एक वानर, जो सुषेण वानर के याज्ञवल्क्य के बीच हुए संवाद का निर्देश 'बृहदारण्यक दो पत्रों में से ज्येष्ठ था। इसके कनिष्ठ बन्धु का नाम उपनिषद' में प्राप्त है (बृ. उ. ४.५.१-६)। मैत्रेयी ने दिवि था। ये दोनों भाई अंगद वानर के मामा थे (भा. कहा, 'मुझे अध्यात्मिक ज्ञान की आकांक्षा इसलिए है
१०.६.२)। किं, साक्षात् सुवर्णमय पृथ्वी प्राप्त होने पर भी मुझे अमरत्व प्राप्त नहीं होगा, जो केवल अध्यात्मज्ञान से
| वालिवध के पश्चात् , सुग्रीव ने सीता के शोधार्थ जो प्राप्त हो सकता है । जिस संपत्ति से मुझे अमरत्व प्राप्त | वानर गधम
वानर गंधमादन पर्वत पर भेजे थे, उनमें यह भी शामिल नहीं होगा, उसे ले कर मैं क्या करूं' (येनाहं नामृता
| था (वा. रा. कि. ४१.७)।
था ( स्याम् , किमहं तेन कुर्याम् )।
राम-रावण युद्ध में इसने अत्यधिक पराक्रम दिखाया __ फिर याज्ञवल्क्य ने इसे जवाब दिया, 'जो तुम कह था । इसने एक घुसा मार कर, वज्रमुष्टि नामक असुर का रही हो वह ठीक है । तुम्हारे इन विचारों से मैं प्रसन्न | वध किया (वा. रा. यु. ४३.२७)। इसने यूपाक्ष नामक हूँ। इसी कारण, मैं तुम्हे आत्मज्ञान सिखाना चाहता हूँ।। असुर का भी वध किया था (वा. रा. यु. ७६.३४)।