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________________ मौद्गल्य प्राचीन चरित्रकोश गौतमी नदी के तट पर दान में दिया, जिस कारण इसे ___ आगे चल कर, यह प्राग्ज्योतिषपुर में रहने लगी, ऐश्वर्य एवं समृद्धि प्राप्त हुयी। जहाँ इसका विवाह घटोत्कच के साथ हुआ ( स्कंद. १. ४. एक वृद्ध एवं कोढ़ी ब्रामण, जिसकी पत्नी का नाम | २. ५९-६०)। नालायनी इन्द्रसेना था। इसकी पत्नी ने इसकी सेवा कर मौलि-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इसे प्रसन्न रखा था। २. एक आचार्य, जो बाभ्रव्य नामक आचार्य का पिता एक बार नालायनी की इच्छा होने पर, इसने पाँच | | था। बाभ्रव्य ने पृषध्र राजा को शूद्र बनने का शाप दिया प्रकार के रूप धारण कर, उसके साथ क्रीडा की। फिर था ( पृषध्र देखिये)। उस समय इसने उन दोनों में .. भी वह अतृप्त रही । इस पर क्रुद्ध हो कर, इसने उसे मध्यस्थता की थी। अगले जन्म में पाँच पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी बनने का शाप दिया (म. आ. परि. १. क्र. १००. पंक्ति. ६०- मौषिकीपुत्र--एक आचार्य, जो हारिकीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम बाडेमहाभारत में अन्यत्र इसका, एवं इसकी पत्नी का नाम यीपुत्र था (श. ब्रा. १४.९.४.३०; बृ. उ. ६.४.३० क्रमशः 'मुद्गल' एवं 'चन्द्रसेना' दिया गया है (म. व. माध्य.)। मूषिका के किसी स्त्री वंशज का पुत्र होने के ११४.२४; उ. ४५९४)। कारण, इसे 'मौषिकीपुत्र' नाम प्राप्त हुआ होगा। ५. अंगिराकुलोत्पन्न एक प्रवर । मौहूर्तिक--एक देव, जो धर्म ऋषि एवं मूहूर्ता के ६. राम की सभा का एक मंत्री (वा. रा. उ. पुत्रों में से एक था। ७४.४)। ७. जनमेजय के सर्पसत्र का एक सदस्य (म. आ. . म्लेच्छ-एक जातिविशेष, जो नन्दिनी गौ के फेन ४८.९)। से उत्पन्न हुयी थी। महाभारत में इनका वर्णन 'मुण्ड', ८. एक आचार्य, जो शतद्युम्न नामक राजा का गुरु 'अर्धमुण्ड', 'जटिल', एवं 'जटिलानन' शब्दों में था। पाठभेद - 'मुद्गल' (मुद्गल ४. देखिये)। किया गया है (म. द्रो. ६८.४४)। सर्वप्रथम ये लोग ९. एक ऋषि, जो शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म से भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेश में रहते थे। किन्तु । मिलने के लिए उपस्थित था (म. शां. ४७.६६*)। धर्म से भ्रष्ट हुये सारी जातियों को 'म्लेच्छ' सामान्य पाठभेद - ' मुद्गल'। नाम मनुस्मृति के काल में दिये जाने लगा। मौन--अणी चिन् नामक आचार्य का पैतृक नाम (को. भाषा-शतपथ ब्राह्मण में म्लेच्छ भाषा का निर्देश ब्रा. २३.५)। 'मुनि' वंशज होने से, उसे यह पैतृक | प्राप्त है, जहाँ उसे अनार्य लोगों की बर्बर भाषा कहा नाम प्राप्त हुआ होगा। | गया है (शा. ब्रा. ३.२.१.२४)। मौर्य-(ऐति.) एक सुविख्यात राजवंश, जिसमें | महाभारत में-युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में, म्लेच्छों चंद्रगुप्त आदि दस राजा हुए थे। पुराणों के अनुसार, | का राजा भगदत्त समुद्रतटवर्ति म्लेच्छ लोगों के साथ इस वंश के राजाओं ने १३७ वर्षों तक राज्य किया।। इस वंश में निम्नलिखित राजा प्रमुख थे:-- चन्द्रगुप्त, उपस्थित हुआ था (म. स. ३१.१०)। बिन्दुसार, अशोक, सुयशस् (कुनाल ) एवं दशरथ । महाभारत में सर्वत्र इन्हें नीच एवं धर्मभ्रष्ट माना व्हिन्सेन्ट स्मिथ के अनुसार, इस राजवंश का राज्यकाल गया है। प्रलय के पहले पृथ्वी पर म्लेच्छों का राज्य इ. पू. ३२२-१८५ माना गया है। होने की, एवं विष्णुयशस् कल्कि के द्वारा इनका संहार मोर्वी कामकटंकटा--मुरु नामक यवन राजा की | होने की भविष्यवाणी वहाँ दी गयी है (म.व. १८८. कन्या, जो घटोत्कच की पत्नी थी। इसे 'काम' नामक | २९-८९)। युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में, ब्राह्मणों को देवी से युद्ध में अजेयत्व प्राप्त हुआ था। देने के बाद जो धन बचा हुआ था, वह शूद्र एवं म्लेच्छ कृष्ण के द्वारा मुरु राजा का वध होने पर, इसने | लागा न | लोगों ने उठा लिया था (म. आश्व. ९१.२५)। . श्रीकृष्ण के साथ तीन दिनों तक युद्ध किया । अन्त में | युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, भीमसेन ने अपने कामदेवी ने इस युद्ध में मध्यस्थता की । | पूर्व-दिग्विजय में समुद्रतट पर रहनेवाले म्लेच्छ लोगों
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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