SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 673
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माल्यवत् प्राचीन चरित्रकोश मिजिका सुनायी । भाइयों ने इसको धीरज धराया, एवं देवों से युद्ध | फलस्वरूप इन्हे ' जया एकादशी' का पुण्य प्राप्त हुआ। करने का निश्चय किया। इस युद्ध में, विष्णु ने अन्य देवों इस पुण्य के बल पर ही ये शाप से मुक्त हो सके । बाद के साथ इससे घोर संग्राम करते हुए, इसके भाई मालिका में इन्द्र की आज्ञा से, ये दोनों पतिपत्नी बन कर सुख से वध किया। तब विष्णु के पराक्रम से डर कर, यह अपने रहने लगे (पझ. उ. ४३)। भाई सुमाली के साथ पाताल लोक में जाकर रहने लगा। मावेल्ल--उपरिचर वसु राजा के 'मच्छिल्ल' नाम लंकाप्रवेश-इधर लंका में वैश्रवण नामक कुबेर निवास | पुत्र के लिए उपलब्ध पाठभेद (मच्छिल देखिये)। करता रहा। कुछ समयोपरांत एक दिन यह अपने पाताल- | मावेल्लक--एक लोकसमूह, जो त्रिगर्तराज सुशर्मन् के पुरी से निकल कर मृत्युलोक जा रहा था कि, इसने वैश्रवण | साथ अर्जुन से लड़ने के लिए उपस्थित हुआ था। एवं उसके पिता विश्रवस् को पुष्पक विमान में बैठ कर जाते संभवतः 'मच्छिल' लोगों का यह नामान्तर होगा। हुए देखा। उसके वैभव को देख कर यह आश्चर्यचकित हो माषशरावय-वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषि उठा, एवं उस प्रकार के ऐश्वर्य के भोगलालसा की कामना | गण । संभवतः 'माषशरावीय ब्राह्मण' नामक ग्रंथ की से इसने अपनी कन्या कैकसी वैश्रवण को दी । कालोपरांत | रचना इन्हींके द्वारा की गयी होंगी। वह ब्राह्मण ग्रंथ इसी कैकसी से रावण इत्यादि पुत्र हुए. (सुमालि देखिये)। के उद्धरण मात्र आज उपलब्ध है, मूल ग्रंथ नष्ट हो बाद में जब रावण लंका का राजा हुआ,तब माल्यवत् अपने चुका है। भाई सुमालि तथा अपने परिवार के अन्य राक्षसों के मासकृत-सुतप देवों में से एक । साथ, लंकापुरी में आ कर रहने लगा (वा.रा. उ. ११)। माहकि--वंश ब्राह्मण में निर्दिष्ट एक गुरु का पैतृक बाद में रावण के द्वारा सीता का हरण किया जाने पर, | नाम (वं. बा. २)। महक का वंशज होने के कारण, उसे इसने उसे सीता को तुरन्त राम के पास लौटा देने के | यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। लिए कहा था (वा. रा. यु. ३५.९-१०)। उस समय माहाचमस्य-एक गुरु, जिसे 'भूर् , भुवस् , स्वर' की इसने व्याकुलता से परिपूरित हो कर भावनापूर्ण उपदेश | त्रयी में 'महस्' संयुक्त कराने का श्रेय दिया गया है रावण को दिया था। (ते. आ. १.५.१)। महाचमस् का वंशज होने से इसे 'परिवार--इसे अपनी पत्नी सुन्दरी से वज्रमुष्टि, विरूपाक्ष, | यह नाम प्राप्त हुआ होगा। दुर्मुख, सुप्तघ्न, यज्ञकोप, मत्त, तथा उन्मत्त नामक पुत्र, माहित्थि--एक आचार्य, जो वामकक्षायण नामक तथा अनला नामक पुत्री उत्पन्न हुयी थी (वा. रा. उ.५. | ऋषि का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम कौत्स था .३५-३६)। (बृ. उ. ६.५.४ काण्व. श. ब्रा. १०.६.५.९) । यज्ञकर्म . २. पुष्पदंत नामक गंधर्व का पुत्र । एक बार इन्द्रसभा संबंधित विधियों में यह अत्यधिक तज्ज्ञ था, जिस कारण में जब अनेक गंधर्व नृत्यगायन के लिए एकत्र हुए थे, | इसके तत्संबंधि मतों का उद्धरण शतपथ ब्राह्मण में प्राप्त तब उनमें माल्यवत् तथा चित्रसेन की नातिन पुष्पदंती | है (श. बा. ६.२.२.१०, ८.६.१.१६, ९.५.१.५७)। उपस्थित थी। ये दोनों अत्यंत सुंदर थे, अतएव आपसी | माहिष्मत--चंपावती नगरी का एक राजा, जिसे कुल प्रेमभावना में अनुरक्त हो गये । इससे ये तालस्वर से अलग | पाँच पुत्र थे। उनमें से ज्येष्ठ पुत्र अत्यंत दुराचारी था, गाने लगे। इन्द्र ने इन्हें बेसुरा गाते हुए देख कर, राक्षस जिस कारण उसे 'लुपक' नाम प्राप्त हुआ था। आगे होने का शाप दिया। फिर ये दोनों पिशाच हो गये। चल कर, इसने उस पुत्र को नगर से बाहर निकाल दिया काफी समय बीत जाने के उपरांत, एक बार माघ | (पद्म. उ. ४)। माह की दशमी के दिन इनका आपस में झगड़ा हो। माहेश्वरावतार--शिव का एक अवतार (शिव गया, तथा पिशाचयोनि प्राप्त होने के कारण, ये दोनों | देखिये)। आपस में एक दूसरे को सताने लगे। बाद को इन्होंने मिचकृत--रुद्रसावर्णि मनु के पुत्रों में से एक। निश्चय किया कि, इस योनि से मुक्ति प्राप्त करने के | मिंजिका एवं मिंजिक--रुद्र के दो अपत्य, जो श्वेत लिए, कोई भी पापाचरण से ये दर रहेंगे। पर्वत पर उत्पन्न हुए थे (म. व. २२०.१०-१६)। अपनी दूसरे दिन उपवास कर के, इन लोगों ने एक पीपल के संतानों के आरोग्य चाहनेवाले मातापिता इनकी उपासना वृक्ष के नीचे बैठ कर 'रात्रिजागरण' किया, जिसके | करते है।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy