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मित प्राचीन चरित्रकोश
मित्रयु मित--(सो. पूरु.) एक राजा, जो जय राजा का | अनुसार यह ज्येष्ठ माह में प्रकाशित होता हैं (भा. १२. पुत्र था।
११.३५, वरुण देखिये)। २. एक मरुत् देव, जो मरुतों के पाँचवे गण में ३. लकुलिन् नामक शिवावतार का शिष्य। सम्मिलित था।
४. वसिष्ठ तथा ऊर्जा के पुत्रों में से एक। मितध्वज--(सू. निमि.) विदेह देश का एक राजा, मित्रघ्न--रावणपक्षीय एक असुर, जो राम के द्वारा जो भागवत के अनुसार धर्मध्वज जनक का पुत्र था । इसके | मारा गया (वा. रा. यु. ४३.२७)। पुत्र का नाम खांडिक्य जनक था।
__मित्रजित्-(सू. इ. भविष्य.) एक राजा, जो , मिति-उत्तम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक। विष्णु के अनुसार सुवर्ण राजा का पुत्र था। भागवत, मित्र-एक वैदिक देवता, जिसका निर्देश ऋग्वेद में | वायु एवं ब्रह्मांड में इसे 'अमित्रजित् ,' तथा मत्स्य में इसे प्रायः सभी जगह वरुण के साथ प्राप्त है। ऋग्वेद में इस | 'सुमित्र' कहा गया है। देवता को महान् आदित्य कहा गया है, एवं इसके द्वारा मित्रज्ञ-पांचजन्य नामक अमि का पुत्र, जो पाँच देव, मनुष्यों में एकता लाने का निर्देश प्राप्त है (ऋ.५.८२)। विनायकों में से माना जाता है (म. व. २१०.१२)। इससे प्रतीत होता है कि, मित्र एक सूर्य देवता,एवं विशेषतः मित्रदेव--त्रिगर्तराज सुशर्मन राजा का भाई, जो सर्य से संबंधित प्रकाश की देवता है । वैदिक ग्रंथों में सभी | भारतीय युद्ध में अर्जुन के द्वारा मारा गया (मः क स्थानों पर मित्र को दिन के साथ, एवं वरुण को रात्रि के
| १८.८)। साथ संबंधित किया है।
२. रुद्रसावर्णि मनु का एक पुत्र । अथर्ववेद के अनुसार, मित्र प्रातःकाल के समय उन | मित्रधर्मन्-पांचजन्य अग्नि का एक पुत्र, जो पाँच . सभी वस्तुओं को अनावृत कर देता है, जिन्हे वरुण | देव विनायकों में से एक माना जाता है। . . . ने अच्छा दित किया था (अ. वे. ९.३)। यज्ञवेदी | मित्रबाहु-रुद्रसावर्णि मनु का एक पुत्रं। . पर मित्र को एक श्वत, तथा वरुण को एक कृष्णवर्णीय प्राणि बलि अर्पित करने का निर्देश तैत्तिरीय
मित्रभू काश्यप--एक आचार्य, जो विभांडक काश्यप संहिता में प्राप्त है (तै. सं. २.१.७.९.; मै. सं. २.५)।
नामक आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम इंद्रभू । वैदिक ग्रंथों के समान अवेस्ता में भी मित्र को सौर
काश्यप था (वं. बा.२)। . देवता माना गया है, जहाँ इसका निर्देश 'मिथ' नाम से
मित्रभूति लौहित्य--एक आचार्य, जो कृष्णदत्त किया गया है । वैदिक ग्रंथों के भाँति अवेस्ता में भी, इसे
| लौहित्य नामक आचार्य का शिष्य था (जै. उ. ब्रा. ३. समस्त प्राणिजाति का मित्र, एवं प्रकृति की एक हितकर
| ४२.१)। शक्ति माना गया है।
२. एक आचार्य, जो विष्णु, वायु एवं ब्रह्मांड के २. बारह आदित्यों में से एक । इसकी माता का नाम
अनुसार, व्यास की पुराणशिष्यपरंपरा मे से रोमहर्षण
ऋषि का शिष्य था। . आदिति, एवं पिता का नाम कश्यप था (म. आ. ५९. १५)। अन्य आदित्यों के साथ यह अर्जुन के जन्मोत्सव मित्रयु-(सो. नील.) एक नीलवंशीय राजा, जो में उपस्थित था। खाण्डववनदाह के समय हुए युद्ध में, इसने | दिवोदास राजा का पुत्र था। मत्स्य एवं वायु में इसे इन्द्र की ओर से हाथ में चक्र ले कर, अर्जुन एवं श्रीकृष्ण | 'मित्रायु,' एवं भागवत एवं विष्णु में से इसे 'मित्रेयु' पर आक्रमण किया था। इसने स्कंद को सुव्रत एवं सत्यसन्ध | कहा गया है। नामक दो पार्षद प्रदान किये थे (म. श. ४४.३७)। । इसके पुत्र का नाम च्यवन था (गरुड. १.१४.२२)।
इसकी पत्नी का नाम रेवती था, जिससे इसे उत्सर्ग, | किन्तु वायु एवं मत्स्य में इसके पुत्र का नाम 'मैत्रेय' अरिष्ट एवं पिप्पल नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे (भा.६. | कहा गया है। हरिवंश के अनुसार, यह एक शाखा१८.६)।
प्रवर्तक आचार्य था, जिससे 'मैत्रेय ब्राह्मण' एवं 'मैत्रायणी __ भविष्य के अनुसार, मार्गशीर्ष माह में प्रकाशित | शाखा' उत्पन्न हुयी (ह. वं. १.३२)। होनेवाले सूर्य को मित्र कहते है, एवं इसके ग्यारहसौ। २. भृगुकुलोत्पन्न एक ऋषि, जिसकी कन्या का नाम किरण रहते है (भवि. ब्राह्म. ७८.५७)। भागवत के | मैत्रेयी था।
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