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मारीच
प्राचीन चरित्रकोश
मार्कंडेय
सुन कर, सीता ने राम को आपत्ति में जान कर, तुरन्त अपने मार्कंडेय नामक वंशजों के कारण इसकी परंपरा लक्ष्मण को उसकी सहायतार्थ भेजा। इधर रावण ने अबाधित रही हो, एवं उसीका संकेत इसे अमर कह कर सीता का हरण किया।
किया गया हो। २. कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण । ___ मार्कंडेय दसवें त्रेतायुग में उत्पन्न हुआ था। इसकी पत्नी मारीचि--एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में का नाम धूमोणी था (म. अनु. १४६.४)। प्रारम्भ में से एक था।
इसकी आयु कम थी, किन्तु बाद में यह दीर्घायु हुआ। मारुत--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण ।। पहले इसे केवल छः महीने की आयु प्राप्त हुयी थी। २. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
किन्तु पाँच महीने तथा चौबीस दिन बीतने के बाद, ३. नितान एवं द्युतान नामक वैदिक सूक्तद्रष्टाओं का सप्तर्षियों ने इसे दर्शन देकर दीर्घायु प्राप्त करने का सामूहिक नाम।
आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा ने इसे ऋषिश्रेष्ठत्व तथा कल्पांत तक मारुतंतव्य-विश्वामित्र ऋषि के पुत्रों में से एक (म. आयु प्रदान की, तथा पुराणों के रचने का वर प्रदान अनु, ४.५४)।
किया। मारुताशन--स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४. पाँचवे वर्ष में इसका उपनयन संस्कार हुआ था । सप्तर्षियों ५७)।
ने इसे दण्ड तथा यज्ञोपवीत दिया था (पद्म. सु. ३३)। मारुताश्व--विदथ नामक राजा का पैतृक नाम (ऋ. इसने अपना एक आश्रम स्थापित किया था, जिसकी पूर्ण ५.३३.९)। मरुताश्व का वंशज होने के कारण, उसे यह जानकारी पुलस्त्य ने राम को बतायी थी (नारद, १.५)। नाम प्राप्त हुआ होगा।
___ तपस्या--मार्कंडेय ऋषि ने अत्यधिक घोर तप किया मार्कट--मार्कड नामक अंगिराकुलोत्पन्न गोत्रकार के | था। यह तप छः मन्वन्तरों तक चलता रहा। इसकी लिए उपलब्ध पाठभेद (माकड. २. देखिये)। तपस्या से घबरा कर, पुरंदर नामक इन्द्र ने इसकी तपस्या मार्कटि---अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । में विघ्न उत्पन्न करने के लिए अनेकानेक प्रयत्न किये। माकड--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
पुरंदर ने सर्वप्रथम वसंत का निर्माण किया। बाद में २. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इसके नाम के अप्सराओं एवं गंधर्वो आदि के साथ कामदेव को इसकी लिए 'माट' पाठभेद प्राप्त है।
तपस्या भंग करने के लिए भेजा, किंतु यह अपनी तपस्या मार्कंडेय-भृगुवंश में उत्पन्न एक महामुनि, जो में निमग्न रहा। इसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर नरमकंड अथवा मृकंडु ऋषि का पुत्र था (अग्नि. २०.१०; नारायण, बालमुकुंदरूपी ब्रह्म, तथा स्वयं शंकर भगवान् विष्णु. १.१०.३, नारद. १.४; भा. ४.१-४५)। मृकंड | ने इसे दर्शन दिया। शंकर ने इसे वर प्रदान करते हुए का पुत्र होने से इसे 'मार्कडेय' अथवा 'मार्कड' पैतृक कहा, 'तुम्हारी सारी इच्छायें पूर्ण होंगी । तुम्हें अविनाम प्राप्त हुआ था (मत्स्य. १०३.१३-१५)। च्छिन्न यश प्राप्त होगा । तुम त्रिकालदर्शी होगे, तुम्हें
जन्म--पार्गिटर के अनुसार, उपनस् शुक्र का पुत्र | आत्मनात्मावचार का सम्यक ज्ञान होगा, तथा तुम श्रेष्ठ मर्क इसका पिता था । उपनस् शुक्र के सारे बंशज दानव
पुराण के कर्ता हो कर, कल्पसमाप्ति तक अजर एवं अमर एवं अनार्य लोगों के साथ संबंध प्रस्थापित करने के | होंगे (भा. १२.८-१०)। इस प्रकार शंकर ने इसे कारण विनष्ट हुए । उनमें से केवल मर्क एवं शंट इन दो चौदह कल्पों तक की आयु प्रदान की (भा. ४.१.४५: पुत्रों ने आर्य लोगों से संबंध प्रस्थापित किया, जिस कारण | म. व. १३०.३२)। उनकी परंपरा अबाधित रही। मर्क का पुत्र मार्कंडेय श्रेष्ठता-यह ब्रह्माजी की सभा में रह कर उसकी तो भृगुकुल का सुविख्यात गोत्रकार बना (मत्स्य. १९५. उपासना करता था (म. स. ११.१२)। ब्रह्माजी के २०)।
पुष्कर क्षेत्र में हुए यज्ञ में भी यह उपस्थित था (पन. ___ अमरत्व--दीर्घायु प्राप्त करनेवाले ऋषि के रूप में सु. ३३) । इसने हजार हज़ार युगों के अंत में होनेवाले मार्कंडेय का निर्देश अनेक ग्रंथों में प्राप्त है (म. व. ८६. अनेक महाप्रलय के दृश्य देखे थे। ब्रह्मा को छोड़ कर ५:१८०.३९)। कहीं कहीं इसके अमर होने का उल्लेख | संसार में इससे बड़ी आयुवाला कोई दूसरा व्यक्ति नहीं भी मिलता है (म. व. १८०.४) । संभव यही है कि, था। प्रलयकाल में जब सारी सृष्टि विनष्ट हो जाती है,
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