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________________ माया प्राचीन चरित्रकोश मारीच (५) उमा--जिसने शिव की सहाय्यता ले कर | राक्षस का पुत्र, एवं हिरण्यकशिपु का नाती बताया गया समस्त शास्त्रों का भलोक में प्रसार किया। इसी कारण | है (ब्रह्मांड. ३.५.३६)। ब्रह्मा के वर के कारण, इसे उमा को ज्ञानमाता नाम प्राप्त हुआ। देवताओं से भी अजेयत्व प्राप्त हुआ था (वा. रा. अर. (६) वर्णिका--जिसने समस्त सृष्टि के संरक्षण का | ३८)। भार अपने कंधे पर लिया, एवं दुष्टों का संहार किया। पूर्वजन्म--पूर्वजन्म में यह एक यक्ष था, जिसके पिता इसीने ही आगे चलकर मधु, कैटभ एवं रुरु नामक दैत्यों का अगस्त्य ऋषि ने वध किया था। बड़ा होने पर, इसे का वध किया था। अगस्त्य ऋषि के इस कृत्य का ज्ञान हुआ, जिस कारण (७) धर्मद्रवा--एक नदी, जो आगे चल कर गंगा| इसने उस पर आक्रमण किया । पश्चात् अगस्त्य ऋषि ने नाम से प्रसिद्ध हुयी (पद्म. सृ. ६२)। इसे अगले जन्म में राक्षस प्राप्त होने का शाप दिया मायामोह--विष्णु का अवतार, जो उसने दैत्यों की | (वा. रा. बा. २५)। वंचना करने के लिए धारण किया था। राम से युद्ध-इसमें दस हज़ार हाथियों का बल था। मायावती--मदन की पत्नी रति का नामांतर, जो | यह समालि राक्षस के चार अमात्यों में से एक था। अपनी उसने शंबरासुर के घर रहते समय धारण किया था। माता के साथ यह मलद तथा करुष देशों में रहता था, शिव के द्वारा मदन का दाह होने पर, रति शंबरासुर तथा पास ही होनेवाले विश्वामित्र के यज्ञ का विध्वंस करता के यहाँ रहने के लिए गयी। आगे चल कर, मदन ने था। इसलिये विश्वामित्र अपने यज्ञ के संरक्षण के लिए, . श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में पुनः जन्म लिया । उस | राम को दशरथ से ले आये। राम के बाण से इसके समय इसने प्रद्युम्न के द्वारा शंबरासुर का वध किया, एवं भाई सुबाहु का वध हुआ, एवं उसी बाण के पुच्छभाग से प्रद्युम्न के साथ विवाह किया (भा. १०.५५.१६; विष्णु. आहत हो कर, यह समुद्र में जा गिरा (म. स. परि..१. ५.२७; प्रद्युम्न देखिये)। क्र. २१. पंक्ति ५०१)। बाद में यह लंका में रावण का । मानित-- अमा जो प्रयासर का पत्र था। आश्रित बना कर रहने लगा। इसकी माता का हेमा था । ब्रह्मांड में इसकी माता का जिस समय राम, लक्ष्मण तथा सीता पंचवटी में आकर नाम 'रंभा' दिया गया है (ब्रह्मांड. ३.६.२८-३०)। रहे थे, तब यह दो राक्षसों के साथ हिरन का रूप वालि ने इसका वध किया। धारण कर, राम से अपनी शत्रुता का बदला लेने के लिए, मायु--एक आचार्य, जिसका निर्देश तान्व एवं पार्थ | वहाँ गया। इन्हे देख कर राम ने बापा छोडे, जिसमें इनके नामक ऋषियों के साथ प्राप्त है। दोनों साथियों का वध हुआ, एवं यह वहाँ से भाग निकला मारिषा--दस प्रचेताओं की पत्नी, जो प्राचेतस दक्ष (वा. रा. अर. ३८.३९)। की माता थी (म. आ. ७०.५)। वध-बाद में जब रावण ने सीताहरण का विचार किया, इसके पिता का नाम कण्ड ऋषि था, जिसे प्रग्लोचा | तब उसने इसकी सहायता माँगी। परन्तु यह राम से नामक अप्सरा से यह उत्पन्न हुयी थी (विष्णु. १.१५: - इतना अत्यधिक घबराता था कि, '' शब्द से आरम्भ भा. ४.३०)। इसका जन्म होते ही, प्रम्लोचा अप्सरा ने होनेवाले राजीव, रत्न तथा रमणी शब्द सुनकर ही धैर्य इसे एक पेड़ के नीचे रख दिया, एवं वह स्वयं स्वर्ग खो बैठता। इसने रावण से बारबार अनुनय विनय किया, चली गयी । इस समय यह भूख के मारे रोने लगी, किन्तु उसके डरवाने धमकाने में आ कर, इसे मजबूरन तब सोम ने अपनी तर्जनी से अमृत पिला कर इसे | उसका साथ देना पड़ा (वा. रा. अर. ४०-४१)। पालपोस कर बड़ा किया (विष्णु. १.१५, ब्रह्म. १७८ ह. पंचवटी में आने के उपरांत, यह सुंदर मृग का रूप धारण वं. १.२)। जिस वृक्ष के नीचे यह थी, उसी वृक्ष के कर घूमने लगा। इसे देखकर सीता ने राम से इसे सहारे यह बड़ी हुयी । इसलिए इसे 'वाी' नामांतर मारने के लिये कहा, जिससे वह इसके मृगचर्म की संदर प्राप्त हुआ (भा. ४.३०.४७, म. आ. १८८.१०*)। कंचुकी बना सके । सीता की इच्छा पूर्ण करने के हेतु, मारीच--एक राक्षस, जो रावण का आश्रित था। राम ने इसका पीछा किया, एवं इसका वध किया (वा. यह सुंद राक्षस का पुत्र था, एवं इसकी माता का नाम ! रा. अर. ४३-४५, म. व. २६२.१७-२१)। मरते समयताटका था (वा. रा. बा. २५)। ब्रह्मांट में इसे हाद इसने राम की भाँति पुकारा, 'लक्ष्मण दौडो'। इसे
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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