________________
प्राचीन चरित्रकोश
मान्धातु
राजधर्म के विषय में इंद्र-रूपधारी विष्णु के साथ इसका संवाद हुआ था (म. शां. ६४-६५ ) | अंगिरापुत्र उतथ्य ने इसे राजधर्म के विषय में उपदेश दिया था, 'उतथ्य गीता' नाम से सुविख्यात है ( म. शां. ९१९२) । इसके राज्य में मांसभक्षण का निषेध था (म. अनु. ११५.६१) ।
इसने वसुहोम (वसुदम) से दंडनीति के विषय में ६७ ) । . जानकारी पूछी थी ( म. शां. १२२ ) ।
मृत्यु में योग से इसके मन में अपने पराक्रम के प्रति गर्व की भावना उत्पन्न हो गयी, एवं इंद्र के आधे राज्य को प्राप्त करने की इच्छा से, इसने उसे युद्ध के लिए चुनौती थी। इंद्र ने रखयं युद्ध न कर के इसे लवणासुर से युद्ध करने के लिए कहा। पश्रात् लवण ने इसे युद्ध में परास्त कर इसका किया था. रा. ६७.२१) आगे चल कर यही लवण दशरथ के पुत्र शत्रुघ्न के द्वारा मारा गया था।
--
परिवार-मांचा क्षत्रिय था, किंतु अपनी तरस्या के बल पर ब्राह्मण बन गया था ( वायु. ९१.११४ ) । मधा का विवाह यादरा शशविन्दु की कन्या विन्दुमती से हुआ था, जिसकी माता का नाम चैत्ररथी था। उससे इसे मुचुकुंद, अम्बरीप तथा पुरुकुत्स नामक पुत्र हुए थे (वायु. ८८.७० - ७२ ) । पद्मपुराण में इसके धर्म मुचुकुं शक्रमित्र नामक चार पुत्र दिये गये हैं (प. स. ८) इसे पचास कन्याएँ भी थीं, जिनका विवाह सौभरि ऋषि के साथ हुआ था। इसे शायरी नामक एक बहन भी थी, जिसका विवाह देशका राजाह से हुआ था। कई ग्रंथों में कावेरी को इसकी कन्या अथवा पौत्री कहा गया है।
इसके पश्चात् इसका ज्येष्ठ पुत्र पुरुकुत्स अयोध्या देश का राजा बन गया, जिसने अपने पिता का राज्य और भी विस्तृत किया । उसने नर्मदा नदी के तट पर रहनेबाले नाग लोगों की कन्या नर्मश से विवाह सर, मोनेय गंधर्व नामक उनके शत्रुओं को परास्त किया था । इन सारे निधों से प्रतीत होता है कि, पुस्कुस के राज्य का विस्तार नर्मदा नदी के किनारे तक हुआ था ( पुरुकुत्स देखिये) ।
माया
चलकर 'माहियाती' नाम से सुविख्यात हुयी (मुचुकुंद एवं महिष्मत् देखिये ) |
मान्य - अगस्त्य ऋषि का नामान्तर ( मान्दार्य मान्य देखिये ) । मान का वंशज होने के कारण, अगस्त्य ऋषि को यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। मान्य मित्रावरुण
क..
मान्यमान - देवकनामक राजा का पैतृक नाम (ऋ. ८. १८.२० ) । मन्यमान पुत्र होने के कारण देवक को यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा । मान्यमाना शब्दशः अर्थ ' अभिमानी व्यक्ति ' होता है ।
मान्यवती - करंधमपुत्र अविक्षित् राजा की पत्नी, जो भीम राजा की कन्या थी । इसके स्वयंवर के समय, अछि राजा ने इसका हरण किया था (म. ११९ १७ ) ।
मामतेय -- दीर्घतमस् ऋषि का मातृक नाम (ऋ. १. ऐ. | ममता वंशज १४४.३८८२२.१ ) का होने कारण, इसे यह मातृक नाक प्राप्त हुआ होगा । मांधिक एक कार
के
मायववेद में निर्दिए एक राग (ऋ. १०. ९३.१५ ) के अनुसार, यह राम का पैतृक । डविग नाम था ( लुडविग ऋग्वेद अनुवाद २.१६६ ) । मयु अपामायु का शव होने से, उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा।
माया अधर्म नामक धर्मविरोधी पुरुष की कन्या, जिसकी माता का नाम मृषा था। ब्रह्म नामक अपने भाई से इसे लोभ एवं निकृति नामक पुत्र उत्पन्न हुए थे (अधर्म देखिये ) ।
सृष्टि का निर्माांग करते समय प्रदा ने इसकी मदद ली थी । उस समय निम्न सात वस्तुओं का निर्माण इसके द्वारा किया गया था :
(3) गायत्री-जिससे आगे चलकर समस्त वेदों का निर्माण हुआ। तदोपरान्त वेदों से समस्त संसार का निर्माण हुआ ।
(२) यी जिससे आप समस्त ओप एवं जीवपोषक वनस्पतियों का निर्माण हुआ । दससे आकर सारे शा
(३) शाम का निर्माण हुआ।
(४) लक्ष्मी जिससे आगे कर एवं आभूषण उत्पन्न हुये ।
धातु का तीय पुत्र मुकुंद एक पराक्रमी राजा था, नर्मदा नदी के तट पर ऋक्ष एवं पारियात्र प के बीच एक नगरी की स्थापना की थी। वही नगरी आगे
६४५