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मार्कडेय
प्राचीन चरित्रकोश
मार्कडेय
तब यह ब्रह्माजी के पास रह कर उनकी आराधना में | के लिए अन्य ऋषियों के साथ यह भी गया था (म.शां. निमग्न रहता है । प्रलयकाल के उपरांत, पुनः रची गयी | ४७.६६% )। यह भीष्म के प्रयाणकाल के समय भी सारी सृष्टि को सब से पहले यही देखता है। इसने अपनी | उपस्थित था (म. अनु. २६.६)। चित्तवृत्तियों का निरोध कर, लोकगुरु ब्रह्मा की कृपा से इसने नारद से विभिन्न प्रकार के प्रश्न किये थे (म. अनु. मरीचि आदि प्रजापतियों को भी जीत लिया था। | २२.७)। नारद ने इसे चार युग तथा भायीधर्म के बारे
यह भगवान् नारायण के समीप रहनेवाले भक्तों में में बताया था (म. अनु. ५४, ५७)। युधिष्ठिर ने महासर्वश्रेष्ठ था। इसने सर्वव्यापक परब्रह्म की उपलब्धि के | प्रस्थान से पूर्व अन्य ऋषियों के साथ इसका भी पूजन लिए, स्थानभूत हृदयकमल की कर्णिका का यौगिक-कला | किया था ( म. महा. १.३%)। से उद्घाटन किया था, एवं वैराग्य तथा अभ्यास से प्राप्त
| मार्कंडेय-युधिष्ठिर संवाद-महाभारत वनपर्व में हुयी दिव्यदृष्टि के द्वारा विश्वरचयिता भगवान् का
'मार्कंडेयसमस्यापर्व' नामक एक उपपर्व है, जिसमें अनेक बार दर्शन किया था। इसलिए सब को मारनेवाली
मार्कंडेय एवं युधिष्ठिर के बीच में हुए तत्त्वज्ञानसम्बन्धी मृत्य, तथा शरीर को जर्जर बना देनेवाली जरा इसका |
जरा इसका अनेकानेक संवादों का वृत्तान्त प्राप्त है (म. व. १७९स्पर्श नहीं कर सकती थी (म. व. १८६.२-११)। ।
२२१)। उस पर्व में निम्नलिखित विषयों पर माकंडेय ने इसने कल्पांत में वटवृक्ष तथा प्रलय का भी दर्शन किया
अपने विचार एवं कथासूत्रों का विवेचन किया है :था (ब्रह्म. ५२.५३)। इसने बालमुकुन्द के उदर में प्रवेश
ब्राहाणमहात्म्य एवं हैहयवृत्तान्तकथन; पृथु वैन्य के यज्ञ कर वहाँ ब्रह्माण्ड का दर्शन किया था । (म.व. १८८.८८
में हुआ अत्रि-गौतम संवाद; स्वाध्याय दानवृत्तिमहात्म्य, १२५)। उदर से बाहर निकलने पर, इसने बालमुकुन्द
| (१८४); वैवस्वत मनु का चरित्र एवं मत्स्योपाख्यान का स्तवन कर उससे वार्तालाप किया था (ब्रह्म. ५४.५६;
| (१८५); प्रलयकालीन भगवत्महात्म्य (१८६-१८७); म. व. १८६.८१-१२९)।
वायुप्रोक्त कलिभविष्यकथन (१८८-१८९); द्वितीय मयसभा में जब पाण्डवों ने प्रवेश किया था, तब यह | बार ब्राह्मणमहात्म्य (१९०); वृद्धतम इन्द्रद्युम्न कथा वहाँ उपस्थित था (म. स. ४.१३)। ब्रह्मसभा में भी जब | (१९१); धुंधमारआख्यान (१९२-१९५); पतिव्रतापाण्डव गये थे, तब यह वहाँ उपस्थित था (म. स. ११. | ख्यान (१९६-१९७); ब्राह्मणव्याधसंवाद (१९८१२५* पंक्ति. १)। युधिष्ठिर जब माकडेय के आश्रम में | २०६); आंगिरसोत्पत्ति (२०७-२२१)। गया था, तब लोमश ऋषि ने उसे मार्कंडेय का चरित्र | इन सारे संवादों से प्रतीत होता है कि, महाभारतकाल सुनाया था (म. व.१३०)। युधिष्ठिर के वनवास के में इसका अत्यधिक सम्मान था, एवं इसके तत्त्वज्ञानसमय जब यह उससे मिलने गय था, तब वहाँ श्रीकृष्ण सम्बन्धी विचारधारा से युधिष्ठिर आदि ज्ञानी भी भी उपस्थित थे।
| प्रभावित थे। उपदेश-इसने पाण्डवों को धर्म का आदेश दिया | ग्रन्थ--इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त है :था। युधिष्ठिर के द्वारा प्रश्न किये जाने पर, इसने उससे | १. मार्कडेयस्मृति, २.. मार्कंडेयसंहिता। उसी प्रकार महर्षियों तथा राजर्षियों के जीवनसम्बन्धी विविध उपदेश- | इसने 'मार्कंडेयस्तोत्र' नामक शिव का स्तोत्र भी किया पूर्ण कथायें सुनायी थीं। इसने युधिष्ठिर को विस्तार से था (C.C.)। इसने तामस पुराणों में से 'मार्कडेय' बहुविधरूप से धर्मोपदेश दिया था, एवं प्रयागक्षेत्र का | तथा 'वाराह' नामक पुराणों की रचना की थी (भवि. माहात्म्य बताया था (म. व. १७९-२२१; मत्स्य.१०३- | प्रति. ३.२८.१३)। ११२)। इसने युधिष्ठिर आदि को श्रीराम का उपाख्यान, परिवार--इसकी धर्मपत्नी का नाम धूमोणी था (म. तथा सती सावित्री का चरित्र सुनाया था (म. व. २५७-- | अनु. १४६.४)। इसके पुत्र का नाम वेदशिरस् था २८३)। इसने भद्रतनु नामक ब्राह्मण को दान्त से उपदेश (विष्णु १.१०.४)। प्राप्त करने के लिए कहा था, एवं हेममाली को शाप से। । आश्रम--मार्कंडेय ऋषि का आश्रम हिमालय के उत्तर विमुक्त किया था (पद्म. क्रि. १७; पा. ५२)। भाग में पुष्पभद्रा नदी के तट पर चित्रा नामक शिला के
इसने धृतराष्ट्र को त्रिपुरवध की कथा सुनायी थी | पास था। वहाँ इसने अत्यंत उग्र तपस्या की, जिससे (म. क. २४)। शरशय्या पर पडे हुए भीष्म को देखने | भयभीत हो कर इंद्र ने इसकी तपस्या में बाधा डालने का
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