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मातृका
प्राचीन चरित्रकोश
माद्री
को अपनाया, एवं उसे दुर्गा अथवा देवीपूजा में संम्मीलित प्राचीन काल में रावी तथा व्यास नदी के बीच के कराया।
दोआब का भाग 'मद्र' कहलाता था, जो आजकल पंजाब मातृकाओं की प्रतिमा--मातृका के प्रतिमाओं की प्रान्त में स्थित है । उन दिनों शाकल मद्रदेश की राजधानी पूजा सारे भारतभर की जाती है, जहाँ इनका रूप अर्धनग्न, थी, तथा इस देश की राजकन्याओं को सामान्यतः एवं शिरोभूषण, कण्ठहार, तथा मेखलायुक्त दिखाई देता 'माद्री' कहते थे (म. स. २९.१३) है । जनश्रुति के अनुसार, मातृकाओं की सर्वाधिक पीड़ा विवाह-यह परम रूपवती थी, कारण एक तो यह दो वर्षों तक के बालकों को होती है। इसी कारण, बालक | देवी से उत्पन्न हुयी थी, दूसरे पंजाब प्रान्त के लोग सुन्दर का जन्म होते ही पहले दस दिन मे मातृकाओं की होते ही है। अतएव इसकी सुन्दरता की प्रशंसा सन कर, पूजा की जाती है।
भीष्म ने शल्य के यहाँ जा कर इसे पाण्डु के लिए माँगा २. अर्यमा नामक आदित्य की पत्नी (भा. ६.६.
| था। शल्य के यहाँ यह नियम था कि, वरपक्ष से ४२)।
अत्यधिक धनसम्पति लेकर लड़की दी जाति थी, अतएव मातेय--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण।
भीष्म को उनकी प्रथा के अनुसार, कन्या के शुल्क के मात्स्य--एक ऋषि, जो यज्ञ में अत्यधिक प्रवीण था
रूप में बहुतसा धन देना पड़ा था। तब उस देश की
रीतिरिवाज के अनुसार, शल्य ने भी आभूषणों आदि से (अ. वे. १९.३९.९)। तैत्तिरीय ब्राह्मण में इसका निर्देश
अलंकृत कर के माद्री को भीष्म के हाथों सौंप दिया। मत्स्य नाम से किया गया है (ते. बा. १.५.२.१)।
बाद में भीष्म ने हस्तिनापुर में आ कर शुभ दिन तथा वहाँ इसे यज्ञेषु एवं शतद्युम्न राजा का पुरोहित कहा गया
शुभ मुहुर्त में पाण्डु से इसका विवाह किया (म. है । कौनसा भी यज्ञसमारोह शुरू करना हो, तो वह सुअवसर या शुभमूहूर्त देख कर करना चाहिए, ऐसी
आ. १०५.५-६)। प्रथा इसने शुरू की।
पुत्रप्राप्ति-किंदम मुनि के द्वारा पाण्डु को शाप दिया २. सरस्वती नदी के तट पर यज्ञ करनेवाला एक
जाने पर, पाण्डु के साथ माद्री भी वन मे रहने के लिए ब्राह्मणसमूह, जिसका अध्वर्यु ध्वसन् द्वैतवन था (श.
गयी थी (म. आ. ११०)। वहाँ ऋषियों के कथनाबा. १३.५.४.९; ध्वसन् द्वैतवन देखिये)।
नुसार, पाण्डु ने कुन्ती को पुत्र उत्पन्न करने की आज्ञा
दी। उसने दुर्वासस् के 'आकर्षण मंत्र' के प्रभाव से माथव--विदेश नामक राजा का पैतृकनाम ( विदेघ
तीन पुत्र उत्पन्न किये। बाद में कुंती ने अधिक पुत्र देखिये)।
उत्पन्न करने के लिए मनाही कर दी। तब माद्री की माथैल्य-(सो. ऋक्ष.) एक राजा, जो वायु के
प्रार्थनानुसार, पाण्डु ने वह मंत्र कुंती से इसे दिलाया। अनुसार उपरिचर वसु राजा का पुत्र था । महाभारत में
उस मंत्र के स्मरण से, इसे अश्विनीकुमार जैसे सुन्दर नकुल इसके नाम के लिए 'मसिल्ल' पाठभेद प्राप्त है (मसिल
तथा सहदेव नामक पुत्र हुए (भा. ९.२२.२८; म. देखिये)।
आ. ११५.२१)। मादी--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
___पाण्डु की मृत्यु--एक दिन यह मृगया खेलनेवाले माद्रवती--अभिमन्युपुत्र परिक्षित् राजा की कन्या,
पाण्डु के साथ वन में अकेली ही थी। उस समय वसंत जो जनमेजय द्वितीय की माता थी। इसके नाम के लिए
ऋतु था, तथा मौसम भी बड़ा सुहावना एवं चित्ताकर्षक 'मद्रवती 'भद्रा' एवं 'भद्रावती' पाठभेद प्राप्त है। था। इसके द्वारा पहने हुए बारीक वस्त्र इसकी सुंदरता (म. आ. ९०.९२)।
में और चार चाँद लगा रहे थे । ऐसे सुंदर मौसम में, इसे २. पाण्डु राजा की द्वितीय पत्नी माद्री का नामांतर इस तरह सुंदर देख कर पाण्डु के मन में कामेच्छा उत्पन्न (म. आश्व. ५२.५४; माद्री देखिये)।
हुयी, तथा इसके हज़ार बार मना करने पर भी, पाण्डु ने माद्री-मद्रदेश के राजा ऋतायन की पुत्री, जो इसे बाहुपाश में भर लिया । पाण्डु का ऐसा करना ही था पाण्डु की द्वितीय पत्नी, तथा नकुल-सहदेव की माता कि, शाप के अनुसार, उसकी मृत्यु हो गयी। अपने थी। मद्रराज शल्य इसका भाई था। यह 'धृति' नामक पति पाण्डु के निधन पर, इसने न जाने कितना पश्चात्ताप देवी के अंश से उत्पन्न हुई थी (म. आ. ६१.९८ )। किया, एवं खूब रोयी (म. आ. ११६.२५-३०)।
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