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________________ प्राचीन चरित्रकोश मातृका माताल पाण्डवों के वनवास के समय, यह इंद्र की आज्ञा से | पुराणों एवं महाभारत में प्राप्त मातृकाओं की नामाअर्जुन को स्वर्ग में ले जाने के लिए उपस्थित हुआ था | वलियाँ इस प्रकार है :-- (म. व. ४३)। (१) सप्तमातृका-ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वाराही मातृका-देवी के सुविख्यात अवतारों में से एक । | नारसिंही, वैष्णवी, ऐन्द्री (मार्क. ८८.११-२०:३८)। महाभारत में इनका स्वरूपवर्णन प्राप्त है, जिनमें इन्हे | (२) अष्टमातृका--ब्राह्मी, माहेश्वरी, चंडी, वाराही, दीर्घनखी, दीर्घदन्त, दीर्घतुण्ड, निर्मीसगात्री, कृष्णमेघनिभ, | वैष्णवी, कौमारी, चामुण्डा एवं चचिका । दीर्घकेश, लंबकर्ण, लंबपयोधर एवं पिंगाक्ष कहा गया है । (३) शिशुमातृका--काकी, हलिमा, रुद्रा, बृहली, ये जी चाहे रुप धारण करनेवाली (कामरूपधर ), जो | आर्या, पलाला एवं मित्रा (म. व. २१७.९)। चाहे वहाँ भ्रमण करनेवाली (कामरूपचारी), एवं वायु (४) अष्टादश मातृका--विनता, पूतना, कष्टा, पिशाची, . के समान वेगवान् ( वायुसमजव) थी। इनका निवास अदिति (रेवती), मुखमण्डिका, दिति, सुरभि, शकुनि, स्थान वृक्ष, चत्वर, गुफा, स्मशान, शैल एवं प्रस्रवण में सरमा, कद्रू , विलीनगी, करंजनीलया, धात्री, लोहितारहता था (म. श. ४५.३०-४०)। यनि, आर्या (म. आर. २१९.२६-४१) । महाभारत के जन्मकथा-मत्स्य में मातृकाओं के जन्म की कथा | इस नामाव तृकाओं के जन्म की कथा | इस नामावली में बाकी दो नाम अप्राप्य है। विस्तृत रुप में दी गयी है। हिरण्याक्ष राक्षस का पुत्र (५) चौदह मातृका--गौरी, पद्मा, शची, मेधा, . अंधक शिव का परमभक्त था। शिव ने उसे वर प्रदान | सावित्री, विजया, जया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, धृति, किया था, ' रणभूमि में तुम्हारे लहू के हर एक बूंद से | पुष्टि, तुष्टि एवं 'कुलदेवता', जो हरेक व्यक्ति के लिए अलगनया अंधकासुर उत्पन्न होगा, जिस कारण तुम युद्ध में अलग होती है (गोभिल. स्मृ. १.११-१२)। अजेय होंगे। शिव के इस आशीर्वाद के कारण, सारी मातृकाओं की प्राचीनता--वैदिक ग्रंथों में एवं पृथ्वी अंधकासुरों से त्रस्त हुयी। फिर इन अंधकासुरों का गृह्यसूत्रों में मातृकाओं का निर्देश अप्राप्य है। 'ऋग्वेद मैं लह चुसने के लिए शिव ने ब्राह्मी, माहेश्वरी आदि सात सप्तमाताओं का निर्देश प्राप्त है, किन्तु वहाँ सात नदियों मातृकाओं का निर्माण किया। इन्होने अंधकासुर का सारा एवं सात स्वरों को माता कहा गया है (ऋ. ९.१०२.४)। लहू चूस लिया, एवं तत्पश्चात् शिव ने अंधकासुर का वध ईसा की पहली शताब्दि से मातृकापूजन का स्पष्ट निर्देश किया। प्राप्त होता है। वराहमिहिर के बृहत्संहिता में, एवं अंधकासुर का वध होने के पश्चात् , शिव के द्वारा | शूद्रक के मृच्छकटिक में मातृकापूजन का स्पष्ट निर्देश प्राप्त उत्पन्न सात मातृका पृथ्वी पर के समस्त. प्राणिजात का लहू है (बहत्सं. ५८.५६)। स्कंदगुप्त के बिहार स्तंभलेख चूसने लगी। फिर उनका नियंत्रण करने के लिए, शिव | में मातृकापूजन का निर्देश प्राप्त है (गुप्त शिलालेख. पृ. ने नृसिंह का निर्माण किया, जिसने अपने जिह्वादि | ४७; ४९)। चालुक्य एवं कदंब . राजवंश मातृकाओं के अवयवों से घंटाकर्णी, त्रैलोक्यमोहिनी, आदि बैतीस | उपासक थे (इन्डि, अन्टि. ६.७३; ६.२५)। मालवा के मातृकाओं का निर्माण किया । अपना नियुक्त कार्य समाप्त | विश्वकर्मन् राजा के अमात्य मयूराक्ष ने ४२३ ई. में करने पर, शिव ने उन पर लोकसंरक्षण का काम सौंपा, मातृकाओं का एक मंदिर बनवाया था (गुप्त शिलालेख. एवं इस तरह रुद्र के साथ मातृका पृथ्वी पर चिरकाल | पृ. ७४)। तक रहने लगी (मत्स्य. १७९)। । पश्चिमी एशिया के 'द्रो' नामक प्राचीन संस्कृति में, मातृकाओं की संख्या--महाभारत एवं पुराणों में | तथा मोहेंजोदड़ो एवं हड़प्पा में स्थित सिन्धु संस्कृति में मातृकाओं की कई नामावलियाँ प्राप्त है, जिनमें इनकी | मातृकाओं की पूजा की जाती थी। उस संस्कृति के जो संख्या सात, अठारह, एवं बैतीस बतायी है। महाभारत | सिक्के प्राप्त हुए हैं, वहाँ मातृका के सामने नर अथवा के शल्यपर्व में कार्तिकेय (स्कंद) की अनुचरी मातृकाओं | पशुबलि के दृश्य चित्रित किये गये है। की नामावली प्राप्त है, जहाँ इनकी संख्या बैतीस बतायी | इससे प्रतीत होता है कि, मातृकाओं की उपासना गयी है, एवं उसमें प्रभावती, विशालाक्षी आदि नाम के | वैदिकेतर संस्कृति में प्राचीनतम काल से अस्तित्व में थी। . निर्देश प्राप्त है। | आगे चल कर, वैदिक संस्कृति के उपासकों ने इस देवता ६३८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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