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मांडव्य
प्राचीन चरित्रकोश
मांडूकेय
मांडव्य को देख कर, दूतों ने इसे चोर समझकर पकड़ा, | ५.३.१६९-१७२, ६.१३५, पद्म. सु. ५१; कौशिक १४. तथा राजाज्ञा से सूली पर चढ़ा दिया (स्कंद. ६. देखिये)। १३७)।
संवाद--महाभारत के अनुसार, यह बड़ा ज्ञानी था, यम से संवाद-महाभारत के अनुसार, निरपराध | तथा इसने विदेहराज जनक से तृष्णा का त्याग करने के होने पर भी इसको सूली पर चढाया गया था (म. आ. | विषय में प्रश्न किया था (म. शां. २६८)। इसने शिव५७.७७-७९)। इसने शूल के अग्रभाग पर तपस्या
महिमा के विषय में युधिष्ठिर को अपना अनुभव बताया की थी। इसकी दयनीय दशा से संतप्त, एवं तपस्या
था (म. अनु. १८.४६-५२)। जब श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से प्रभावित हो कर, पक्षीरूपधारी महिर्षिगण इसके पास | जा रहे थे, तब उनसे अनेक ऋषिगण मिलने आये थे, आये थे।
जिसमें यह भी एक था (म. उ. ८१.३८८)।
- इसके सम्बन्ध में यह भी प्राप्त है कि, यह भृगु- ' पश्चात् यह लिंगदेह धारण कर यमधर्म के पास गया
कुलोत्पन्न गोत्रकार था, एवं ज्योतिषशास्त्र का पंडित था। था, एवं उससे प्रश्न किया, 'मैने शुद्धभाव से सदैव
| इसके नाम पर 'मांडव्यसंहिता' नामक ग्रन्थ भी उपलब्ध तपस्या की, किंतु मुझे भयंकर सजा क्यों दी गयी' ? तब
है (.C.)। यमधर्म ने कहा, 'तुम बचपन में पतिंगो के पुच्छभाग
मांडूक-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । में सींक घुसेड़ते रहे हो, इसी कारण तुम्हें सूली पर
मांडकायनि-एक आचार्य, जो मांडन्य नामक ऋषिः... चढ़ाये जाने का दण्ड मिला है (म. आ. १०१)। यह
| का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम सांजीवीपुत्र था (श. सुनते ही मांडव्य ने नियम बनाया कि, बारह तथा चौदहवर्षीय बालकों द्वारा नादानी में किये गये अशुभ कमों का
ब्रा. १०.६.५.९; बृ. उ. ६.५.४ काण्व.) पाप उन्हे न भुगतना पड़ेगा।
मांडूकायनीपुत्र--एक आचार्य, जो मांडूकीपुत्र नामक
| ऋषि का पुत्र था। इसके शिष्य का नाम जायन्तीपुत्र था इसके साथ ही इसने यम को शाप दिया कि, वह शूद्रकुल में जन्म लेगा । मांडव्य के शाप के ही कारण,
(बृ. उ. ६.५.२ काण्व.)। सम्भव है, मांडूकं के किसी यमधर्म को अगले जन्म में विदुर का जन्म लेना पड़ा
स्त्रीवंशज का पुत्र होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा ।
मांडूकि-एक ऋग्वेदी श्रुतर्षि । (म. आ. १०१.२५-२७)। ,
मांडूकीपुत्र-एक आचार्य, जो शांडिलीपुत्र नामक यमधर्म की उपर्युक्त कथा में मांडव्य के द्वारा पीड़ित | आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम मांडूकायनीकिटाणु का नाम पतिंगा कहा गया है (म. आ. | पुत्र था (बृ. उ.६.५.२ काण्व.)। सम्भव है, मंडूक के किसी १०१.२४) । किंतु अन्य स्थानों में उसके नाम बगुला | स्त्रीवंशज का पुत्र होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा । (स्कंद. ६.१३६), टिड्डी (पन. उ. १४१) एवं भौरा | मांडकेय--एक आचार्यसमूह, जो ऋग्वेदपाठ के एक (पद्म. स. ५२) इत्यादि दिया गया है।
विशेष शाखा का प्रणयिता माना जाता है । ऐतरेय आरण्यक ब्राह्मण का शाप--जब यह सूली पर था, तब एक | के 'मांडूकेयीय' नामक अध्याय की रचना इन्हीके द्वारा दिन आधी रात के समय कौशिक के कुल में उत्पन्न | की गयी है (ऐ. आ. ३.२.६; सां. आ. ८.११)। हुआ एक सर्वांगकुष्टी ब्राह्मण अपनी पत्नी के कंधे पर ऐतरेय आरण्यक में इस समूह के आचार्यों के अनेक बैठा वेश्या के घर जा रहा था। अंधकार में जाते | मत प्राप्त हैं, जिनमें संहिता की व्याख्या दी गयी है। समय गलती से उसका पैर इसे लग गया, तब इसने क्रोध | उस व्याख्या के अनुसार, पृथ्वी को पूर्वरूप संहिता, द्यौ में आकर तत्काल शाप दिया, 'सूर्योदय होते ही तुम मर को उत्तररूप संहिता, एवं वायु को द्यौ एवं पृथ्वी का जाओगे' (स्कंद. ६.१३५)। ऐसा सुनकर ब्राह्मण की उस | संम्मीलन करनेवाली संहिता कहा गया है (ऐ.आ.३.१. पतिव्रता पत्नी ने अपने पातिव्रत्य के बल पर सूर्योदय ही | १; ऋ. प्रा. १.२)। रोंक दिया। बाद में अनुसूया द्वारा समझाये जाने पर उसने ऋग्वेद के आरण्यकों में निम्नलिखित आचार्यों का सूर्योदय होने दिया, तथा देवों की कृपा से मृत पति को | पैतृक नाम मांडूकेय दिया गया है :- शूरवीर, ह्रस्व, जीवित अवस्था में प्राप्त किया, जिसका शरीर कामदेव | दीर्घ, मध्यमप्रातिबोधीपुत्र (ऐ. आ. ३.१.१; सां. आ. के समान सुंदर था (गरुड. १.१४२, मार्क. १६; स्कंद. | ७.१२, ७.२, ७.१३)।