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माणिचर
प्राचीन चरित्रकोश
मांडव्य
प्रहार से मूञ्छित किया था। यह देख कर रावण अत्यधिक | इसका निर्देश प्राप्त है (आश्व. ग. ३.४.४; सां. गृ. ४. क्रुद्ध हुआ, एवं उसने इसपर आक्रमण कर इसे पराजित | १०, ६.१)। कर दिया (वा. रा. उ. १५)।
२. एक आचार्य, जो विदेह देश के जनक राजा का मांटि-एक आचार्य, जो गौतम ऋषि का शिष्य था। मित्र था (वेबर, इंडिशे स्टूडियेन. १.४८२)। इसके शिष्य का नाम आत्रेय था (बृ. उ. २.६.३,४.६. ३. एक प्रसिद्ध ब्रह्मर्षि, जो धैर्यवान् , सब धर्मों का ३ काण्व.)।
। ज्ञाता, सत्यनिष्ठ और तपस्वी था। २. एक शिवभक्त, जो कालभीति नामक सुविख्यात | इसके नाम के लिये 'अणिमांडव्य' एवं 'आणिशिवपार्षद का पिता था (कालभीति देखिये)। मांडव्य ' पाठभेद भी प्राप्त है।
मांडकर्णि-दण्डकारण्य में रहनेवाला एक ऋषि, चोरी का इल्ज़ाम-चोरी के कारण इसको सजा जिसकी कथा धर्मभृत ऋषि ने श्रीराम को सुनाई थी मिलने की विभिन्न कथाएँ अनेक ग्रन्थों में प्राप्त है। (वा.रा. अर. ११.८-२०)। यह अत्यन्त धर्मनिष्ठ ऋषि | मार्कंडेय तथा गरुडपुराण में दिया गया है कि, राजा ने था, जिसने जलाशय में खड़े रहकर, एवं केवल वायु भक्षण इस पर चोरी का इल्जाम लगाया; एवं चोरी के संशय कर दस हजार वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। इसकी इस पर ही इसे सूली पर चढ़ाया (गरुड़. १.१४२)। तपस्या से अग्नि आदि सारे देव घबरा गये, एवं इसकी | पद्म के अनुसार, सुलक्षण राजा एक बार मृगयाके तपस्या में बाधा डालने के लिए, उन्होंने पाँच अप्सराएँ | हेतु अरण्य में गया, तथा अपना घोड़ा एक पेड़ में इसके पास भेज़ दी।
बाँध दिया। जब वह लौट आया, तब वहाँ घोड़ा न उन अप्सराओं को देख कर यह मोहित हुआ, एवं |
था। अतएव राजा ने वहाँ पर तपस्या करते हुए मांडव्य से इसने अपनी तपस्या का त्याग. किया । पश्चात् इसने
अपने घोड़े के बारे में पूछा, किन्तु यह मौन रहा। तब अपने तपःसामर्थ्य से पंचाप्सर नामक सरोवर में एक
राजाज्ञा से राजदूतों ने समाधिस्थ मांडव्य को बन्दी बनाकर विलासगृह का निर्माण किया, जहाँ यह उन अप्सराओं के
इसे सूली पर चढ़ा दिया । आगे चल कर असली चोर साथ क्रीडा करने लगा। इसकी इस क्रीडा के कारण, उस
पकड़ा गया, तब राजा ने इसे छोड़ दिया। किन्तु इसके सरोवर से गायनवादन की आवाज दिनरात आती रहती
शरीर में किंचित शूलाग्र रह गया, जिसके कारण इसे थी। उसी आवाज को सुनकर, उसका रहस्य श्रीराम ने
'आणिमांडव्य' नाम प्राप्त हुआ (पन. उ. १४१)। धर्मभृत ऋषि को पूछा था।
इसी पुराण में अन्यत्र यह भी लिखा है कि, राजा की
कुछ चीजे चोरी चली गयी थी, और उसीके शक में मांडवी--विदेह देश के कुशध्वज राजा की कन्या,
इसे सजा मिली थी (पद्म. उ. ५१)। जो अयोध्या के दशरथ राजा के पुत्र भरत की पत्नी थी
प्रमोदिनी से विवाह-वंद के अनुसार, देवपन्न (वा. रा. बा. ७३.३१-३२)।
राजा की कन्या कामप्रमोदिनी का हरण कर, शंबर ने २. एक स्त्री, जो सम्भवतः वात्सी मांडवीपुत्र नामक | उसके गहने मांडव्याश्रम के पास डाल दिये। प्रमोदिनी आचार्य की माता थी (बृ. उ. ६.४.३० माध्यं.)। को पता लगानेवाले दूतों को इसके आश्रम के पास गहने सम्भवतः मण्डु का स्त्री वंशज होने से इसे यह नाम प्राप्त | मिले। इससे राजा को यह शक हुआ कि,इसने ही उसकी हुआ होगा।
कन्या का हरण किया है। अतः उसने इसे सूली पर मांडव्य-एक आचार्य, जो कौत्स ऋषि का शिष्य था | चढ़ाने की आज्ञा प्रदान की। किन्तु अन्त में ज़ब उसे (श. वा. १०.६.५.९; सां. आ. ७.२; बृ. उ. ६.५.४ | अपनी कन्या शंबरासुर से पुनः प्राप्त हुयी, तब राजा ने काण्व.)। इसके शिष्य का नाम मांडूकाय नि था। प्रमोदिनी का विवाह मांडव्य से कर दिया (स्कन्द. ५.३.
ऐतरेय आरण्यक के अनुसार, इसने ऋग्वेद संहिता का | १६९-१७२)। तात्विक अर्थ प्रतिपादन किया था (ऐ. आ. ३.१.१; ऋ. स्कंद में अन्यत्र कहा गया है कि, यात्रा करते करते प्रा. प्रस्तावना)। इसने शुक्ल यजुर्वेद की शिक्षा की रचना | मांडव्य ऋषि विश्वामित्र तीर्थ' के पास आया। वहाँ इसने की थी, जिसका निर्देश 'पाराशरी संहिता' में प्राप्त है | देखा कि, कुछ राजद्रव्य पड़ा हुआ है, जिसे छोड़कर (पा. सं. श्लो. ७७-७८)। ब्रह्मयज्ञांतर्गत पितृतर्पण में | चोर लोग भाग गये थे। राजद्रव्य के पास खड़े हुए
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