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प्राचीन चरित्रकोश
महोदर
दुराचारी होने पर भी, गंगा स्नान के कारण इसका महादर--एक नाग, जो कश्यप एवं कटू के पुत्रों में उद्धार हुआ (ब्रह्म. ९२)।
से एक था। महाजित्--माहिष्मती नगरी का एक राजा, जो २. धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक । भीमसेन ने नाराच द्वापर युग में उत्पन्न हुआ था। इसने पुत्रप्राप्ति के लिए, नामक बाण इसकी छाती में मार कर इसका वध किया श्रावण शुक्ल एकादशी के दिन 'पुत्रदा एकादशी का व्रत किया, जिस कारण इसे एक सुपुत्र की प्राप्ति हुई (पद्म. ३. एक राक्षस, जो घटोत्कच का मित्र था। कामकटंकटा उ.५५)।
को जीतने के लिए घटोत्कच जब प्राक्ज्योतिषपुर जाने महीरथ--एक राजा, जिसने वैशाख माह में लान निकला, उस समय यइ उसका एक अनुचर था (स्कंद. १. का वा कर, अपना एवं अपने परिवार के लोगों का २.५९-६०)। उद्धार किया (पन. पा. ९९-१०१; स्कंद. २.७.४)। ४. एक ऋषि । श्रीराम के द्वारा मारे गये एक राक्षस
महीषक--एक जातिसमूह, जो पहले क्षत्रिय था, का मस्तक इसकी जाँच में आ कर चिपक गया था। किंतु आगे चल कर, अपने दुराचरण के कारण शूद्र बन पश्चात् सरस्वती नदी के तट पर स्थित 'औषनस' नामक गया (म. अनुः ३३.२२-२३)। इनके नाम के लिए तीर्थ में स्नान करने के कारण, वह चिपका हुआ सिर 'महिषक' एवं 'माहिषक' पाठभेद भी प्राप्त है। छूट गया। इसी कारण, औषनस तीर्थ को 'कपालमोचन' संभवतः आधुनिक मैसूर प्रदेश में ये लोग रहते होंगे। नाम प्राप्त हुआ (म. श. ३८.१०-२३)। अर्जुन ने अपने दक्षिण दिग्विजय के समय इन्हे जीता
५. रावण के पुत्रों में से एक । राम-रावण युद्ध में इसने था (म. आश्व. ८४.४१)। महाभारत के अनुसार, ये
सर्व प्रथम अंगद से, एवं तत्पश्चात् नील नामक वानर से लोग आचार विचार से अधिक दूषित थे (म. क. ३७.
युद्ध किया, जिसने इसका वध किया (वा. रा. यु. ७०.
३१)। . महेंद्र--अगस्त्यकुलोत्पन्न एक ऋषि ।
बाव वेताळ ६. रावण का एक दुष्टबुद्धि प्रधान (वा. रा. उ. नामक द्वारपाल ने पृथ्वी पर जन्म लिया जिस समय
१४.१)। रावण सीता को वश में लाने के लिए चाहता . उसकी रक्षा के लिए शिव एवं पार्वती ने क्रमशः महेश
था। उस समय इसने रावण को सलाह दी थी कि, रामएवं शारदा के नाम से पृथ्वी पर अवतार लिये थे (शिव.
वध की झूटी वार्ता फैलाने से ही सीता वश में आ सकती शत. १४; वेताल देखिये)।
है। इसने रावण से कहा, 'मैं स्वयं द्विजिह्व, कुंभकर्ण, महतरेय--एक आचार्य, जिसका ऋग्वेदी ब्रह्मयज्ञांग- | सहादिन् तथा वितदन नामक राक्षसा को साथ ले कर, तर्पण में निर्देश प्राप्त है।
राम से युद्ध करने के लिए जाता हूँ। उस युद्ध से लौट महोदक-एक नाग, जो कश्यप एवं कद्र के पुत्रों में
आते समय, हम 'राम मर गया' इस प्रकार चिल्लाते से एक था।
हुए अशोकवन में प्रवेश करेंगे। इस वृत्त को सनते ही महोदय--वसिष्ठ ऋषि के पुत्रों में से एक । अयोध्या
| भयभीत हो कर सीता तुम्हारे वंश में आयेगी' (वा. के राजा सत्यव्रत त्रिशंकु ने विश्वामित्र ऋषि को ऋत्विज
रा. यु. ६४.२२-३३)। बना कर, एक यज्ञसमारोह का आयोजन किया । उस समय | महोदर प्रधान की यह सलाह रावण एवं कुंभकर्ण ने इसके पिता वसिष्ठ के साथ इसे भी त्रिशंकु राजा ने बड़े अस्वीकार कर दी, एवं रावण ने अकेले कुंभकर्ण को ही सम्मान के साथ निमंत्रित किया था। उस निमंत्रण को रणभूमि में भेज दिया । पश्चात् इसका सुग्रीव के साथ इसने अस्वीकार कर दिया, एवं संदेश भेजा, 'चाण्डाल युद्ध हो र, यह उसीके हाथों मारा गया (वा. रा. त्रिशंकु जहाँ यजमान है एवं चाण्डाल विश्वामित्र जहाँ | यु. ९७.३६)। ऋत्विंज है, ऐसे यज्ञ में मैं नहीं आ सकता'। इसका यह । ७. रावण के मातामह सुमालि नामक राक्षस का अपमानजनक संदेश सुन कर, विश्वामित्र अत्यधिक क्रुद्ध | सचिव । राम रावण युद्ध के समय, रावण की सहाय्यता हुआ, एवं उसने इसे निषाद बनने का शाप दिया | के लिए यह सुमालि राक्षस के साथ बाहर आया था (वा. (वा. रा. बा. ५९.२० -२१)।
रा. उ. ११.२)। प्रा. च.८०]