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________________ महिदास प्राचीन चरित्रकोश मही जिस कारण इसे 'ऐतरेय' मातृक नाम प्राप्त हुआ एक बार शिकार करते-करते यह अरुणाचल पर्वत पर होगा। गया, जहाँ पार्वती तपस्या कर रही थी। वहाँ उसकी ऐतरेय भारण्यक में इसका अनेक बार निर्देश प्राप्त | सौन्दर्यसुषमा को देखकर यह उस पर मोहित हो गया, है । किंतु वहाँ कहीं भी इसे उस ग्रंथ का रचयिता नही तथा एक वृद्ध अतिथि का रूप धारण कर, उससे तपस्या कहा गया है (ऐ. आ. २.१.८, ३.७)। करने का कारण पूछाँ। तब पार्वती ने कहा, 'मै परम छंदोग्य उपनिषद एवं जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण में | बलवान् भगवान् शंकर का वरण करना चाहती हूँ, इसीसे के अनुसार, यह एक सौ सोलह वर्षों तक जीवित रहा।। तपस्या कर रही हूँ'। तब इसने कहा, 'मैं भी बलवान् हूँ ,एवं इसे रोग ने अनेक तरह के कष्ट दिये। किंतु इसने रोग चाहता हूँ कि तुम मेरा वरण करो। तब पार्वती ने को चुनौति दी, 'तुम मुझे चाहे कितने भी सताओं, मैं इसे युद्ध के लिए ललकारते हुए अपना बल प्रदर्शन करने तुम्हारे कष्टों से नहीं मरूँगा' (छां. उ. ३.१६.७; जै. | के लिए कहा । महिषासुर ने पार्वती के साथ घोर युद्ध - उ. बा. ४.२.११)। किया, किन्तु अन्त में उसके द्वारा यह मारा गया (स्कन्द. महिनेत्र-(सो. मगध.) एक राजा, जो मत्स्य के १.३; १०. ११; शिव. उ. ४६)। अनुसार घुमत्सेन राजा का पुत्र था। जिस स्थान पर देवी ने इसका वध किया था, वही महिमत्--एक आदित्य, जो भग एवं सिद्धि का पुत्र स्थान सम्भवतः 'देवीपुर तीर्थ' है (स्कन्द. ३.१.६-७)। था (भा. ६.१८.२)। महाभारत में, इसे महेश्वर द्वारा वर प्राप्त होने की. महिमावत--पितरों में से एक । चर्चा है (म. अनु. १४.२१४)। एक बार इसने देवताओं महिष--ब्रह्मांड के अनुसार, महिषासुर का नामांतर | को परास्त कर के रुद्र के रथ पर भी आक्रमण किया था (ब्रह्मांड. ३.६.२८-३३)। (म. व. २२१.५७)। महाभारत के अनुसार, स्कन्द ने महिषदा-स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. | इसका वध किया था (म. व. २२१.६६)। ४५.२७) । इसके नाम के लिए 'गोमहिषदा' पाठभेद महिष्मत-(सो. सह.) एक राजा, जो भागवत के प्राप्त है। अनुसार सोहंजी राजा का, एवं विष्णु के अनुसार साहजि महिषानना--रकंद की अनुचरी एक मातृका (म. का पुत्र था । मत्स्य एवं वायु में इसके पिता का नाम: श. ४५.२५)। क्रमशः 'संहत' एवं 'संज्ञेय' दिया गया है। महिषासुर--एक असुर, जो मयासुर एवं रंभा का इसके पुत्र का नाम रुद्रश्रेण्य था। हरिवंश के अनुपुत्र था। सार, इसने माहिष्मती नगरी बसायी थी (ह. वं. १. जन्म-इसका पिता रंभासुर बड़ा शंकरभक्त था, जिसने अपनी तपस्या से उसे प्रसन्न कर वरदान माँगा, 'हे महिष्मती--महर्षि अंगिरस् की छठी कन्या । इसे प्रभो, मैं निःसंतान हूँ, मुझे एक भी पुत्र नहीं है । अतएव 'अनुमती' नामांतर भी प्राप्त था (म. व. २०८.६ )। मेरी इच्छा है कि, तुम मेरे पुत्र बनों' । शंकर ने 'तथास्तु' | भांडारकर संहिता में इसके नाम का 'हविष्मती' पाठ कहा। एक दिन मार्ग से जाते समय, रंभासुर को चित्रवर्ण स्वीकार लिया है। की एक सुन्दर महिषी दिखी। तब उसने उसमें अपना वीर्य स्थापित किया, जिससे कालांतर में शंकरांश का बल । । २. बृहस्पति की कन्याओं में से एक । इसकी माता लेकर महिषासुर उत्पन्न हुआ। महिषासुर ने देवी की | का नाम शुभा था। आराधना कर के उसके भक्तों में शाश्वत स्थान किया । प्राप्त मही--एक दुराचारी ब्राह्मण स्त्री, जो धृतवत नामक __ वध--इसने तप से बह्मदेव को प्रसन्न किया, तथा । ब्राह्मण की पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम सनाजात वरदान प्राप्त किया कि, यह मनुष्य के हाथों से न मारा | था । जाये। बाद को ब्रह्मदेव के वरदान की प्राप्त कर इसने अपने पति के मृत्यु के पश्चात् यह निराधार हो गयी, तीने लोकों का कष्ट देना आरंभ किया । तब देवी ने अष्टादश- जिस कारण इसे वेश्यावृत्ति का स्वीकार करना पड़ा। भुज रूप धारण कर इसका वध किया (दे. भा. ५,१६; आगे चल कर, इसका इतना अधःपात हुआ कि, इसने मार्क ·८०%; पार्वती देखिये)। अपना पुत्र सनाजात से भी समागम किया। किंतु इतनी
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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