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मरुत्त
प्राचीन चरित्रकोश
मलदा
उस यज्ञ में भगवान शंकर ने प्रचुर धनराशि के सिंधुवीर्य की कन्या केकयी; ५. केकयनरेश की कन्या रूप में इसे हिमालय का एक स्वर्णमय शिखर प्रदान | सैरंध्री; ६. सिन्धुराज की कन्या वपुष्मती; ७. चेदिराज किया था । प्रतिदिन यज्ञकार्य के अन्त में, इसकी | की कन्या सुशोभना । यज्ञसभा में इन्द्र आदि देवता, तथा बृहस्पति आदि | मरुत्त को इन पत्नीयों से कुल अठारह पुत्र हुए, जिनमें प्रजापतिगण सभासद के रुप में बैठा करते थे। से नरिष्यंत ज्येष्ठ था (मार्क. १२८.४५-४८)। महाभारत इसके यज्ञमण्डप की सारी सामग्रियाँ सोने की बनी हुयी | के अनुसार, इसे दम नामक एकलौता पुत्र, एवं एक कन्या थी। इसके घर में मरुद्गण रसोई परोसने का कार्य किया थी। इसकी मृत्यु के उपरांत दम इसके राज्य का अधिकारी करते थे। विश्वेदेव इसकी यज्ञसभा के सभासद थे। हुआ। इसकी कन्या का विवाह अंगिरस् ऋषि से हुआ इसने यज्ञवेदी पर बैठ कर, मंत्रपुरस्सर हविर्द्रव्य का हवन | था (म. शां. २२६.२८, अनु. १३७.१६)। कर, देवताओं, ऋषियों, तथा पितरों को संतुष्ट किया था। मरुत्वत्-प्राचेतस दक्ष की कन्या मरुत्वती का ज्येष्ठ ब्राह्मणों को शय्या, आसन, सवारी, तथा स्वर्णराशि | पुत्र । प्रदान की थी। इस प्रकार इसके व्यवहार से इन्द्र बड़ा | मरुत्वती-प्राचेतस दक्ष की एक कन्या, जो धर्मऋषि प्रसन्न हुआ, एवं दोनों में मित्रता स्थापित हो गयी। बाद | की पत्नी थी। इसे मरुत्वत् एवं जयन्त नामक दो पुत्र थे को मरुत्गणो द्वारा यथेष्ट सोमपान कर के सभी लोग यज्ञ | (भा. ६.६.४-८; पद्म. सु. ४०)। से संतुष्ट होकर वापस लौटे।
मरुदेव-(सू. इ. भविष्य.) एक इक्ष्वाकुवंशीय रावण से विरोध- बाद में मरुत्त के इस यज्ञ में विघ्न राजा, जो भविष्य के अनुसार सुप्रतीक राजा का, एवं डालने के हेतु से रावण आया । रावण को देख कर यह मस्त्य के अनुसार सुप्रतीप का पुत्र था। इसके पुत्र का उससे युद्ध करने के लिए तत्पर हुआ। किन्तु इसने यज्ञ- | नाम सुनक्षत्र था। दीक्षा ली थी, अतएव यज्ञ से उठना इसके लिए असम्भव मरुद्गण-देवताओं का एक गण (म..श. ४४.६ )। था। गवण ने इसके यज्ञ के वैभव को देखा, तथा बिना। २. एक दैत्य, जो कश्यप एवं दिति का पुत्र था। भवि. किसी प्रकार की हानि पहुँचाये वापस लौट गया (वा. रा. प्रति. ४.१७) उ.८)।
| मर्क-असुरों के सुविख्यात पुरोहितद्वय शंडामर्क राज्यवैभव-यज्ञ के उपरांत यह अपनी राजधानी
(शंड एवं मर्क) में से एकं (शंडामर्क देखिये)। कई वापस आया, एवं समुद्र से घिरी हुयी पृथ्वी पर राज्य
ग्रंथों में मर्क का स्वतंत्र निर्देश भी प्राप्त है (वा. सं. करना प्रारम्भ किया। इस प्रकार प्रजा, मन्त्री, धर्मपत्नी,
७.१३,१७)। हिलेब्रान्ट के अनुसार, शंड एवं मर्क दोनों पुत्र तथा भाइयों के साथ, इसने एक हजार वर्षों तक
ही ईरानी नाम हैं, एवं ऋग्वेद में अन्यत्र निर्दिष्ट गृध्र' राज्य किया था।
नाम मर्क का ही प्रतिरूप है (वेदिशे माइथोलोजी. मार्कंडेय के अनुसार, एक बार यह पृथ्वी के समस्त सो ३.४४२)।
, का विनाश करने को उद्यत हुआ था, किन्तु अपनी माता मर्कटय--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। इसके भामिनी के द्वारा अनुरोध करने पर, इसने सों के मारने | नाम के लिए 'कटक' पाठभेद प्राप्त है। का इरादा छोड़ दिया (मार्क. १२६.३-१५, १२७.१०)। मर्यादा--एक विदर्भराजकुमारी, 'जो पुरुवंशीय
महाभारत में-महाभारत के अनुसार, यह पराक्रमी राजा अपराचिन की पत्नी थी । इसके पुत्र का नाम अरिह एवं धर्मनिष्ठ राजा था, जिसने सौ यज्ञ किये थे ( म. द्रो. | था (म. आ. ९०.१८)। . परि. १. क्र. ८ पंक्ति ३३६-३५०, शां. २९.१६-२१, २. विदेहराज की कन्या, जो पूरुवंशीय राजा देवातिथि आश्व. ४. १०; भा. ९.२)। महाराज मुचुकन्द से इसे | की पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम ऋच था। एक खग प्राप्त हुआ था, जिसे इसने रैवत राजा को मलद-- पूर्व भारत में रहनेवाला एक लोकसमूह, प्रदान किया था (म. शां. १६०.७६)।
| जिसे भीमसेन में जीता था (म. स. २७.८)। भारतीय परिवार-मरुत्त की निम्नलिखित कुल सात पत्नियाँ युद्ध में ये लोग कौरवपक्ष में शामिल थे (म.द्रो.६.६)। थीः-१. विदर्भकन्या प्रभावती; २. सुवीरकन्या सौवीरी; मलदा-अत्रि ऋषि की पत्नी (ब्रह्मांड. ३.८.७४३. मगधनरेश केतुवीर्य की कन्या सुकेशी; ४. मद्रराज | ८७)।
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