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मरुत्
प्राचीन चरित्रकोश
मरुत
इन्हे यज्ञ का हविर्भाग नही मिलता था, जो कालोपरान्त | कालान्तर में मरुत्त ने यज्ञ करना चाहा, तथा उसके इन्हे मिलने लगा।
लिए बृहस्पति के पास जाकर इसने उनसे प्रार्थना मरुत-एक महर्षि, जिसने शान्तिदूत बनकर हस्तिनापुर | की कि, वह पुरोहित का पद संभालें। किन्तु इन्द्र के • जानेवाले श्रीकृष्ण की परिक्रमा की थी (म. उ.८१.२७)। द्वारा दिये गये मंत्र के अनुसार, बृहस्पति ने इसे कोरा
मरुत्त-(सू. दिष्ट.) वैशालि देश का सुविख्यात सम्राट, | जवाब दे दिया। बृहस्पति से निराश होकर यह वापस जो अविक्षित राजा का पुत्र था ( मरुत्त आविक्षित कामप्रि लौटा रहा था कि, इसे रास्ते में नारद मिला, जिसने इससे देखिये )।
कहा, 'इसमें घबराने की बात क्या है ? बृहस्पति न सही, २. (सो. तुर्वसु.) एक तुर्वसुवंशीय राजा, जो करंधम | उसके भाई संवर्त को वाराणसी से लाकर अपना यज्ञकार्य . राजा का पुत्र था। यह निःसंतान होने के कारण, इसने | पूर्ण कर सकते हो'। मरुत्त को यह बात अँच गयी. तथा -रेभ्यपुत्र दुष्यन्त को अपना पुत्र मान लिया था (भा. ९. | यह वाराणसी जाकर संवर्त को बड़े आग्रह के साथ यज्ञ २३.१७)। दुष्यन्त स्वयं पूरुवंशीय था। उसे मरुत्त | में ऋत्विज बनाने के लिए ले आया। के द्वारा गोद में लिये जाने के कारण, आगे चलकर,
| जब इन्द्र ने देखा कि बिना बृहस्पति के भी मरुत्त का तुर्वसु वंश का स्वतंत्र अस्तित्व नष्ट हुआ, एवं वह | यज्ञ आरम्भ हो रहा है, तथा संवर्त उसका ऋत्विज बनाया पूरुवंश में शामिल हुआ। मत्स्य के अनुसार, इसे
गया है, तब उसने इस यज्ञ में विभिन्न प्रकार से कई 'भरत' नामान्तर भी प्राप्त था।
बाधाएँ डालने का प्रयत्न किया । इन्द्र ने पहले अग्नि के साथ ३. ( सो. क्रोष्टु.) एक यादव राजा, जो मत्स्य के | मरुत्त के पास यह संदेश भेजा कि, बृहस्पति यज्ञकार्य अनुसार तितिक्षु राजा का, एवं वायु के अनुसार उशनस् | करने के लिए तैयार है, अतएव संवर्त की कोई आवश्यकता राजा का पुत्र था। .
नहीं है। अग्नि मरुत्त के पास आया, किन्तु वह संवर्त को मरुत्त माविक्षित कामप्रि-(सू . दिष्ट.) वैशालि | वहाँ देखकर इतना डर गया कि, कहीं वह उसे शाप न देश का एक सुविख्यात सम्राट, जो अविक्षित राजा का | दे दे। इसलिए वह मरुत्त से इन्द्र के संदेश को कहे पुत्र, एवं करन्धम राजा का पौत्र था। महाभारत में इसे बिना ही वापस लौट आया। चक्रवर्ति एवं पाँच श्रेष्ठ सम्राटों में से एक कहा गया है। इसकी माता का नाम भामिनी था (मार्क. १२७.१०)।
___इसके बाद इंद्र ने धृतराष्ट्र नामक गंधर्व से मरुत्त को ऐतरेय बाह्मण में इसे कामप्र का वंशज, एवं बृहस्पति |
संदेश मेजा, 'यदि तुम यज्ञ करोंगे, तो मैं तुम्हे वज्र से आंगिरस का भाई बताया गया है। संवर्त के द्वारा इसके
मार डालूँगा। किन्तु संवर्त के द्वारा आश्वासन दिलाये राज्याभिषेक किये जाने की कथा भी वहाँ दी गयी है
जाने पर, मरुत्त अपने निश्चय पर कायम रहा । यज्ञ का
प्रारंभ करते ही, इसे इन्द्र के वज्र का शब्द सुनायी पड़ा। ( ऐ. बा. ८.२१.१२; मार्क. १२६.११-१२)। शतपथ ब्राह्मण में इसे 'अयोगव' जाति में उत्पन्न कहा गया
यह वज्रशब्द को सुन कर भयभीत हो उठा, परन्तु संवर्त
ने इसे धैर्य बंधाया। है ( श. ब्रा. १३.५.४.६)।
इंद्र-मरुत्त विरोध-बृहस्पति आंगिरस ऋषि इसका मरुत्त का यज्ञ-इस प्रकार संवर्त की सहायता से पुरोहित था, एवं संवर्त आंगिरस इसका ऋत्विज था।। मरुत्त ने अपना यज्ञ यमुना नदी के तट पर 'प्लक्षावरण बृहस्पति एवं संवर्त दोनों भाई तो अवश्य थे, किन्तु दोनों | तीर्थ' मैं प्रारंभ किया (म. व. १२९.१६ )। वाल्मीकि में बड़ा वैमनस्य था।
रामायण के अनुसार, यह यज्ञ' उशीरबीज' नामक देश सम्राट मरुत्त एवं इन्द्र में सदैव युद्ध चलता ही रहता में हुआ था (वा. रा. उ. १८)। था, किन्तु इन्द्र इसे कभी भी पराजित न कर पाया। मरुत्त की इच्छा थी कि, इन्द्र, बृहस्पति एवं समस्त देवता अन्त में इन्द्र को एक तरकीब सूझी, जिसके द्वारा इस यज्ञ में भाग ले कर हवन किये गये सोम को स्वीकार मरुत्त को तंग करके उसे नीचा दिखाया जा सके। इन्द्र करें एवं उसे सफल बनायें। अतएव अपने मंत्रप्रभाव से बृहस्पति के यहाँ गया, एवं बातों ही बातों में उसे राजी संवर्त इन सभी देवताओं को बाँध कर यज्ञस्थान पर ले कर लिया कि, वह भविष्य में मरुत्त के यज्ञकार्य में | आया । मरुत्त ने सभी देवताओं का सन्मान किया, एवं पुरोहित का कार्य न करेगा।
उनकी विधिवत् पूजा की। प्रा. च. ७९]
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