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________________ मय प्राचीन चरित्रकोश मय गया है. (वा. रा. उ. १२.३)। किन्तु रामायण का | लपटों में समेटना चाहा। यह देखकर श्रीकृष्ण ने इसे कथन ऐतिहासिक प्रतीत नहीं होता। मारने के लिए सुदर्शन उठाया। यह भाग कर तत्काल पुराणों में नमुचि नाम के दो व्यक्तियों का वर्णन मिलता अर्जुन की शरण में आया, और अर्जुन ने इसे अभयदान है। उनमें से एक दानव था, एवं दुसरा तेरह सौंहिकेयों | देकर अग्नि एवं कृष्ण से बचाया (म. आ. २१९.३९)। में से एक था। मय दानव नमुचि का भाई था। हिरण्याक्ष अर्जुन के इस उपकार का बदला चुकाने के लिए मय ने एवं हिरण्यकशिपु के समय जो दैत्य तथा दानवों का | उसकी कुछ सेवा करने की इच्छा प्रकट की, किन्तु अर्जन संग्राम हआ था, उसमें यह दैत्यों के पक्ष में शामिल था | ने इसकी सेवा स्वीकार न की। फिर इसने अपने को (म. स. ५१.७)। दानवों का विश्वकर्मा बताते हुए अर्जन के लिए किसी वस्तु दक्षिण समुद्र के निकट सह्य, मलय और दर्दुर नामक | का निर्माण करने की इच्छा प्रकट की (म. स. १.६-९)। पर्वतों के आसपास एक विशाल गुफा के भीतर बने हुए पश्चात् श्रीकृष्ण ने इसे युधिष्ठिर के लिए एक दिव्य भवन में त्रेतायुग में यह निवास करता था। वहाँ प्रभावती | सभाभवन निर्मान करने को कहा। नामवाली एक तपस्विनी तपस्या करती थी, जिसने हनमान् मयसभा--कृष्ण के कहने पर इसने वृषपर्वन् के आदि वानरों को नाना प्रकार के भोज्य पदार्थ और भाँति कोषागार से समस्त सामग्री ला कर मयसभा नामक दिव्य भाँति के पीने योग्य रस दिये थे (म. व. २६६.४०-४३)। सभागृह का निर्माण किया (म. स. १.१२)। युधिष्ठिर शिल्पशास्त्रज्ञ-दैत्यराज वृषपर्वन् द्वारा किये गये होम | ने अपने राजसूय यज्ञ का समारोह इसी मयसभा में के समय इसने एक अति चमत्कृतिपूर्ण सभा का निर्माण आयोजित किया था। उक्त सभा के वैभवविलास को देख किया था। यह सभा कैलास पर्वत के उत्तर में मैनाक | कर दुर्योधन ईर्ष्या से पागल हो उठा था। इस सभा की नामक पर्वत में.स्थित बिन्दुसरोवर के पास निर्मित की यह विचित्रता थी कि, स्थलभाग जल की भाँति, एवं जल गयी थी। वृषपर्वन् राजा ने इस सभा में यज्ञ पूरा किया, | के स्थान स्थल की भाँति प्रतीत होते थे। दुर्योधन इस एवं उसके उपरांत सभा की सारी सामग्री अपने कोषागार विचित्र रचना से अनभिज्ञ था, अतएव उसे कई बार भ्रम · में रख दी (म. स. १,३)। में पड़ कर भीम की हँसी का कारण बनना पड़ा। इस इसके मित्रों में ताराक्ष, कमलाक्ष एवं विद्युन्माली नामक प्रकार सभा का यह अत्यधिक वैभव दुर्योधन के लिए तीन असुर प्रमुख थे। उनके कथनानुसार ही इसने दैत्यों के चिन्ता का कारण बन गया, तथा यहींसे उसके हृदय में . संरक्षण के लिए त्रिपुर नामक तीन नगरों का निर्माण किया, | ईर्ष्या की भावना दुश्मनी में बदल गयी, जिसने आगे जो आकाश में बादलों की भाँति घूमा करते थे। उनमें से | चल कर भारतीय युद्ध को जन्म दिया। एक स्वर्ण का, दूसरा चाँदी का तथा तीसरा लोहे का बना राजसूय यज्ञ के समय इसने भीम को एक गदा एवं • था (म. क. २४.१४; लिंग. १७१)। अर्जुन को देवदत्त नामक शंख प्रदान किया था। इसमें से . आगे चल कर दैत्यों को विनाश करने के लिए भगवान् गंदा को यह वृषपर्वन् से, तथा 'देवदत्त' शंख वरुण से शंकार ने इन त्रिपुरों को जला दिया, एवं सारे दैत्यों का लाया था (म. स. ३.७)। इसी यज्ञ के समय इसने संहार किया। तब मय ने अमृत कुण्ड का निर्माण कर अर्जुन को एक मायामय ध्वज भी दिया था। दैत्यों को पुनः जीवित किया। यह देख कर, विष्णु एवं इसके ज्येष्ठ बन्धु नमुचि का इन्द्र ने वध किया, ब्रह्मा ने गो एवं गोवत्स का रूप धारण कर, उस कुण्ड के जिसके कारण क्रोधित हो कर, देवों को नाश करने के लिए समस्त अमृत को पी डाला, जिससे सभी असुर पुनः मर इसने घोर तपस्या प्रारम्भ की, तथा विभिन्न प्रकार की गये (भा. ७.१०)। माया-विद्याओं को प्राप्त किया। इससे अत्यधिक भयातुर खांडववन में-कृष्ण एवं अर्जुन ने जब अग्नि को | होकर इन्द्र ने ब्राहाण वेष धारण कर इससे वर माँगने खाण्डववन भक्षण करने को दिया, उस समय मय इसी | आया। ब्राह्मणवेषधारी इन्द्र को बिना माँगे ही मय ने वन में नागराज तक्षक के घर में निवास करता था। जब कहा, 'तुम जो चाहते हो वह तुम्हे मिलेगा। यह वन को अग्नि ने जलाना आरम्भ किया, तब इसे कृष्ण ने | सुनकर इन्द्र ने कहा कि, वह मैत्री चाहता है । तब इसने तक्षक के घर से भागते देखा । भगते हुए मय को देखकर | उससे कहा, 'मेरी तुमसे कोई शत्रुता नहीं, तब मैत्री मांगने अग्नि ने मूर्तिमान होकर गर्जेन किया, एवं इसे अपनी की क्या आवश्यकता ? हम तुम दोनों मित्र ही है। यह ६१९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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