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मय
प्राचीन चरित्रकोश
मयूरध्वज
सुनकर इन्द्र अपने असली रूप में प्रकट हुआ, तथा कहा, मयूर--एक सुविख्यात असुर, जो इस पृथ्वी में विश्व 'मै तुम्हारे भाई नमुचि का वध करनेवाला इन्द्र हूँ, जो | नामक राजा के रूप में उत्पन्न हुआ था (म. आ. अपनी त्रुटी स्वीकार करते हुए तुमसे मित्रता करना चाहता हूँ'। यह सुन कर मय ने इन्द्र की शत्रुता को भुला कर मयूरध्वज--रत्ननगर का एक राजा । इसने सात उससे मित्रता की, एवं दोनों ने एक दूसरे को मायावी | अश्वमेध यज्ञ करने के उपरांत, नर्मदा तट पर अपना अठवाँ विद्याओं का ज्ञान कराया (ब्रह्म. १२४)।
अश्वमेध यज्ञ प्रारम्भ किया। इसके अश्वमेधीय अश्व के मत्स्य के अनुसार, इसने वास्तुशास्त्र से संबधित एक
संरक्षण का भार इसके पुत्र सुचित्र 'अथवा ताम्रध्वज पर ग्रन्थ की रचना की थी (मस्त्य. २५२)। इसके नाम
था, जो अपने बहुलध्वज नामक प्रधान के साथ दिग्विजय पर शिल्प एवं ज्योतिषशास्त्र विषयक कई ग्रन्थ भी प्राप्त
के लिए निकला था। लौटते समय सुचित्र को युधिष्ठिर हैं (C.C.)।
द्वारा किये गये अश्वमेध का अश्व मिला, जो मणिपुर नगर
से होता हुआ इसके नगर आया था। सुचित्र ने उसे परिवार-इसे कुल दो पत्नियाँ थी। उनमें से पहली
पकड़ कर कृष्णार्जुन से युद्ध किया, तथा युद्ध में उन्हे पत्नी का नाम हेमा था, जो इसे देवताओं ने अर्पण की
मुछित कर के अश्व के साथ नगर में प्रवेश किया। थी। हेमा से इसे मायाविन् एवं दुंदुभि नामक पुत्र एवं
उधर मूर्छा से सावधान होने के उपरांत, कृष्ण ने ब्राह्मण मंदोदरी नामक कन्या उत्पन्न हुश्री थी (वा. रा. उ. १२
का तथा अर्जुन ने ब्राह्मणबालक का रूप धारण कर मयूरध्वज १९)।
की राजधानी रत्नपुर में प्रवेश किया। इसके पास आकर'' ब्रह्मांड के अनुसार, इसकी दूसरी पत्नी का नाम ब्राह्मण वेषधारी कृष्ण ने कहा, 'अपने पुत्र का विवाह कराने रम्भा था, जिससे इसे निम्नलिखित पुत्र प्राप्त हुए थे:- के लिए तुम्हारे पुरोहित कृष्णशर्म के पास धर्मपुर नामक ' अजकर्ण, कालिक, दुंदुभि, महिष एवं मायाविन् । उस | स्थान से हम आ रहे थे कि, आते समय जंगल में मेरे बेटे . ग्रंथ में मंदोदरी को रम्भा की कन्या कहा गया है (ब्रह्मांड. को एक सिंह ने पकड़ लिया। मैने तत्काल नृसिंह भगवान् ३.६.२८-३०)।
का स्मरण किया, किन्तु वह प्रकट न हुए। फिर मुझे देख मस्त्य में इसकी मन्दोदरी, कुहू एवं उपदानवी नामक
कर उस सिंह ने कहा कि, तुम अगर मयूरध्वज राजा का तीन कन्याएँ दी गयी है। किन्तु वे किससे उत्पन्न हुश्री
आधा शरीर मुझे लाकर दोगे, तो मै तुम्हारे पुत्र को वैसे । यह उपलब्ध नहीं हैं। उनमें से कुहू धाता की पत्नी थी
ही वापस कर दूंगा।' (भा. ६.१८.३)। भागवत में उपदानवी को वैश्वनर बाहाण द्वारा यह मांग की जाने पर, मयुरध्वज राजा नामक दानव की कन्या कहा गया है (भा. ६.६.३३)।
बढ़ई के द्वारा अपना शरीर कटवाने के लिए तैयार हो
गया। वैसे ही इसकी पत्नी कुमुदती ने आकर कहा, २. एक असुर, जो त्वष्टा का पुत्र था। इसकी माता
'राजा का वामांग मैं हूँ, इसलिए आप मुझे ले सकते हैं।' का नाम प्रह्लादी-विरोचना था (वायु. ८४.२०)। ब्राह्मण ने कहा, 'सिंह ने दाहिना अंग लाने के लिए
ज्ञातिनाम--त्वष्ट्र एवं मय ये पहले तो व्यक्तिनाम थे। कहा है। किन्तु आगे चलकर ये शिल्पियों का ज्ञातिवाचक एवं गुण
| इसका शरीर जब आरे द्वारा काटा जाने लगा, तब वाचक नाम बन । ये लोग स्वय का मय ज्ञाति क, एवमय- | इसकी बायीं आँख से पानी टपका । इसे देखकर ब्राह्मण ने वंशीय कहलाने लगे। पश्चात् शिल्पशास्त्र पर जिन ग्रंथों का
तत्काल कहा कि, दुःखपूर्व दिया गया दान मै नहीं चाहता। निर्माण हुआ, उन्हे भी 'मयसंहिता' आदि नाम प्राप्त हुये।
तब मयूरध्वज ने कहा, 'आँख के अश्रु शारीरिक कष्ट के कारण ___ यही कारण है कि, प्राचीन भारतीय इतिहास के नहीं निकल रहे, इसका कारण कोई दूसरा है। बाई विभिन्न कालों में विभिन्न त्वष्ट्र एवं मय व्यक्तियों का निर्देश | आँख इसलिए रोती है कि, काश दाहिने अंग की भाँति प्राप्त है। इस वंश के मूल पुरुष त्वष्ट्र एवं मय, असुर | वामांग भी सार्थक हो गया होता, तो कितना अच्छा था। अथवा दानव प्रतीत होते है । क्यों कि, उनका जो वर्णन | इतना सुनते ही ब्राह्मणवेषधारी कृष्ण ने अपने साक्षात् महाभारत एवं पुराणो में प्राप्त है, वह आर्य लोगों से विभिन्न | दर्शन देकर इसके शरीर को पूर्ववत् किया, एवं दृढ प्रतीत होता है (प्रभावती १ तथा ५. देखिये)। आलिंगन कर आशीष दिया। बाद में अपना यज्ञ
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