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________________ प्राचीन चरित्रकोश मंदार कन्या से हुआ था ( गणेश. २.३४.१३; और्व ३. देखिये) । मंदीर -- कात्यायन श्रौतसूत्र में निर्दिष्ट एक व्यक्ति, जिसके पशुओं ने गंगा नदी के जल का पान करना अस्वीकार कर दिया था (का.श्रौ. १३.३.२१ ) । मंदुलक - (आंध्र. भविष्य. ) एक आंध्रवंशीय राजा, जो मत्स्य के अनुसार हाल राजा का पुत्र था । मंदोदरी - रावण की धर्मपरायण पत्नी, जो मयासुर की कन्या थी। यह हेमा अथवा रम्भा नामक अप्सरा से उत्पन्न हुयी थी ( वा. रा. उ. १२.१९, स्कंद ५.२.२५ ब्रह्मांड २.६.२८-३० ) । अध्यात्मरामायण के अनुसार, राम दाशरथि की पत्नी सीता इसकी ही कन्या थी ( सीता देखिये) । २. सिंहलद्वीप के चंद्रसेन राजा की कन्या, जिसकी माता का नाम गुणवती था । यह विवाहयोग्य होने पर, चंद्रसेन राजा ने इसके विवाह की तैयारी की, एवं इंद्र देश के सुधन्वन् नामक राजा से इसका विवाह निश्चित किया । किन्तु इसने इस विवाह से इन्कार कर दिया, एवं पिता से कहा, 'पुरुष दगाबाज होते है, इसलिये मैं विवाह करना नही चाहती हूँ' । इसके कहने पर चंद्रसेन राजा ने इसका विवाह स्थगित किया । मय इस देवता का आवाहन किया गया है (ऋ. १०.८३८४) । यह युद्ध में अजेय, एवं अभि के भाँति जाज्वल्यमान् देवता है । मरुतों के साथ यह अपने भक्तों को विजय तथा संपत्ति प्रदान करता है । तपस् नामक अन्य देवता के साथ यह अपने भक्तों की रक्षा करता है, एवं उनके शत्रुओं को परास्त करता है। ब्रह्म में इस देवता के उत्पत्ति की कथा इस प्रकार दी गयी है। एकबार देवदानव युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। उस समय विजयप्रति के लिए उन्होनें गौतमी नदी के तट पर तपस्या की। इस तपस्या से संतुष्ट हो कर, भगवान् शंकर ने देवों को अभयदान दिया, एवं दैत्यों के संहार के लिए अपने तृतीय नेत्र से मन्यु नामक देवता का निर्माण किया। आगे चल कर इसने देयों को. पराजित किया (ब्रह्म. १६२ ) । २. (सो. पूरु. ) एक पूरुवंशीय राजा, जो भरद्वाज का पुत्र था । इसे बृहत्क्षय आदि पाँच पुत्र थे ( भा. ९.. २१.१ ) | भविष्य में इसके नाम के लिए 'मन्युमद' पाठभेद प्राप्त है। । मन्यु तापस-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.. ८३-८४) । मन्यु वासिष्ठ्य -- एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९.९७. १०-१२ ) । आगे चलकर मंदोदरी के कनिष्ठ बहन के विवाह की तैयारी हुयी। उस महोत्सव में उपस्थित हुए चारुदेष्ण नामक राजपुत्र पर मोहित हो कर इसने उसका वरण किया । किन्तु पश्चात् चारुदेष्ण ने इसे धोखा दिया, जिस कारण पुरुषजाति के संबंध में इसकी प्रकट हुयी आशंका सच साबित हुयी । । २. स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म.श. ४५.१७) । मन्मथकर - स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.६७ ) मंधातु- एक राजा, जिसपर आधियों ने कृपा की थी (ऋ. १.११२.१३) । २. एक ऋषि, जो अंगिरस् ऋषि के समान महान् तपखी था (८,४०.१२ ) । ऋग्वेद में अन्यत्र प्राप्त भरद्वाज के एक सूक्त में मरद्वाज ऋषि का निर्देश 'ममतेब' नाम से किया गया है (ऋ. ६.५०.१५ ) । भरद्वाज के द्वारा रंचित इस सूक्त में ममता के द्वारा रचित स्तोत्रों का निर्देश किया गया है, जिससे प्रतीत होता है कि, ममता भरद्वाज के लिए अत्यंत आदरणीय व्यक्ति थी । धातु यौवनाश्व-- एक सम्राट, जिसे कबंध आथर्वण के पुत्र विचारिन् ने शिक्षित किया था ( गो. बा. १.२. १०) । युवनाश्व का वंशज होने के कारण, इसे यौवनाश्व पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा ( मांधातृ देखिये) । मन्यु -- एक वैदिक देवता, जिसे क्रोध की मूर्तिमन्त प्रतीक रूप देवता माना जाता है । ऋग्वेद के दो सूक्तों में मय--एक दानव, जो दानवों में सर्वश्रेष्ठ शिल्पी एवं दानव नरेश नमुचि का भाई था (म. आ. २१८.३९ ) । कश्यप ऋषि को दनु नामक पत्नी से उत्पन्न पुत्रों में यह एवं नमुचि प्रमुख थे । रामायण में इसे दिति का पुत्र कहा ६१८ मन्दुमत् भानु नामक अभि का द्वितीय पुत्र (म. व. २११.११ ) । ममता उचध्य आंगिरस नामक ऋषि की पत्नी एवं दीर्घतमस् मामतेय नाम ऋषि की माता (१.१४७.२ उच्चभ्य, दीर्घतमस् मामतेय, बृहस्पति आंगिरस एवं भरद्वाज देखिये ) | ,"
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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