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मनु वैवस्वत
प्राचीन चरित्रकोश
मनु वैवस्वत
पार
की।
कालनिर्णय--पुराणों में प्राप्त वंशावलियों के अनुसार, । ८, पृषध्र-इसने अपने गुरु के गाय का वध किया, मनु वैवस्वत का राज्यकाल भारतीययुद्ध से पहले ९५ जिस कारण इसे राज्य का हिस्सा नहीं मिला। पिढ़ियाँ माना गया है। भारतीययुद्ध का काल ईसा. पू. ९. प्रांशु-इसके वंशजों के बारे में कोई जानकारी १४०० माना जाये, तो मनु वैवस्वत का काल ईसा. पू. नही है। ३११० साबित होता है । ज्योतिर्गणितीय हिसाब से भी ३१०२ यह वर्ष कलियुग के प्रारंभ का वर्ष माना जाता
इलापुत्र--इला का विवाह बुध से हुआ, जिससे उसे हैं । हिब्रु एवं बाबिलोन साहित्य में निर्दिष्ट मेसापोटेमिया के
पुरूरवस् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । पुरुरवस् ने सुविख्यात जलप्रलय का काल भी ईसा. पू. ३१०० माना जाता है।
ऐल (चंद्र) राजवंश की स्थापना की जिससे आगे चल इससे प्रतीत होता है कि, शतपथ ब्राह्मण में निर्दिष्ट मनु
कर कान्यकुञ्ज, यादव ( हैहय, अन्धक, वृष्णि ), तुर्वसु वैवस्वत का जलप्रलय भी इसी समय हुआ था।
द्रुह्यु, आनव, पंचाल, बार्हद्रथ, चेदि आदि राजवंशों का .
निर्माण हुआ। परिवार--मनु के कुल दस पुत्र थे, जिसमें से इलाका
इला के पुरुष अंश का रुपान्तर आगे चलकर सुयुम्न . निर्देश पुराणों में इल नामक पुरुष, एवं इला नामक स्त्री
नामक किंपुरुष में हुआ, जिससे सौद्युम्न नामक राजवंश ऐसे द्विरूप पद्धति से प्राप्त है।
का निर्माण हुआ। इस राजवंश की उत्कल, गया एवं इसके नौ पुत्रों की एवं उनके द्वारा स्थापित राजवंशों |
| विनताश्व नामक तीन शाखाएँ थी, जो क्रमशः उत्कल, की जानकारी निम्न प्रकार है :--
गया एवं उत्तरकुरु प्रदेश पर राज्य करती थी। आगे चल १. इक्ष्वाकु--इसका राज्य अयोध्या में था, एवं इसके कर आनव एवं कान्यकुब्ज राजाओं ने सौद्युम्न राज्यों को पुत्र विकुक्षि ने सुविख्यात ऐक्ष्वाक राजवंश की स्थापना | जीत लिया।
करुष, नाभाग, धृष्ट, नरिष्यंत, प्रांशु एवं पृषध लोगों के २. शर्याति--इसने आनर्त-देश में राज्य करनेवाले राज्य ऐलवंशीय पुरूवरस् , नहष एवं ययाति ने जीत सुविख्यात 'शार्यात' राजवंश की स्थापना की। इसके पुत्र | लिया, जिस कारण ये सारे राजवंश शीघ्र ही विनष्ट . का नाम आनत था, जिससे प्राचीन गुजरात को आनर्त | नाम प्राप्त हुआ था।
इसके वंश में उत्पन्न उत्तरकालीन राजाओं का काल ३. नाभानेदिष्ट-इसने उत्तर बिहार प्रदेश में
संभवतः निम्नलिखित माना जाता है :-' सुविख्यात वैशाल राजवंश की स्थापना की । इसके राज्य |
ययाति--ई. पू. ३०१०। की राजधानी वैशाली नगर में थी, जो आधुनिक मुजफरपुर
मांधातृ-ई. पू. २७४०। जिले में स्थित बसाढ गाँव माना जाता हैं।
अर्जुन कार्तवीर्य-ई पू. २५५० । ४. नाभाग-इसके द्वारा स्थापित नाभाग राजवंश
सगर, दुष्यन्त एवं भरत-ई. पू. २३५०-२३००। का राज्य गंगा नदी के दुआब में स्थित मध्यदेश में था। राम दाशराथि--ई. पू. १९५० (हिस्टरी अॅन्ड इस राजवंश में रथीतर लोग भी समाविष्ट थे, जो क्षत्रिय | कल्चर ऑफ इंडियन पीपल-१.२७०)। ब्राह्मण कहलाते थे।
हिन्दी साहित्य में-आधुनिक हिन्दी साहित्य में मनु ५. धृष्ट--इससे 'धार्टक' क्षत्रिय नामक जाति का निर्माण के जीवन से सम्बन्धित जयशंकर प्रसाद' द्वारा लिखित हुआ, जो पंजाब के वाहीक प्रदेश में राज्य करते थे । इन 'कामायनी' हिन्दी काव्याकाश का गौरव ग्रन्थ है। इसके लोगों का निर्देश क्षत्रिय, ब्राह्मण एवं वैश्य इन तीनों तरह कथानक का आधार प्राचीन ग्रन्थ ही है, जिसमें मानव से किया हुआ प्राप्त है।
मन, बुद्धि तथा हृदय के उचित सन्तुलन को स्थापित ६. नरिप्यंत-कई अभ्यासकों के अनुसार, शक लोग कर चिरदग्ध दुःखी वसुधा को आशा बँधाती हुयी इसी राजा के वंशज थे।
समन्वयवाद, समरसता एवं आनंदवाद के द्वारा मंगलमय ७. करूष--इसके वंशज करूष लोग थे, जो आधुनिक | महान संदेश देने का प्रयत्न किया गया है। रेवा प्रदेश में स्थित करूष देश में रहते थे, एवं कुशल कामायनी पन्द्रह सगों में विभक्त है, तथा हर एक ' योद्धा माने जाते थे।
| सर्ग का नामकरण वयं विषय के आधार पर हुआ है। ६१२