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मनु प्राचेतस
प्राचीन चरित्रकोश
मनु वैवस्वत
विषयक मतों का निर्देश प्राप्त हैं (मनु स्वायंभुव | प्लावन सम्बन्धी कथाएँ मिलती हैं। 'अत्रहसिस' महाकाव्य देखिये)।
में वर्णित एक कथा के अनुसार, अडेंटस के पुत्र जिसस मनु वैवस्वत -वैवस्वत नामक पाँचवे मन्वन्तर
जलप्लावन के उपरांत देवों को बलि देकर बेबीलोनिया का अधिपति मनु, जो विवरवत् नामक राजा का पुत्र था।
नगर का पुनः निर्माण करता है (दि फ्लड लिजेन्ड इन इसके नाभागारिष्ट नामक पुत्र का निर्देश वैदिक ग्रंथों में संस्कृत लिटरेचर पृ. १४८-१४९)। बेबीलोनिया में गिलप्राप्त है (तै. सं. ३.१.९.४)।
गमेश महाकाव्य में इसी प्रकार के जलप्लावन की एक इसे निम्नलिखित दस पुत्र थे:--प्रांशु, धृष्ट, नरिष्यन्त,
कथा प्राप्त है। ईसाई धर्मग्रन्थ बाइबिल में यह कथा नाभाग, इक्ष्वाकु, करूष, शर्याति, इल, पृषध्र, एवं
विस्तार से दी गयी है, जिसमें नूह का वर्णन मनु की नाभानेदिष्ट । इसे इला नामक एक कन्या थी, जिसे
भाँति किया गया है । कुरानशरीफ में यह कथा बाइबिल से पुरुरवस् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (म. अनु. १४७.
मिलती जुलती है । अन्तर केवल इतना है कि, बाई बिल २७)।
में हज़रत नूह की नाव अएएट पर्वत पर आकर रुकती ताया के पास में सनसनकोसने अपने है, जब कि कुरान में उस पर्वत का नाम जूदी दिया गया पुत्र को सात्वत धर्म का उपदेश किया था।
है (दि होली कुरान पृष्ठ ११.३.२५-४९)। इसके सृष्टिप्रलय--सृष्टि प्रलय के समय एक मत्स्य द्वारा मनु
अतिरिक्त चैल्डिया के साहित्य में भी हासीसद्रा परमेश्वर वैवस्वत के बचाने की कथा सम्पूर्ण वैदिक एवं उत्तर वैदिक
| 'ई' के आदेशानुसार अपने को जलप्लावन से बचाता है। ग्रन्थों में किसी न किसी रूप में प्राप्त है। शतपथ ब्राह्मण इसके अतिरिक्त पारसी धार्मिक ग्रन्थ वेंदीदाद तथा के अनुसार, जब सारी सृष्टि जलप्रवाह से बह जाती थी, | पहलवी, सुमेरिन, आइसलैण्ड, वेल्स, लिथुआनिया तब मनु एक नाव में बैठा कर एक मत्स्य के द्वारा बचा एवं असीरिया के साहित्य में यह जलप्लावन की कथा गया था (श. ब्रा. १.८.१) । प्रलय के उपरांत | मिलती है। इसके साथ ही चीन, ब्रह्मा, इंडोचीन, मलाया. अपनी उस इला नामक पुत्री के माध्यम से ही मनु मानव
आस्ट्रेलिया, न्यूगिनी, मैलेवेशिया, पालीमेशिया, उत्तर जाति की प्रथम सन्तान के जनक हुए, जो उन्हींके हवि
दक्षिणी अमरीका आदि देशों में जलप्लावन सम्बन्धी से उत्पन्न हुयी थी। यह कथा अथर्ववेद तक के समय में
कथायें प्राप्त हैं। भी ज्ञात थी, ऐसा इसी संहिता के एक स्थल द्वारा व्यक्त होता है (अ. वे. १९.३९.८)।
संसार की समस्त जलप्लावन सम्बन्धी कथाओं की महाभारत में पृथ्वी के जलप्रलय की एवं मत्स्यावतार
तुलना करने पर यही ज्ञात होता है कि, दक्षिण एशिया की की कथा प्राप्त है (म. व. १८५)। उस कथा के अनुसार
समस्त कथायें समान हैं, क्योंकि उनमें सर्वत्र सम्पूर्ण पृथ्वी 'प्रलयकाल में इसकी नौका नौबंधन नामक हिमालय के
के डूबने एवं अधिकांश पदार्थों के नष्ट होने का विवरण शिखर पर आकर रुकी थी। कई ग्रन्थों में हिमालय के
प्राप्त है। उत्तरी एशिया की कथाओं में से चीन जापान इस शिखर का नाम नावप्रभंशन दिया गया है।
की कथाओं में पूर्ण विनाश का वर्णन हैं । योरप में ऐसे मत्स्यपुराण के अनुसार, इसकी नौका हिमालय पर्वत
विनाश के वर्णन कम है, तथा अफ्रीका की कथाओं में पर नहीं, बल्कि मलय पर्वत पर रुकी थी। भागवत
जलप्लावन का वर्णन बिल्कुल नहीं है। में मनु को द्रविंड देश का राजा कहा गया है, एवं इसका
प्रलयोत्तर मानवी समाज का आदिपरुष--मनु वैवस्वत नाम सत्यव्रत बताया गया है (भा. १.३.१५)।
प्रलयोत्तरकालीन मानवी समाज का आदिपुरुष माना विभिन्न साहित्यों में प्राप्त जलप्लावन-कथा--जल जाता है, एवं पुराणों में निर्दिष्ट सारे राजवंश उसीसे ही प्लावन की यह कथा संसार के विभिन्न साहित्यिक, धार्मिक | प्रारंभ होते है। राज्यशासन के नानाविध यमनियम ग्रन्थों एवं लोककथाओं आदि में प्राप्त है।
के प्रणयनों का श्रेय इसको ही दिया जाता है। खेती में यूनानी-साहित्य में ड्यालियन तथा उसकी पत्नी से जो उत्पादन होता है, उसमें से छटवाँ भाग राज्यपीरिया की कथा में मनु जैसा ही वर्णन मिलता है (मिथ शासन का खर्चा निभाने के लिए राजा को मिलना चाहिए, आफ ऐनशियन्ट ग्रीस एण्ड रोम, पृष्ठ. २२-२३)। इस सिद्धान्त के प्रणयन का श्रेय भी इसको दिया जाता यूनान के अतिरिक्त वेबीलोनिया के साहित्य में भी जल-है।
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