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________________ मनु प्राचीन चरित्रकोश मनु जीवित मनुष्यों का एवं यम को दूसरे लोक में मृत | है। यज्ञकर्ता भी अग्नि को उसी प्रकार यज्ञ का साधन मनुष्यों का आदिपुरुष माना गया। इसीलिए शतपथ बनाते हैं, जिस प्रकार मनओं ने बनाया था (ऋ. १.४४) ब्राह्मण में मनु वैवस्वत को मनुष्यों के शासक के रूप में, वे मनुओं की ही भाँति अग्नि को प्रज्वलित करते हैं, तथा यम वैवस्वत को मृत पितरों के शासक के रूप में तथा उसीकी भाँति सोम अर्पित करते हैं (ऋ. ७.२, ४. वर्णन किया गया है (ऋ. ८.५२.१; श. बा. १३.४.३) ३७)। सोम से उसी प्रकार प्रवाहित होने की स्तुति की यह मनु सम्भवतः केवल आर्यों के ही पूर्वज के रूप में | गयी है, जैसे वह किसी समय मनु के लिए प्रवाहित होता माना गया है, क्योंकि अनेक स्थलों पर इसका अनायों | था (ऋ. ९.९६ )। के पूर्वज द्यौः से विभेद किया है। . __समकालीन ऋषि--मनु का अनेक प्राचीन यज्ञ___ यज्ञसंस्था का आरंभकतों-मनु ही यज्ञप्रथा का कर्ताओं के साथ उल्लेख मिलता है, जिनमें निम्नलिखित आरंभकर्ता था, इसीसे इसे विश्व का प्रथम यज्ञकर्ता माना प्रमुख है:-अंगिरस् और ययाति (ऋ. १.३१), भृगु और जाता है (ऋ. १०.६३.७; तै. सं. १.५.१.३; २.५.९.१; | अंगिरस (ऋ. ८.४३), अथर्वन् और दध्यञ्च (ऋ. १. ६.७.१, ३.३.२.१, ५.४.१०.५, ६.६.६.१, ७.५.१५. ८०), दध्यञ्च, अंगिरस्, अत्रि और कण्व (ऋ. १.१३९)। ३)। ऋग्वेद के अनुसार, विश्व में अग्नि प्रज्वलित करने ऐसा कहा गया है कि, कुछ व्यक्तियों ने समय समय पर के बाद सात पुरोहितों के साथ इसने ही सर्वप्रथम देवों | मनु को अग्नि प्रदान कर उसे यज्ञ के लिए प्रतिष्ठित किया . को हवि समर्पित की थी (ऋ. १०.६३)। था, जिनके नाम इस प्रकार है--देव (ऋ. १.३६ ), यज्ञ से ऐश्वर्यप्राप्ति--तैत्तिरीय संहिता में मनु के द्वारा मातरिश्वन् (ऋ. १.१२८), मातरिश्वन्. और देव किये गये यज्ञ के उपरांत उसके ऐश्वर्य के प्राप्त होने की (ऋ. १९.४६), काव्य उशना (ऋ. ८.२३)। कथा प्राप्त है । देव-दैत्यों के बीच चल रहे युद्ध की विभीषिका से अपने धन की सुरक्षा करने के लिए देवों | ऋग्वेद के अनुसार, मनु विवस्वत् ने इन्द्र के साथ बैठ । कर सोमपान किया था (वाल. ३)। तैत्तिरीय संहिता. ने उसे अग्नि को दे दिया । बाद को अग्नि के हृदय में लोभ । उत्पन्न हुआ, एवं वह देवों के समस्त धनसम्पत्ति को और शतपथ ब्राह्मण में मनु का अक्सर धार्मिक संस्कारादि लेकर भागने लगा । देवों ने उसका पीछा किया, एवं उसे करनेवाले के रूप में भी निर्देश किया गया है। कष्ट देकर विवश किया कि, वह उनकी अमानत को | मन्वंतरों का निर्माण--आदिपुरुष मनु के पश्चात् , वापस कर । देवों द्वारा मिले हए कष्टों से पीडित होकर | पृथ्वी पर मनु नामक अनेक राजा निर्माण हए, जिन्होने अग्नि रुदन करने लगा, इसी से उसे 'रुद्र' नाम प्राप्त | अपने नाम से नये-नये मन्वंतरों का निर्माण किया । हुआ। उस समय उसके नेत्रों से जो आर् गिरे उसीसे | ब्रह्मा के एक दिन तथा रात को कल्प कहते हैं। इनमें चाँदी निर्माण हुयी, इसी लिए चाँदी दानकर्म में | से ब्रह्मा के एक दिन के चौदह भाग माने गये हैं, जिनमें वर्जित है। अन्त में अग्नि ने देखा कि, देव अपनी धन- | से हर एक को मन्वन्तर कहते हैं। पुराणों के अनुसार, सम्पत्ति को वापस लिए जा रहे हैं, तब उसने उनसे कुछ इनमें से हर एक मन्वन्तर के काल में सृष्टि का नियंत्रण भाग देने की प्रार्थना की । तब देवों ने अग्नि को | करनेवाला मनु अलग होता है, एवं उसीके नाम से उस 'पुनराधान' (यज्ञकों में स्थान ) दिया। आगे चलकर मन्वन्तर का नामकरण किया गया है। इस प्रकार जब मनु, पूषन् , त्वष्ष्ट्र एव धातृ इत्यादि ने यज्ञकर्म कर के | तक वह मनु उस सृष्टि का अधिकारी रहता है, तब तक ऐश्वर्य प्राप्त किया (तै. सं. १.५.१)। | वह काल उसके नाम से विख्यात रहता है। __ मनु ने सभी लोगों के प्रकाशहेतु अग्नि की स्थापना चौदह मन्वंतर-इस तरह पुराणों में चौदह मन्वन्तर की थी (ऋ. १.३६ )। मनु का यज्ञ वर्तमान यज्ञ का ही माने गये हैं, जो निम्नलिखित चौदह मनुओं के नाम से प्रारंभक है, क्यों कि, इसके बाद जो भी यज्ञ किये गये, उन | सुविख्यात हैं :--१. स्वायंभुव, २. स्वारोचिप, ३. उत्तम में इसके द्वारा दिये गये विधानों को ही आधार मान कर (औत्तम,), ४. तामस, ५. रैवत, ६. चाक्षुष, देवों को हवि समर्पित की गयी (ऋ. १.७६.)। इस | ७. वैवस्वत, ८. सावर्णि (अर्कसावर्णि) ९. दक्षसावर्णि, प्रकार की तुलनाओं को अक्सर क्रियाविशेषण शब्द | १०. ब्रह्मसावर्णि ११. धर्मसावर्णि १२. रुद्रसावर्णि, . 'मनुष्वत्' (मनुओं की भाँति) द्वारा व्यक्त किया गया | १३.रौच्य, १४. भौत्य । इनमें से स्वायंभुव से चाक्षुष
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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