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________________ प्राचीन चरित्रकोश मनु वि ब्रह्म, रोच्य मत्स्य रोच्य | एवं तक के मन्वंतर हो चुके है, एवं वैवस्वत मन्वंतर सांप्रत | करना रहता है, एवं इन प्रजाओं का पालन मनु एवं उसके चालू है । बाकी मन्वंतर भविष्यकाल में होनेवाले हैं। पुत्र भूपाल बन कर करते हैं। इन भूपालों को देवतागण पाठभेद-चौदह मन्वन्तर के अधिपतियों मनु के सलाह देने का कार्य करते हैं, एवं भूपालों को प्राप्त होनेनाम विभिन्न पुराणों में प्राप्त है। इनमें से स्वायंभुव से वाली अड़चनों का निवारण इन्द्र करता है। जिस समय ले कर सावर्णि तक के पहले आठ मनु के नाम के बारे इन्द्र हतबल होता है, उस समय स्वयं विष्णु अवतार में सभी पुराणों में प्रायः एकवाक्यता है, किंतु नौ से लेकर भूपालों का कष्ट निवारण करता है। चौदह तक के मनु के नाम के बारे में विभिन्न पाठभेद | मनु एवं उसके उपर्युक्त सारे सहायकगण विष्णु के प्राप्त है, जो निम्नलिखित तालिका में दिये गये हैं: अंशरूप माने गये है, तथा मन्वन्तर के अन्त में वे सारे विष्णु में ही विलीन हो जाते हैं। किसी भी मन्वन्तर के आरम्भ में वे विष्णु के ही अंश से उत्पन्न होते हैं (विष्णु. १.३)। स्वायंभुव मन्वन्तर १. मनु--स्वायंभुव । २. सप्तर्षि--अंगिरस् (भृगु), अत्रि, ऋतु, पुलस्त्य, पुलह, मरीचि, वसिष्ठ । ___३. देवगण-याम या शुक्र के जित, अजित् व जिताजित् ये तीन भेद थे। प्रत्येक गण में बारह देव थे (वायु. ३१.३-९)। उन गणों में निम्न देव थे-ऋचीक, गृणान, जनिमत् , जर, जविष्ठ, दुह, बृहच्छुक्र, मितवत् , विभाव, विभु, विश्वदेव, श्रुति, सोमपायिन् (ब्रह्माण्ड. २. १३)। इन देवों में तुषित नामक बारह देवों का एक और गण था (भा. ४.१.८)। ___४. इन्द्र--विश्वभुज् (भागवत मतानुसार यज्ञ)। इन्द्राणी 'दक्षिणा' थी (भा. ८.१.६ )। ५. अवतार-यज्ञ तथा कपिल (विष्णु एवं भागवत मतानुसार)। ६. पुत्र-अग्निबाहु (अग्निमित्र, अतिबाहु), अग्नीध्र (आनीध्र), ज्योतिष्मत् , द्युतिमत् , पुत्र (वपुष्मत् , सत्र, सह), मेधस् (मेध, मेध्य), मेधातिथि, वसु (बाहु), सवन (सवल), हव्य (भव्य)। ___ मार्कंडेय के अनुसार, इसके पुत्रों में से पहले सात भूपाल थे। भागवत तथा वायु के अनुसार, इसे प्रियव्रत उपर्युक्त हर एक मन्वन्तर की कालमर्यादा चतुर्युगों | एवं उत्तानपाद नामक दो पुत्र थे। प्रियव्रत के दस पुत्र थे । की इकत्तर भ्रमण माने गये हैं | चतुयुगों की कालमर्यादा तेतालीस लाख वीस हज़ार मानुषी वर्ष माने गये हैं। इस स्वारोचिष मन्वंतर प्रकार हर एक मन्वन्तर की कालमर्यादा तेतालीस लाख १. मनु-स्वारोचिष । कई ग्रन्थों में इस मन्वन्तर के वीस हजार ४ इकत्तर होती है। मनु का नाम 'द्युतिमत्' एवं 'स्वारोचिस्' बताया गया है। हर एक मन्वन्तर का राजा मनु होता है, एवं उसकी | २. सप्तर्षि--अर्ववीर (उर्वरीवान् , ऊर्ज, और्व), सहायता के लिए सप्तर्षि, देवतागण, इन्द्र, अवतार एवं | ऋषभ (कश्यप, काश्यप), दत्त (अत्रि), निश्च्यवन मनुपुत्र रहते हैं। इनमें सप्तर्षियों का कार्य प्रजा उत्पन्न | (निश्चर, ल), प्राण, बृहस्पति (अग्नि, अलि), स्तम्ब । ब्रह्मवैवर्त RELATE | दक्षसावर्णि ब्रह्मसावार्ण रुद्रसावर्णि रोच्य मौल्य ब्रह्मसावर्णि मेरुसावर्णि धर्मसावर्णि भौत्य | मेरुसावर्णि ऋतसावर्णि ऋतधामन् विश्वक्सेन ब्रह्मसावर्णि देवसावर्णि इंद्रसावर्णि (चंद्रसावर्णि) सूर्यसावाणे दक्षसावर्णि | रुद्रसावर्णि रुद्रसावर्णि | ब्रह्मसावणि सावर्ण । मेरुसावर्णि धर्मसावर्णि धर्मसावर्णि *नुधामन् रोच्य विष्वक्सेन भौत्य रोच्य भौत्य सावर्ण सावर्ण सावर्ण रोच्य माक. पद्म Rsk | वायु ६०७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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