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मधुकैटभ
प्राप्त हुआ ( म. स. परि. १. क्र. २१. पंक्ति १३३-१३५; शां. ३३५ ) । भगवान् विष्णु ने ब्रह्मा के कहने पर मारा था, अत एव उसे 'मधुसूदन' नाम प्राप्त हुआ ( म. शां. २००.१४ - १६ ) । पद्म के अनुसार, देवासुर संग्राम में ये हिरण्याक्ष के पक्ष में शामिल थे, एवं देवों से मायायुद्ध करते थे । इसी कारण विष्णु ने इनका वध किया (पद्म. सृ. ७० ) 1
ये असुरों के पूर्वज माने जाते हैं, जो तमोगुणी प्रवृत्ति के उग्र स्वभाववाले थे, तथा सदा भयानक कार्य किया करते थे।
प्राचीन चरित्रकोश
मधुच्छन्दस् वैश्वामित्र - एक ऋषि, जो ऋग्वेद के प्रथम मंडल में से पहले दस सूक्तों का रचयिता माना जाता है (कौ. ब्रा. २८.२ ) । ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार, यह विश्वामित्र का इक्यावनवाँ पुत्र श्री ( ऐ. ब्रा. ७.१८ ) । शतपथ ब्राह्मण में सुविख्यात् 'प्रउग' (प्रातःकालिन स्तुतिस्तोत्र ) सूक्त का कर्ता इसे कहा गया है (श. बा. १३.५. १.८ ) । यह सूक्त प्रायः प्रातःकाल के समय गाया जाता है । इसके द्वारा रचित यह सूक्त गायत्री छंद में है ( ऐ. आ. १.१.३) ।
विश्वामित्र के कुल सौ पुत्र थे । उनमें से शुनःशेप नामक पुत्र का ज्येष्ठ भ्रातृत्व विश्वामित्र के पहले पचास पुत्रों ने मान्य न किया । किंतु अगले पचास पुत्रों ने उसे मान्यता दी, जिसमें मधुच्छंद्रस् प्रमुख था । इस कारण विश्वामित्र इस पर अत्यंत प्रसन्न हुआ, एवं उसने इसे शुभाशीर्वाद दिये ।
वैवस्वत मनु का पुत्र शर्यात राजा का यह पुरोहित था (शर्यांत देखिये )। यह विश्वामित्र गोत्र का गोत्रकार एवं प्रवर तथा कुशिक गोत्र का मंत्रकार था ( म. अनु. ४. ४९–५०)। महाभारत में एक वानप्रस्थी ऋषि के नाते से इसका निर्देश प्राप्त है ।
मनसा
मधुर -- एक असुर, जो वृत्रासुर का पुत्र था। २. स्कंद का एक सैनिक ( म. श. ४४.६६ ) । ३. ( स्वा. प्रिय. ) एक राजा, जो बिन्दुमत् राजा का पुत्र था ।
मधुरस्वरा - स्वर्गलोक की एक अप्सरा, जो अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित थी ( म. आ. ४४.३० ) । मधुरावह -- अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । मधुरुह - ( स्वा. प्रिय. ) एक राजा, जो धृतपृष्ठ राजा का पुत्र था ।
मधुष्पंद -- विश्वामित्र के पुत्रों में से एक । मधुलिका -- स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. ४६.१८ ) । इसके नाम के लिए 'मधुरिका ' पाठभेद प्राप्त है ।
मधुवर्ण - स्कंद का एक सैनिक ( म. श. ४४.६७ ) । मध्य-- कश्यप एवं अरिष्टा के पुत्रों में से एक । मध्यंदिन -- ( स्वा. उत्तान . ) एक राजा, जो भागवत के अनुसार पुष्पार्ण एवं प्रभा का पुत्र था ।
मध्यम प्रातीबोधीपुत्र माण्डुकेय - एक आचार्य. (सां. आ. ७.१३ ) । प्रतीबोध के किसी स्त्रीवंशज का पुत्र होने से इसे 'प्रातीबोधीपुत्र' नाम प्राप्त हुआ होगा ।
मन - भव्य, तुषित एवं साध्य देवों में से एक । मनस् -- सायण के अनुसार, एक ऋषि (ऋ. ५. ४४.१० ) ।
मनसा - एक देवी, जिसमें विषबाधा दूर करने का अलौकिक सामर्थ्य था । यह सामर्थ्य इसे शिवकृपा से प्राप्त हुआ था।
इन्द्र एवं सर्पादि विषैलि जातियाँ इसकी उपासना करती थी, एवं वासुकि जैसे सर्प इसके उपासकों में थे। पृथ्वी पर के समस्त सर्पों पर इसका वरदहस्त था ।
२. प्रमतिपुत्र सुमति राजा का पुरोहित, जो योगमार्ग से मुक्त हुआ था (पद्म. स. १५ ) ।
यह सर्पों के विष को लीलया उतार देती थी, जिसे साक्षात् धन्वन्तरि भी नहीं उतार सकते थे। अतः इसे
मधुप -- स्वायंभुव मन्वन्तर के अजित देवों में से धन्वंतरि से भी बढ़कर मानते है, एवं सर्पविद्यासंपन्न
एक ।
लोग इसे अपनी देवता मानते है । ग्रामों में आज भी इसकी पूजा की जाती है ( ब्रह्मवै. ३.५१ ) ।
२. एक राजा, जो कृष्णांश राजा का शत्रु था। इसके पुत्र का नाम वीरसेन था (भवि. प्रति ३.२२ ) । मधुपर्क--- गरुड की प्रमुख संतानों में से एक ( म.उ. ९९.१४ ) ।
जनमेजय ने किये सर्पसत्र से इन्द्र तक्षक आदि नाग बचे थे, उन्होंने इस देवी की पूजा की थी ( दे. भा. ९.४८ ) । यह कश्यप ऋषि की कन्या, एवं वासुकि सर्प की भगिनी
मधुपिंग - - लांगली भीम नामक शिवावतार का मानी जाती है। इसका विवाह जरत्कारु नामक ऋषि से हुआ था, जिससे इसे आस्तिक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ
शिष्य ।
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