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________________ मद्रगार मगार शौगायन - एक आचार्य, जो साति औाक्षि नामक ऋषि का शिष्य था । इसके शिष्य का नाम काम्बोज औपमन्यव था (व. बा. १.) । प्राचीन चरित्रकोश , शुङ्ग का वंशज होने से इसे 'शौङ्गायनि' उपाधि प्राप्त हुई। सिमर के अनुसार, इन नामों से 'कम्बोजों एवं ‘मद्रों ' के संबंध का संकेत मिलता है (आल्टिन्डिशे लेबेन १०२) मुद्रा - अत्रि ऋषि की दस स्त्रियों में से एक। इसके पुत्र का नाम सोम था (ब्रह्मांड २.८.८४-८७ ) । मधु - उत्तम मनु के पुत्रों में से एक। २. चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । एक था। ४. मधुकैटभ नामक सुविख्यात असुरद्ववों में से एक (मधुकैटभ देखिये) । मधुकैटभ - एक सुविख्यात अमुरद्वय । ये मधु तथा ३. एक राक्षस, जो कश्यप एवं खशा के पुत्रों में से कैटभ नामक दो असुर बह्मदेव के स्वेद से उत्पन्न हुए थे (विष्णुधर्म. १. १५) । जन्म - पद्म के अनुसार इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के तमोगुण से हुयी थी (पद्म. सु. ४० ) । देवी भागवत में कहा गया है कि, इनकी उत्पत्ति विष्णु के कान के मैल से हुयी थी (दे. भा. १.४ ) । ५. (स्वा. प्रिय. ) एक राजा, जो भागवत के अनुसार बिन्दुमत् एवं सरघा का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम वीरजन था। 9 ६. (सो. क्रोष्टु. ) एक यादव राजा, जो भागवत एवं भविष्य के अनुसार देवक्षत्र का विष्णु के अनुसार क्षेत्र का, मत्स्य के अनुसार दैवक्षत्र का, एवं वायु के अनुसार देवन राजा का पुत्र था। ७. (सो. यदु. सह. ) एक यादव राजा, जो विष्णु के अनुसार कृप का एवं भागवत के अनुसार सहस्रार्जुन का पुत्र था।. मधुकैटभ नामक यादव राजा ने जीत ली एवं वह वहाँ का राजा बना ( ह. वं २.३८ ) । ९. कृष्ण के पत्रों में से एक। महाभारत के अनुसार इन दोनों की उत्पत्ति भगवान् विष्णु के कान के मैल से हुयी थी। भगवान् ने मिट्टी से इनकी आकृति बनायी थी। इनकी मूर्ति में वायु के प्रविष्ट हो जाने से ये सप्राण हो गये थे । इन दोनों में मधु की त्वचा कोमल थी, अतएव इसे 'मधु' नाम प्राप्त हुआ था । मधु सहित कैटभ की उत्पत्ति का वर्णन महाभारत में प्राप्त है। भगवान् विष्णु के नाभिकमल पर भगवत्प्रेरणा से जल की दो बूँदें पड़ी थीं, जो रजोगुण तथा तमोगुण की प्रतीक थी। भगवान् ने उन दोनों बूँदों की ओर देखा, तथा उनमें से एक बूँद मधु तथा दूसरी टम हो गयी ( म. शां. ३५५.२२-२३) । मृत्यु - इन्होंने तप कर के अजेयत्व प्राप्त किया था । बाद में अपने स्वभाव के अनुसार, जब ये सब लोगों को त्रस्त करने लगे, तब विष्णु ने इनका वध किया (दे. मा. १.४ ) । ये पैदा होने के उपरांत ही ब्राह्मणों का वध करने लगे थे, तथा ब्रह्मा को भी मारने के लिए उद्यत हुए थे (म.व. १३.५० ) । ब्रह्मदेव ने विष्णु की स्तुति की, तब विष्णु ने इनसे पचास हज़ार वर्षों तक युद्ध किया। लेकिन यह मरते ही न थे। अन्त में इन्हें मोहित कर विष्णु ने इनसे इनकी मृत्यु का वर माँगा, तथा बाद में गोद में लेकर इनका वध किया (पद्म. क्रि. २; मार्के. ७८; ह. वं. ३.१३ ) । इनकी मेद से पृथ्वी बनने के ही कारण पृथ्वी को 'मेदिनी' नाम ६०३ ८. एक यादव राजा, जिसकी माता का नाम लोला था। यह अत्यंत सदाचरणी एवं शिव का परमभक था । इसके तप एवं सदाचरण से प्रसन्न हो कर शिव ने इसे एक त्रिशूल प्रदान किया था। यह त्रिशूल जब तक इसके पास रहेगा, तब तक यह युद्ध में अवध्य एवं अजेय रहेगा, ऐसा इसे शिव का वर था ( लोला देखिये) । मधुक पैग्य - एक आचार्य, जो याश्वस्य ऋषि का शिष्य था (श. ब्रा. ११.७.२.८९ सां. बा. १६.९) । इसके शिष्य का नाम चूड भागवित्ति था (बृ. उ. ६.३. ८-९ काव्य.)। पिंग का वंशज होने से इसे 'पै उपाधि प्राप्त हुयी होगी । मधुकुंभा- स्कंद की अनुचरी एक मातृक ( म. श. ४५.१८) । इसकी पत्नी का नाम कुम्भीनसी था, जिससे इसे लवण नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था । लवण अत्यंत दुराचारी था, इसलिए शत्रुघ्न ने उसका वध किया था। रामायण के अनुसार, शत्रुघ्न ने उसका बाण से, एवं हरिवंश के अनुसार खड्ग से उसका शिरच्छेद किया ( वा. रा. उ. ६९.३६ . . १.५४.५२ ) । मधु स्वयं यादवों का राजा था, किन्तु रामायण में इसे दैत्य भी कहा गया है । इसका पुत्र लवण निपुत्रिक अवस्था में मृत होने के पश्चात् इसकी राजधानी मधुपुरी भीम
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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