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________________ अर्जुन प्राचीन चरित्रकोश अर्जुनक की पत्नी ने, अर्जुन को युद्ध से परावृत्त किया। इस प्रकार, देखिये)। जो कुछ अंकुर यादव वंश के बचे थे, उनकी बडे गौरव के साथ अश्व के पीछे पीछे दिग्विजय कर के, इसने व्यवस्था की । हार्दिक्यतनय को मृत्तिकावत का राज्य अर्जुन हस्तिनापुर लौट आया । उस समय माघ पौर्णिमा दिया, अश्वपति को खाण्डववन का राज्य दिया तथा थी, तथा यज्ञ चैत्र पौर्णिमा के समय होने वाला था। इस के बाकी सब को इन्द्रप्रस्थ में रख कर, वज्र को इन्द्रप्रस्थ का लिये अर्जुन ने सब को आमंत्रण दिया था (म. आश्व. राजा बनाया (म. मौ. ८; पन. ३. २७९. ५६; ब्रह्म. ७१ ८५-कुं.) युधिष्ठिर को अर्जुन के आगमन की वार्ता | २१०-२१२, विष्णु. ५. ३७. ३८; अग्नि. १५)। इस प्रथम जासूसों द्वारा मालूम हुई । तदनंतर अर्जुन के शरीर-प्रकार व्यवस्था कर के, अर्जुन उद्विग्न अवस्था में व्यास स्वास्थ्य के बारे में उसने कृष्ण के पास विशेष पूछताछ आश्रम में गया, तथा व्यास का दर्शन ले कर, हस्तिनापूर की (म. आश्व. ८९ कुं.)। अर्जुन ने आनेवाले राजाओं आ कर, सब निवेदन युधिष्ठिर को किया (म. मो. ९ कुं) का सन्मान करने के बारेमें बताते समय, बभ्रुवाहन का | मृत्यु-तदपुरांत जब सब पांडव हिमालय पर जा रहे विशेष सन्मान करने के लिये कहा (म. आश्व. ८८. | थे. तब १०६ वर्ष की उम्र में इसका पतन हुआ। भीम ने १८-२१ कुं.) पूछा कि, बीच में ही इसका पतन क्यों हुआ? तब धर्म ने हतबलता-सब यादवों का संहार हुआ, ऐसी वार्ता | कहा कि, यह हमेशा कहता था कि, मैं अकेले ही शत्रुओं दारुक ने हस्तिनापुर में आ कर बताई। तब अर्जन को को नष्ट करूंगा, परंतु उसने ऐसा किया नही। उसी प्रकार. ऐसा लगा कि, यह वार्ता गलत है। परंतु स्वयं द्वारका अन्य धनुर्धारियों का यह अवमान भी करता था, इस में आ कर देखने के बाद, उसे विश्वास हुआ। लिये इसका पतन हुआ (म. महा. ३.२१-२२)। कृष्णपत्नियों का हृदयभेदी विलाप बडे कष्ट से सुन कर कौटुंबिक--अर्जुन को द्रौपदी से उत्पन्न पुत्र श्रुतकीर्ति इसने सबको धीरज बँधाया, तथा यह वसुदेव से मिलने | भारतीय युद्ध में मृत हो गया । सुभद्रा से उत्पन्न पुत्र आया । आँखों में पानी ला कर इसने वसुदेव का चरण- अभिमन्यु चक्रव्यूह में मृत हुआ, तथा चित्रांगदापुत्र बभ्रस्पर्श किया। वृद्ध वसुदेव ने अर्जुन का आलिंगन कर के वाहन मणिपूर का राजा बना । उलूपीपुत्र इरावत की मृत्यु शोक किया, तथा शूर राम-कृष्ण की मृत्यु हो गई, भी युद्ध में हुई। आगे चल कर, अर्जुन का पौत्र परीक्षित् । केवल मैं जीवित बचा, ऐसे खेदजनक शब्द कहे। राजा बना। द्वारका जल्द ही समुद्र में डूबने वाली है, ऐसा बता अर्जुन ने 'हिरण्यपुर के पालोम, कालकेय तथा दानव कर, स्त्रियाँ, रत्न तथा राज्य सम्हालने के लिये वसुदेव ने का वध किया (ब्रह्माण्ड. ३.६.२८)। अर्जुन से कहा तथा देहत्याग किया (म. मौ.६-७)। यह नर का अवतार है। अर्जुन ने सब को द्वारका छोड़ कर इन्द्रप्रस्थ जाने की अस्त्र-परशुराम द्वारा की गई नरस्तुति में अर्जुन के तैय्यारी करने के लिये कहा, तथा वसुदेव, राम तथा | निम्नांकित अस्त्रों का वर्णन है। कृष्ण को अग्नि दी । तदनंतर, इसके नेतृत्व में अवशिष्ट १. काकुदिक (काम), २. शुक (क्रोध), ३. नाक यादवस्त्रियाँ तथा पौर इन्द्रप्रस्थ निकले ही, कि (लोभ), ४. अक्षिसंतर्जन ('मोह ), ५. संतान (मद), इधर द्वारका समुद्र ने निगल ली। इन्द्रप्रस्थ की ओर ६. नर्तक (मान), ७. घोर (मत्सर), ८. आत्यमोदक आते समय, पंचनद देश में अर्जुन ने डेरा डाला । अर्जुन | (अहंकार), (म. उ. ९६) । अर्जुन की उपासना अकेला ही अनेक स्त्रियों को ले कर जा रहा है यह पाणिनी के समय लोक करते थे, ऐसा पाणिनीसूत्रों से ज्ञात देख, वहाँ के आभीर लोगों ने अर्जुन पर आक्रमण किया। होता है (पा. सू. ४.३.९८)। अर्जुन उस समय वृद्ध हो चला था, भाग्य भी बदल गया इसके रथ का नाम नंदिघोष (गरूड, ३.१४५.१६)। था । इससे पहले के समान, धनुष सज्ज कर बाण नही इसने ६५ वर्षों तक गांडीव का उपयोग किया (म. वि. छोड़ सकता था। अस्त्रमंत्र याद नही आ रहे थे, बाण भी | ४७.७)। समाप्त हो गये थे। अंत में, धनुष्य का लाठी के समान २. रैवत मनूका पुत्र (मनु देखिये)। उपयोग कर अर्जुन सब को मारने लगा। इससे कई स्त्रियाँ ३. कार्तवीर्य देखिये। भगाई गई, कई स्वयं भाग गई, तथा बचे हुए परिवार के अर्जुनक-एक लुब्धक । गौतमी नामक ब्राह्मणी का पुत्र साथ बड़ी कठिनाई से अर्जुन इन्द्रप्रस्थ लौट सका (अष्टावक्र | सर्पदंश से मृत होने के कारण, वह शोक कर रही थी । तब ४०
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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