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अर्जुनक
प्राचीन चरित्रकोश
अलक्ष्मी
इसने उस सर्प को पकड कर लाया, तथा पूछा कि, उसका | प्रकाशित होता है । इसकी ३०० किरणें है (भवि. ब्राह्म. वध किस प्रकार किया जावे। तब, प्राणी कम परतंत्र हैं, कह | १. ७८; भा. १२.११.३४.)। यह अत्रिपुत्र है, इस कर उसने साँप को छोड़ देने को कहा (म. अनु. १)। कथन के लिये, महाभारत छोड़ कर अन्यत्र आधार नही ___ अर्जुनपाल-(सो. यदु.) वसुदेव का अनुज मिलता (म. शां. २०१.९-१०)। शमीक सुदामिनी के दो पुत्र में से एक (भा. ९.२४.४४) २. धर्म तथा मुहूर्ता के पुत्रों में से एक। ___ अर्ण-यदु-तुर्वशो के लिये इंद्र ने चित्ररथ के साथ | अर्यल-यह सर्पसत्र में गृहपति था (पं. ब्रा. २३. सरयु के तट पर इसका वध किया (ऋ. ४. ३०.१८)।। १-५)।
अर्थ-स्वायंभुव मन्वन्तर के धर्म तथा बुद्धि का अर्यव-अजव देखिये। पुत्र (भा. ४. १.५१)।
अर्ववीर - सावर्णि मनु का पुत्र । अर्थसिद्धि-धर्म तथा साध्या का एक पुत्र |
२. स्वारोचिष मनु का पुत्र । इसका नान्मातर और्व । (भा. ६. ६. ७)।
३. पुलह के तीन पुत्रों में से एक (मार्क. ५२)। - अर्धनारीनटेश्वर-ब्रह्मदेव ने प्रजा उत्पन्न करने के अवावसु-रभ्यऋषि के दो पुत्रो म स दूसरा लिये तप प्रारंभ किया। तब शंकर प्रसन्न हुआ, तथा
गुणों में उत्तम था (यवक्रीत तथा परावसु देखिये)। इसे ही उसके शरीर में अधनारीनटेश्वर उत्पन्न हुआ (शिव. | सूयमत्रप्रकाशक, रहस्यवदसज्ञक, काठक ब्राह्मण
सूर्यमंत्रप्रकाशक, रहस्यवेदसंज्ञक, काठक ब्राह्मण का दर्शन शत. ३) पार्वती की आज्ञानुसार दुर्गाद्वारा महिषासुर | हुआ (म. व. १३९)। इसने पुत्र प्राप्ति के लिये सूर्य की का वध होने के पश्चात् . शंकर संतुष्ट हो कर अरुणाचल | उपासना की । आकाशमार्ग से आ कर, सूर्य ने अरुण के पर तप कर रही पार्वती के पास आया. तथा उसे अपने | द्वारा, इसे सप्तमीकल्प विधि बताया । इससे इसे पुत्र वामांक पर लिया। तब इस प्रेम के कारण. पार्वती शंकर | तथा ऐश्वर्य प्राप्त हुआ (भवि. ब्राह्म. ८०)। के वामांग में ही लीन हो गई। उससे शिव-पार्वती अर्षि-श्रवाऋषि के दो पुत्रों में से ज्येष्ठ (वीतहव्य का वह शरीर आधा शुभ्र, आधा ताम्रछटायक्त, अर्धभाग दखिये)। में चोली, अर्ध में हार, इस प्रकार अर्धनारीनटेश्वर | अर्टिषेण-भृगुकुलोत्पन्न ऋषि (म. श.३९)। इसका दिखने लगा ( स्कंद १.२.३-२१; स्वयंभुव देखिये)। | युधिष्ठिर से संवाद हुआ था (म. व. १५६)। इसका .. अर्धपण्य--अत्रिकुल के गोत्रकार ऋषिगण । | वंशज आर्टिषेण (म. व. १४; देवापि देखिये)। . अर्पिणी-आर्षिणी देखिये।
अर्हत-एक राजा | ऋषभ नामक विरक्तं पुरुष दक्षिण अर्बुद-इन्द्र के शत्रु दो असुर । इन्द्र ने इनसे | कर्नाटक के कोकवेंक कुटक देशके कुटकाचल समीप, अरण्य युद्ध कर के, इन पर बर्फ की वर्षा करने से, यह पराभूत | के दावानल में जल कर मृत हुआ। तब यह वहाँ का हो गये। इन्द्र ने अपने वज्र से इसकी हत्या की | राजा था। इसने ऋषभदेव से जैनधर्म का स्वीकार किया (ऋ ८.३२.२६; १०.६७.१२)।
| (भा. ५. ६.८.)। अर्बुद कादवेय-यह नागर्षि था। इसने यज्ञ के | अलक्ष्मी-यह कालकूट के बाद समुद्र से निकली। न्यून कैसे सुधारे जाय, तथा सोमरस कैसा निकाला जावे; इसका मुख काला, एवं आँखे लाल थीं। इसके केश पीले इसका ज्ञान बताया (ऐ, ब्रा. ६.१; सां. ब्रा. २९.१)। थे, एवं यह वृद्ध थी। देवताओं ने इसे वरदान दिया कि, सर्पसत्र में यह ग्रावस्तुत था ( पं. बा. २५.१५.)। इन | 'जिस घर में कलह होगा वहाँ तुम रहो। कठोर, असत्य सब स्थानों में उल्लेखित अर्बुद एक ही होगा।
बोलनेवाले तथा संध्यासमय भोजन करनेवालों को तुम ताप अर्यमभूति-भद्रशर्मन् का शिष्य (वं. ब्रा. ३)। दो। बिना हाथ मुँह धोये जो भोजन करे, उसे तुम कष्ट दो ।
अर्यमन्-ऋग्वेद में उल्लखित एक देव । मित्रावरुणों | तुम हड्डिया, कोयला, केश तथा भूसी में रहो, तथा अभक्ष्यके साथ इसका उल्लेख पाया जाता है। आदित्य तथा भक्षक, गुरु, देव, अतिथि इ. का पूजन न करनेवाले, यज्ञ मित्र के समान यह अन्य देवों का स्नेही है । संस्कारों में तथा वेदपाठ न करनेवाले, आपस में कलह करनेवाले इसका उल्लेख प्राप्य है । अन्य देवों के समान यह भी पतिपत्नि तथा द्यूत खेलनेवालों को तुम दरिद्री बना दो।' कश्यप तथा अदिति का पुत्र है। यह द्वादशादित्यों में आगे चल कर, लक्ष्मी का विवाह विष्णु से होने के पहले से एक है। यह पितृगणों में से एक है। यह वैशाख में ही, इसका विवाह उद्धालक नामक ऋषि से कर दिया (पद्म. प्रा. च.६]