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________________ प्राचीन चरित्रकोश अर्जुन उत्पन्न हो गया. परंतु कर्ण के सामने किसी का बस नही | पराजय अर्जुन ने किया । प्राग्ज्योतिषपुर का राजा भगदत्तपुत्र चलता था। तब धर्म ने अर्जुन की निर्भत्सना की, तथा | यज्ञदत्त को इसने अच्छा पाट सिखाया । तदनंतर यह सिंधु कहा कि, कर्णवध करने की शक्ति अगर नहीं है, तो | देश में गया । सिंधुराजा जयद्रथ का वध अर्जुन के द्वारा गांडीव किसी और को दे दो। उसने कर्णवध किये बिना रण | होने के कारण, वहाँ के निवासियों में अर्जुन के प्रति से वापस लौट आने के लिये, अर्जुन को दोष दिया । यह त्वेष जागृत था। उनके द्वारा जोरदार आक्रमण होने के सुनते ही, पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार, गांडीव कीसी दूसरे को दे | कारण, अजुन के हाथों से गाण्डीव छूट गया। परंतु दो, ऐसे कहनेवाले धर्मराज का वध करने के लिये खड्ग उसके बाद भी इसने जोरदार युद्ध शुरू किया। अर्जुन के टेकर दौड़ा । तब कृष्ण ने धर्माधर्म का भेद बना कर कहा | आगमन की सूचना मात्र से जयद्रथपुत्र सुरथ मृत हो कि, धर्मराज के लिये 'आप' शब्द का प्रयोग करने के बदले गया। परंतु जयद्रथ की पत्नी तथा दुर्योधन की भगिनी अगर 'तुम' या 'तू' कहा तो यह अपमान वधतुल्य है। दुःशला, अपने नाती सहित अर्जुन के पास आई, तथा अर्जुन ने यह मानकर, धर्मराज के प्रति कुत्सित शब्दों का | इसे शरण आ कर युद्धसे परावृत्त किया। उपयोग कर, उसका अत्यत अपमान किया । अत म, प्रयभेट-तदनंतर अर्जन मणटर देश में गया। तब एसा करने का कारण बता कर, यह कर्णवध के काम में लग इसका पुत्र बभ्रुवाहन अनेक लोगो के साथ, इसके स्वागत गया । कृष्ण इसे लगातर उत्तेजन दे ही रहा था । कर्णार्जुन के लिये आया। परंतु क्षत्रियोचित वर्तन न करने के कारण -का तुमुल युद्ध शुरू हुआ। अर्जुन ने कर्ण को घायल कर के अर्जुन ने उसकी निर्भत्सना की । पाताल से उलूपी वहाँ आई एक बार बेहोश कर दिया, तथा बाण पर बैठ कर आये तथा उसने भी अपने सापत्न पुत्र को युद्ध के लिये प्रो साहन - हुए तक्षक का वध किया । परंतु युद्ध के ऐन रंग में ही. दिया । बभ्रुवाहन ने घनघोर युद्ध प्रारंभ कर के अर्जुन को कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी ने निगल लिया। कर्ण ने रथ मूञ्छित किया, तथा स्वयं भी मूर्छित हो गया। उसकी से कूद कर पहिया उठाने का प्रयत्न किया, परंतु कुछ लाभ माता चित्रांगदा रणक्षेत्र में आई तथा पुत्र एव पति के नहीं हुआ। उसने धर्मयुद्ध के अनुसार अजुनको रुकने का लिये उसने अत्यंत विलाप किया । बभ्रवाहन ने प्रायोउपदेश किया, परंतु उसका भी कुछ लाभ न हो कर, पवेशन किया । तब, इस पिता पुत्र युद्ध के लिये, उलूपी अर्जुन ने कर्ण का मस्तक उड़ा दिया (म. क. ६७)। को सबके द्वारा दोष दिये के जाने कारण, केवल स्मरण से : "युद्धसमाप्ति-दुर्योधन की मृत्यु के बाद सब उसके शिविर | प्राप्त होने वाले संजीवनीमणि से उसने अर्जुन को जागृत में आये। तब अनेक अरुप्रयोगों से दग्ध, परंतु कृष्ण के, किया । शिखण्डी को सामने रख कर भीष्मवध करने के सामर्थ्य से सुरक्षित अर्जन का रथ, कृष्णाजुन के नीचे उतरते कारण अजिंक्य अजुन का पराभव बभ्रुवाहन कर सका। ही, अपने आप जल कर खाक हो गया (म. श. ६१)। तदुपरांत, अर्जुन मगध देश में गया तथा जरासंधपौत्र • आगे चल कर, अश्वत्थामा ने चिढ कर रात्रि के समय मेघसंधी का इसने पराभव किया। उसके बाद वंग, पुण्ड्र ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, तथा सबको जलाना प्रांरभ किया। तथा केरल देश जीत कर, दक्षिण की ओर मुड़ाकर इसने तब उसके परिहार के लिये अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का | चेदि देश पर आक्रमण किया। वहीं शिशुपालपुत्र शरभ से प्रयोग किया। परंतु वह सब लोगों को अधिक कष्ट देनेवाला सत्कार प्राप्त कर, काशी, अंग, कोसल, किरात तथा तङ्गण सोच कर इसने वापस ले लिया (म. सो.१५)। यद्यपि | देश पार कर, यह दशार्ण देश मंगया। वहाँ चित्रांगढ़ से युद्ध भारतीय युद्ध में, अर्जुन का सारथी कृष्ण था (म. ३. ७. | कर के उसे अपने काबू में लाया । निषादराज एकलव्य के ३४), तो भी पूरु नामक एक सारथि अर्जुन के पास | राज्य में जा कर, उसके पुत्र से युद्ध कर के उसे जीता। निरंतर रहता था (म. स. ३०)। पुनः दक्षिण की ओर आ कर, द्रविड, आन्ध्र, रौद्र, माहिषक अश्वमेध-जब युधिष्ठिर ने अश्वमेध का अश्व छोडा, | तथा कोल्लगिरेय, इनको सुगमता से जीत कर सुराष्ट के तब उसके संरक्षणार्थ अर्जुन की योजना की गई थी। अर्जुन | आसपास गया । वहाँ से, गोकर्ण, प्रभास, द्वारका इ. भाग प्रथम अश्व के पीछे पीछे उत्तर दिशा की ओर गया। से, समुद्रकिनारे से पंचनद देश में गया तथा वहाँ से राह में कई छोटे बड़े युद्ध हुए। उनमें से केवल महत्वपूर्ण गांधार गया । गांधार में, शकुनिपुत्र से इसका भयानक युद्ध युद्धों का वर्णन महाभारत में दिया है। त्रिगर्त का रजा हुआ तथा शकुनिपुत्र की सेना का इसने संहार किया। सूर्यवमा, उसी प्रकार उसका भाई केतुवर्मा तथा धृतवमा का अपने पुत्र की भी यही स्थिति होगी यह जानकर, शकुनि ३९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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